
जो मूल वादक की कृति की लय और छंद को बरक़रार रखते हुए; उसे एक भाषा से दूसरी भाषा में ले आए, वही है अनुवादक!

अर्थ का अनुवाद किया जा सकता है। शब्द का अनुवाद नहीं किया जा सकता है… संक्षेप में—शब्द का अनुवाद कर सकते हैं, उसकी ध्वनि का नहीं।

अँग्रेज़ी शब्द-समूह का हूबहू हिंदी अनुवाद निरर्थक ही नहीं—विपरीत अर्थ सृजित करनेवाला भी हो सकता है। वास्तव में भाषा का विकास ऐसे कृतिम उपायों से नहीं, संस्कृति और चिंतन के विकास के अनुरूप ही होता है।

अनुवाद में विश्वसनीयता और स्वतंत्रता, पारंपरिक तौर से परस्पर विरोधी प्रवृतियाँ मानी गई हैं।
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जब भाषा अपने निजीपन को खोकर भी; लक्ष्य-भाषा-संस्कृति में अपने स्वभाव-गुणों को क़ायम रखती है, तभी अनुवाद अच्छा कहलाएगा।

हमेशा पहले शासित लोगों की भाषा से शासक लोगों की भाषा में अनुवाद होना चाहिए।

लोग मेरी भाषा व वाक्यों पर अचरज जताते हैं, कई बार मेरा एक वाक्य बीस पेज लंबा होता है। मैंने अपनी हंगारी भाषा को इस तरह इस्तेमाल किया है कि उसे लोग ‘क्रास्ज़्नाहोरकाई हंगारी’ कहने लगे हैं। जब कोई इसे अँग्रेज़ी में अनुवाद करता है, तो उसे इसके लिए एक ख़ास किस्म की ‘क्रास्ज़्नाहोरकाई अँग्रेज़ी’ खोजनी पड़ती है।

आज मुझे अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और स्वीकृति मिल रही है इसका कारण सिर्फ़ मेरा लेखन नहीं है; बल्कि असली श्रेय तो उन अनुवादकों को है, जिन्होंने अंग्रेज़ी और दूसरी भाषाओं में मेरा साहित्य पहुँचाया है।

जब मैं अपने अनुवादकों के साथ काम करता हूँ, तो ये देख पाता हूँ कि भाषा के तौर पर हंगेरियन भाषा में कितनी संभावनाएँ मौजूद हैं। अगर फ्रेंच या स्पेनिश में दो संभावनाएँ मौजूद हैं तो हंगेरियन में दस।

मेरा ऐसा मानना है कि मैंने अपनी भाषा में अपनी किताब लिख दी, मेरा काम वहीं तक है। उसके बाद जब कोई उस किताब को दूसरी भाषा में अनुवाद करता है, तब वह मेरी किताब के आधार पर एक नई किताब की रचना करता है। वह किताब मेरी नहीं, उसकी होती है। उसकी भाषा, शब्द, सब कुछ उसके होते हैं।