
अर्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नारी और नर जब तक अलग हैं तब तक दोनों अधूरे हैं, बल्कि इस बात का भी कि जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, वह अधूरा है एवं जिस नारी में पुरुषत्व नहीं, वह भी अपूर्ण है।

सत्य की जिज्ञासा ऋषित्व का प्रथम और अंतिम लक्षण है। सत्य का साक्षात् दर्शन जिसे हो, वह ऋषि है।

मधुर दया आभिजात्य का सच्चा चिह्न है।

महापुरुष अपने युग का प्रतीक है और समसामयिक शक्तियों का नाभिबिंदु होता है।

हम प्रतीक हैं और प्रतीकों का निषेध करते हैं।