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रात पर उद्धरण

उजाले और अँधेरे के प्रतीक

रूप में दिन और रात आदिम समय से ही मानव जिज्ञासा के केंद्र रहे हैं। कविताओं में रात की अभिव्यक्ति भय, आशंका और उदासी के साथ ही उम्मीद, विश्राम और शांति के रूप में हुई है। इस चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है; जिनमें रात के रूपक, प्रतीक और बिंब से जीवन-प्रसंगों की अभिव्यक्ति संभव हुई है।

रात के मध्य में समय विशेष तरीक़े से चलता है।

हारुकी मुराकामी
  • संबंधित विषय : समय

गर्मियों की रात विचार की पराकाष्ठा जैसी होती है।

वॉलेस स्टीवंस

बलवान के साथ विरोध रखने वाले को, साधन-हीन दुर्बल मनुष्य को, जिसका सब कुछ हरण कर लिया गया है उसको, कामी को तथा चोर को रात में नींद नहीं आती।

वेदव्यास

आओ हम रात में क़दम रखें और उस चंचल प्रलोभन, रोमांच का पीछा करें।

जे. के. रोलिंग

अमीर लोग तीन पीढ़ियों के लिए योजना बनाते हैं, ग़रीब लोग शनिवार रात की योजना बनाते हैं।

ग्लोरिया स्टाइनम

दिन का अंधकार ख़तरनाक होता है। रात का अँधेरा नींद लाता है, दिन का अँधेरा ख़्वाब।

मृदुला गर्ग

कौन जानता है कि संसार आज रात्रि में ही समाप्त नहीं हो जाएगा?

रॉबर्ट ब्राउनिंग

दिन-रात लगातार बीत रहे हैं और इस संसार में सभी प्राणियों की आयु का उसी प्रकार शीघ्र नाश कर रहे हैं, जैसे सूर्य की किरणें ग्रीष्म ऋतु में जल का शीघ्र नाश करती हैं।

वाल्मीकि

हम दोपहर में अपने पसीने को व्यय करते हैं और रात्रि में तेल को। हर रात्रि में चिंतन करके थकते हैं और दिन में परिश्रम करके।

फ़्रांसिस क्वार्ल्स

आनंद दिन पर शासन करता था और प्रेम, रात्रि पर।

जॉन ड्राइडन

जो सब प्राणियों की रात्रि होती है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है और जिस अवस्था में सब प्राणी जागते हैं, वह तत्त्वज्ञ मुनि की रात्रि होती है।

वेदव्यास

काष्ठा, कला, मुहूर्त, दिन, रात, लव, मास, पक्ष, छह ऋतु, संवत्सर और कल्प इन्हें 'काल' कहते हैं तथा पृथ्वी को 'देश' कहा जाता है। इनमें से देश का तो दर्शन होता है किंतु काल दिखाई नहीं देता। अभीष्ट मनोरथ की सिद्धि के लिए जिस देश और काल को उपयोगी मानकर उसका विचार किया जाता है, उसको ठीक-ठीक ग्रहण करना चाहिए।

वेदव्यास

रात भर जागती हुई दो आँखों की व्याकुलता अंकित कर केवल हृदय की वार्ताओं को ही प्रकट करते हो, कोई ध्वनि है, कोई कथा ही।

नलिनीबाला देवी

...लिखते समय जितना भी अकेलापन हो, वह काफ़ी अकेलापन नहीं है, कितनी ही ख़ामोशी हो वह पर्याप्त ख़ामोशी नहीं है, कितनी ही रात हो वह काफ़ी रात नहीं है।

ज्ञानरंजन

क्या मैं उस खोए हुए दिन की तरह हूँ जब तुम पूर्व की ओर उड़ते हो, और वह पुनः प्राप्त निशा जो पश्चिम जाने से मिलती है?

ओल्गा तोकार्चुक
  • संबंधित विषय : दिन

रात अपने आप से भरी हुई है, अपने आप में विस्तृत है और अपने आप में जीवंत है।

गैब्रिएला मिस्ट्राल