हिन्दुस्तान कभी नास्तिक नहीं बनेगा। हिन्दुस्तान की भूमि में नास्तिक फल-फूल नहीं सकते।
पश्चिम की सभ्यता निरीश्वरवादी है, हिन्दुस्तान की सभ्यता ईश्वर को मानने वाली है।
जो ईश्वर को अपने पास समझता है, वह कभी नहीं हारता।
ईश्वर को नहीं मानने से सबसे बड़ी हानि वही है, जो हानि अपने को न मानने से हो सकती है। अर्थात ईश्वर को न मानना आत्महत्या के समान है।
हे जगदीश, जो लोग कामिनी जनों की ओर घूरने ही के लिए देवालयों को सबेरे और सायंकाल जाते हैं, उन्हीं की सब कोई यदि प्रशंसा करे तो हाय! हाय! आस्तिकता अस्त हो गई समझनी चाहिए।
आशावाद आस्तिकता है। सिर्फ़ नास्तिक ही निराशावादी हो सकता है।
ईश्वर की पहचान सेवा से ही होगी—यह मानकर मैंने सेवा धर्म स्वीकार किया था।
आस्तिक और नास्तिक उनमें इसी बात पर लड़ाई है। कि ईश्वर को ईश्वर कहा जाए या कोई दूसरा नाम दिया जाए।
आस्तिक और नास्तिक दोनों ही आस्थावान होते है। आस्था विधायक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार की होती है।
जब यह विश्वास हो कि ईश्वर है और वह ही हमें संकट से उबारेगा, तो कर्म का स्थान भक्ति और श्रद्धा ले लेती है।