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शब्द पर कविताएँ

वर्णों के मेल से बने

सार्थक वर्णसमुदाय को शब्द कहा जाता है। इनकी रचना ध्वनि और अर्थ के मेल से होती है। शब्द को ब्रहम भी कहा गया है। इस चयन में ‘शब्द’ शब्द पर बल रखती कविताओं का संकलन किया गया है।

चोरी

गीत चतुर्वेदी

पहाड़ पर लालटेन

मंगलेश डबराल

बचपन से लिंग अब तक

उस्मान ख़ान

दुनियाएँ

प्रदीप्त प्रीत

तुमने देखा

कुँवर नारायण

अपशब्द प्रेम

अजंता देव

अगर हो सके

अशोक वाजपेयी

जान

बेबी शॉ

आँसू का अनुवाद

मदनलाल डागा

यथार्थ

सुधीर रंजन सिंह

अक्षर

राजेंद्र यादव

ज्ञ

प्रकाश

कविता में अर्थ

लवली गोस्वामी

शब्दों के पार

लनचेनबा मीतै

व्याख्या

नेमिचंद्र जैन

शब्द तक

कुँवर नारायण

सजीव-सर्वस्तर

हीरेन भट्टाचार्य

गूँगा हो जाना चाहता है

नंदकिशोर आचार्य

वह क्या है

नंदकिशोर आचार्य

ख़त

राही डूमरचीर

इन शब्दों में

असद ज़ैदी

शिशु

नरेश सक्सेना

अक्षर गीत

मंजुल भार्गव

जब कोई शब्द खिलता है

गोविंद द्विवेदी

अपना-अपना पाठ

रामकुमार तिवारी

तीसरा पहर

मोहन राणा

इंटरप्रेटर

अविनाश मिश्र

उलझन

नंदकिशोर आचार्य

शब्दों के चिथड़े

कृष्ण कल्पित

लिखना

नरेश चंद्रकर

शब्दों की वह दुनिया

ऋतु कुमार ऋतु

कहाँ हैं वे शब्द

सुमित त्रिपाठी

अंजीर

मंगेश पाडगाँवकर

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