Font by Mehr Nastaliq Web

बच्चे पर दोहे

हिंदी के कई कवियों ने

बच्चों के वर्तमान को संसार के भविष्य के लिए समझने की कोशिश की है। प्रस्तुत चयन में ऐसे ही कवियों की कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं में बाल-मन और स्वप्न उपस्थित है।

थाल बजंता हे सखी, दीठौ नैण फुलाय।

बाजां रै सिर चेतनौ, भ्रूणां कवण सिखाय॥

नवजात शिशु के लिए माता अपनी सखी से कहती है कि प्रसूतिकाल के समय ही बजते हुए थाल को इसने आँखें फुला-फुला कर देखा। हे सखी! बाजा सुनते ही उल्लसित हो जाना गर्भ में ही इन्हें कौन सिखाता है? अर्थात् शूर-वीर के लिए उत्साह और स्फूर्ति जन्मजात होती है।

सूर्यमल्ल मिश्रण

बाल बिभूषन बसन बर, धूरि धूसरित अंग।

बालकेलि रघुबर करत, बाल बंधु सब संग॥

श्री राम जी बालोचित सुंदर गहने-कपड़ों से सजे हुए हैं, उनके श्री अंग धूल से मटमैले हो रहे हैं, सब बालकों तथा भाइयों के साथ आप बच्चों के-से खेल खेल रहे हैं।

तुलसीदास

संबंधित विषय

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए