Font by Mehr Nastaliq Web

‘लापता लेडीज़’ देखते हुए

‘लापता लेडीज़’ देखते हुए मेरे अंदर संकेतों और प्रतीकों की पहचान करने वाली शख़्सियत को कुछ वैसा ही महसूस हुआ जो कोड्स की सूँघकर पहचान कर देने वाले कुत्तों में होती है। मुझे लगा कि इस फ़िल्म के ज़ाहिर किए गए प्लॉट के पीछे कुछ और चल ही रहा है। 

इस फ़िल्म में दो नव-वधुएँ शादी के बाद तुरंत अदल-बदल जाती हैं। यह ग़लती एक दुल्हन के घूँघट उठाने के बाद पता चलती है, जब उसका पति घूँघट उठाने के बाद चेहरा देखता है तो सदमे में कहता है कि यह मेरी फूल नहीं है... ठीक इसी समय मैंने एक पैटर्न नोटिस करना शुरू किया। 

दीपक की दुल्हन का नाम ‘फूल’ है। जो दुल्हन बदलकर दीपक के पास आई है उसका नाम है ‘पुष्पा’ यानी फूल। पुष्पा अपने पति का नाम बताती है ‘पंकज’ यानी कमल। 

दुनिया के तौर-तरीक़ों से अनभिज्ञ कम उम्र की फूल को अपने पति के गाँव का नाम याद नहीं है। यह भी एक फूल के नाम पर है, ऐसा वह बताती है। रेलवे स्टेशन पर उसके नए साथी समय-समय पर उसे फूलों के नाम सुझाते हैं—‘गुलाब, चंपा, चमेली, मटिया, कनेर, धतूरा?’ छोटू के इन सुझावों पर फूल सिर हिलाते हुए कहती है—‘‘नहीं।’’ पारिजात भी नहीं, नलिनी भी नहीं और न ही मोगरा। रेलवे स्टेशन के स्टॉल पर चाय और ब्रेड-पकौड़े बेचने वाली मंजू माई फूल से हँसते हुए कहती हैं—“तुमने तो हम सबको मधुमक्खी बना दिया है।” 

हमें बाद में पता चलता है कि गाँव का नाम सूरजमुखी है। यह ठीक भी लगता है, हालाँकि यह बाद में समझ आता है कि दीपक के गाँव का नाम सूरजमुखी ही रखना सबसे सही लगा होगा, क्योंकि दीपक अगर प्रकाश देता है तो गाँव का नाम सूरजमुखी ग़लत नहीं है। फूल को ज़िंदा रहने के लिए प्रकाश की ज़रूरत होती है, भले ही वह सूरज का न हो; दीपक का ही हो। वह बस जो दीपक और जया (पुष्पा) को सूरजमुखी गाँव लेकर जाती है, उसका नाम पुष्पा ट्रैवल्स है; दीपक की माँ कमलककड़ी की सब्ज़ी बनाती है जिसकी तारीफ़ जया करती है।

पौधों के जीवन के बारे में ये छोटे-छोटे संकेत इस फ़िल्म में छुपे या छुपाए गए हैं, भले ही इसका फ़िल्म देखने के अनुभव या फ़िल्म के संदेश से सीधा संबंध नहीं हो।

मैं इस फ़िल्म को देखते हुए लगातार महाश्वेता देवी की एक कहानी के बारे में सोचती रही। इस कहानी का नाम है—‘बीज’। ‘लापता लेडीज़’ के उलट जो कि काल्पनिक निर्मल प्रदेश में बसी है—निर्मल यानी शुद्ध और साफ़, शायद इसलिए ही किसी वाशिंग पाउडर ने अपना नाम निरमा रखा हो। 

बहरहाल, महाश्वेता की कहानी एक हिंसक समय-काल में कही गई है। खुर्दा गाँव और समय आपातकाल का, जहाँ ज़मींदार अपने खेतों में काम करने वाले किसानों की हत्या कर सकते हैं—बिना किसी सज़ा की परवाह किए हुए। महाश्वेता का गाँव ख़तरनाक, हिंसक, जातिवादी और शत्रुता से भरा है। 

‘लापता लेडीज़’ में हमें जो थोड़ी-सी राजनीति की झलक मिलती है, वह यह कि सरकार बदलने के साथ गाँव के नाम बदल जाते हैं—इंदिरापुर अटलनगर हो जाता है फिर मायागंज। ये गाँव महिलाओं से कितने मिलते-जुलते हैं, जिनका नाम शादी के बाद बदल दिया जाता है। 

यह संभव है कि ‘ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग’ को लेकर जया की ज़िद के कारण मेरे दिमाग़ में महाश्वेता देवी की कहानी का ख़याल आया होगा। ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग जया का सपना है। किरण राव की फ़िल्मों के शहरी दर्शकों के लिए यह उच्चवर्गीय आकांक्षा और एक फ़ील-गुड नारा है। एक ऐसा आइडिया जो इन दर्शकों को महसूस कराता है कि वे सही हैं, पृथ्वी और ख़ुद को बचाने और बढ़ाने में सहभागी हैं। 

महाश्वेता देवी की कहानी में दुलन गंजू को बरसों अपना खेत जोतने नहीं दिया जाता, क्योंकि ज़मींदार लक्ष्मण सिंह ने उस ज़मीन में उन लाशों को दफ़नाया है जिनकी उसने हत्या की है। ज़मीन जोतने पर ये लाशें बाहर निकल आएँगी, लेकिन ज़मीन अपनी उर्वरता दिखाने लगती है। मारे जा चुके करन और बुलाकी पुटुस की झाड़ियों और एलोविरा पौधे के रूप में उग आए हैं। दुलन का बेटा धतुआ जो ज़मींदार का विरोध करते हुए मारा गया है, इसी ज़मीन में दफ़न है। ज़मींदार को मारने के बाद दुलन अपनी ज़मीन पर धान बोता है और कहता है : “मैं तुम्हें सिर्फ़ एलो और पुटुस नहीं रहने दूँगा। मैं तुम्हें धान बना लूँगा रे, धतुआ...” 

जब पौधे आते हैं वे पौधे लछमन, माखन और रामलगन के उर्वरक पोषित... लंबे, मज़बूत और स्वस्थ पौधों की तुलना में कुछ भी नहीं हैं। फ़िल्म देखते हुए जब ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग की बात आई तो मैं इस तरह की ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग के बारे में सोचने पर विवश हो गई, जबकि इस फ़िल्म में कुछ ही जगहों पर मरने का ज़िक्र है; एक पत्नी जिसने सुसाइड कर लिया है या फिर कीड़े-मकौड़े जो फ़सल नष्ट कर रहे हैं। दोनों ही मौतें फ़िल्म में दिखाई नहीं गई हैं। 

फ़िल्म की फूल जैसी मिठास (फूल जब स्टेशन के स्टॉल के लिए कलाकंद बनाती है तो छोटे-से किचन में बन रहे कलाकंद पर गुलाब की पंखुड़ियाँ डालती है, पुलिस इंस्पेक्टर का नाम मनोहर है जिसका अर्थ है मन को हर लेने वाला) और किताबी स्त्रीवाद, जिसके कारण हम सभी को यह फ़िल्म पसंद आने लगती है, यह कॉमेडी की वजह से संभव नहीं होता; बल्कि संभव होता है एक फ़ंतासी दुनिया गढ़े जाने से, आमिर ख़ान प्रोडक्शन का एक वर्जन काल्पनिक भारतीय गाँव का जिसकी कल्पना उन लोगों ने की है जो कभी गाँव में नहीं रहे हैं। (नेटफ़्लिक्स के एक इंटरव्यू में किरण राव कहती हैं, ‘‘ट्रेन से जब मैं इन गाँवों को देखती तो सोचा करती कि वहाँ क्या होता होगा।’’) एक ऐसा गाँव जहाँ पितृसत्ता को उसी तरह आसानी से ख़त्म किया जा सकता है, जैसे क्रिकेट खेलकर गाँव के लोग अपना लगान माफ़ करवा लेते हैं। 

महाश्वेता की कहानी में मुझे किसी फूल की बात होने की याद नहीं है। दुलन का बेटा कभी नहीं मिलता। वह ज़मीन के अंदर दफ़न है, उसकी सड़ती देह और हड्डियाँ अब धान के पौधों के लिए खाद बन चुकी हैं। “धतुआ, मैंने तुम्हें बीज में बदल दिया है।” किसान-पिता दुलन कहता है। यह है आर्गेनिक फ़ॉर्मिंग असल में।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

ग़ौर कीजिए, जिन चेहरों पर अब तक चमकदार क्रीम का वादा था, वहीं अब ब्लैक सीरम की विज्ञापन-मुस्कान है। कभी शेविंग-किट का ‘ज़िलेट-मैन’ था, अब है ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’। यह बदलाव सिर्फ़ फ़ैशन नहीं, फ़ेस की फि

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

Men are afraid that women will laugh at them. Women are afraid that men will kill them. मार्गरेट एटवुड का मशहूर जुमला—मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं; औरतें डरती हैं कि मर्द उन्हें क़त्ल

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—जिन्होंने पैसेंजर ट्रेन में सफ़र किया है, छत के ऐंटीने से फ़्रीक्वेंसी मिलाई है,

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें

बेला लेटेस्ट