सेवक पर उद्धरण
सेवक यानी सेवा करने
वाला। भक्तिधारा में इसका विशिष्ट अर्थ भक्त है। इस चयन में सेवक को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

जिसका धन मात्र धन के लिए है, वह धन के तत्त्व को नहीं जानता। जैसे सेवक वन में गायों की रक्षा करता है, उसी प्रकार वह भी दूसरे के लिए धन का रक्षक मात्र है।

वत्स! जो सदा क्षमा ही करता है, उसे अनेक दोष प्राप्त होते हैं उसके भृत्य, शत्रु तथा उदासीन सभी उसका तिरस्कार करते हैं।

भगवान् का सेवक होना कुछ चीज़ है, भगवान् का दास होना उससे भी बड़ी चीज़ है।


हमारे सभी कार्यकर्ता, चाहे वे किसी भी पद पर क्यों न हों, जनता के सेवक हैं और हमारा हर कार्य जनता की सेवा के लिए है। ऐसी हालत में भला यह कैसे हो सकता है कि हम अपनी किसी भी बुराई को दूर करने की अनिच्छा प्रकट करें?
