लोक पर बेला

लोक का कोशगत अर्थ—जगत

या संसार है और इसी अभिप्राय में लोक-परलोक की अवधारणाएँ विकसित हुई हैं। समाज और साहित्य के प्रसंग में सामान्यतः लोक और लोक-जीवन का प्रयोग साधारण लोगों और उनके आचार-विचार, रहन-सहन, मत और आस्था आदि के निरूपण के लिए किया जाता है। प्रस्तुत चयन में लोक विषयक कविताओं का एक विशेष और व्यापक संकलन किया गया है।

05 मई 2024

‘क़िस्साग्राम’ का क़िस्सा

‘क़िस्साग्राम’ का क़िस्सा

‘क़िस्साग्राम’ उपन्यास की शुरुआत जिस मंदिर के खंडित होने से हुई है, उसके लेखन का काल उस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा का समय है। उपन्यासकार प्रभात रंजन इस बात को ख़ुद इस तरह से कहते हैं, ‘‘अन्हारी नामक किसी

25 अप्रैल 2024

नाऊन चाची जो ग़ायब हो गईं

नाऊन चाची जो ग़ायब हो गईं

वह सावन की कोई दुपहरी थी। मैं अपने पैतृक आवास की छत पर चाय का प्याला थामे सड़क पर आते-जाते लोगों और गाड़ियों के कोलाहल को देख रही थी। मैं सोच ही रही थी कि बहुत दिन हो गए, नाऊन चाची की कोई खोज-ख़बर नहीं

16 अप्रैल 2024

नवगीत का सूरज डूब गया

नवगीत का सूरज डूब गया

माहेश्वर तिवारी [1939-2024]—एक भरा-पूरा नवगीत नेपथ्य में चला गया—अपनी कभी न ख़त्म होने वाली गूँज छोड़कर। एक किरन अकेली पर्वत पार चली गई। एक उनका होना, सचमुच क्या-क्या नहीं था! उन्हें रेत के स्वप्न आते

08 अप्रैल 2024

‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’

‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’

जैसलमेर 10 मई 2023  आज जैसलमेर आया हूँ। अपनी भुआ के यहाँ। बचपन में यहाँ कुछ अधिक आना होता था। अब उतना नहीं रहा। दुपहर में साथी के साथ हमीरा जाना हुआ। दिवंगत साकर ख़ान के घर। जीवन में लय का बहुत मह

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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