सुख पर निबंध
आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,
शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।
कला का प्रयोजन : स्वांतःसुखाय या बहुजनहिताय
हमारे युग का संघर्ष आज केवल राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों ही में प्रतिफलित नहीं हो रहा है, वह साहित्य, कला तथा संस्कृति के क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुका है। यह एक प्रकार से स्वास्थ्यप्रद ही लक्षण है कि हम अपने युग की समस्याओं का केवल बाहरी समाधान ही