समुद्र पर कविताएँ

पृथ्वी के तीन-चौथाई

हिस्से में विशाल जलराशि के रूप में व्याप्त समुद्र प्राचीन समय से ही मानवीय जिज्ञासा और आकर्षण का विषय रहा है, जहाँ सभ्यताओं ने उसे देवत्व तक सौंपा है। इस चयन में समुद्र के विषय पर लिखी कविताओं का संकलन किया गया है।

पहाड़ पर चढ़ने के लिए

पद्मजा घोरपड़े

होना

सुघोष मिश्र

समुद्र की मछली

कुँवर नारायण

पूरी रात

केशव तिवारी

एक मछली से बातचीत

सविता भार्गव

समुद्र

नरेश सक्सेना

नदियाँ

सौरभ अनंत

भीगना

अमेय कांत

कन्याकुमारी

दूधनाथ सिंह

दूर के शहर

सौरभ अनंत

ज़िद मछली की

इला कुमार

मल्लाह का शोकगीत

नीलेश रघुवंशी

लूनी नदी

दीपक जायसवाल

देह का नमक

नित्यानंद गायेन

स्वप्न में समुद्र

निरंजन श्रोत्रिय

एक और सिंह-मूसिक उपाख्यान

जानकी बल्लभ पटनायक

नदी-नदियाँ

ममता बारहठ

समुद्र के किनारे

रामविलास शर्मा

दूरी और भाषा

योगेंद्र गौतम

पश्चिम समुद्र

चेन्नवीर कणवि

तट

सुनीता जैन

ख़ाली हाथ

मणि मोहन

अथाह की आह

रामनिवास जाजू

समुद्र के आँसू

कुमार मुकुल

धरती

राधावल्लभ त्रिपाठी

असंपृक्त

गंगाप्रसाद विमल

समुद्र, मैं और तुम

रविशंकर उपाध्याय

नदियाँ

राकेश कबीर

आनंद

जसवंत दीद

पुरी के समुद्र तट पर

नेमिचंद्र जैन

समुद्र : चार कविताएँ

वंशी माहेश्वरी

सागर

रमेश ऋषिकल्प

मैं सागर हूँ

नेमिचंद्र जैन

साक्षी

कन्हैयालाल सेठिया

सागर

मेधा

सुनो समंदर

स्वानंद किरकिरे

समुद्र

रुस्तम

कोवलम के तट पर

नीलेश रघुवंशी

समुंदर-सा गहरा

प्रतिभा चौहान

सागरिका

गोपालशरण सिंह

अनुभव समुद्र

स्वाति मेलकानी

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