स्त्री पर बेला
स्त्री-विमर्श भारतीय
समाज और साहित्य में उभरे सबसे महत्त्वपूर्ण विमर्शों में से एक है। स्त्री-जीवन, स्त्री-मुक्ति, स्त्री-अधिकार और मर्दवाद और पितृसत्ता से स्त्री-संघर्ष को हिंदी कविता ने एक अरसे से अपना आधार बनाया हुआ है। प्रस्तुत चयन हिंदी कविता में इस स्त्री-स्वर को ही समर्पित है, पुरुष भी जिसमें अपना स्वर प्राय: मिलाते रहते हैं।
किताब एक स्त्री की आत्मा का घर है
चमत्कार घटित होते हैं। एक दिन अप्रत्याशित ढंग से उसके काँधे पर एक कोमल और प्रेमिल स्पर्श इस क़दर हल्का आकर उतरता है क
इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं
एक मैं उन दुखों की तरफ़ लौटती रही हूँ, जिनके पीछे-पीछे सुख के लौट आने की उम्मीद बँधी होती है। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे
प्रेम, लेखन, परिवार, मोह की 'एक कहानी यह भी'
साल 2006 में प्रकाशित ‘एक कहानी यह भी’ मन्नू भंडारी की प्रसिद्ध आत्मकथा है, लेकिन मन्नू भंडारी इसे आत्मकथा नहीं मानती थी
मैं काली हूँ! काली हूँ, काली!
यह भी ब्लैक हिस्ट्री का एक चमकदार अध्याय है। 2 फ़रवरी 2025 की रात कैलिफ़ोर्निया में अफ़्रीकन-अमेरिकन सिंगर-डांसर बियोन्से न
रसोई घर का इंक़लाब
रसोई घर की ओर बढ़ती हुई स्त्रियाँ सोचती तो होंगी कि कैसे शाम-सवेरे बिना किसी दबाव के उनके क़दम उस ओर जाने लगते हैं। इसके
प्लेटो ने कहा है : संघर्ष के बिना कुछ भी सुंदर नहीं है
• दयालु बनो, क्योंकि तुम जिससे भी मिलोगे वह एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है। • केवल मरे हुए लोगों ने ही युद्ध का अंत देखा है
20 फरवरी 2025
मानवीय हसरतों की अनचीन्ही दुनिया
साहित्य के किसी भी सामान्य पाठक के लिए महाश्वेता देवी (1926-2016) का नाम सुपरिचित और सम्मानित है। उनकी लिखी हुई कहानियाँ
कथा-कला-कलाकारों के साथ रचनात्मकता के संसार में प्रवेश
भारत रंग महोत्सव—अभिमंच सभागार में, ऋषिकेश सुलभ के उपन्यास ‘दातापीर’ पर आधारित, कृष्ण समृद्धि द्वारा नाट्यान्तरित और रण
कहानी : लुटेरी तवायफ़ें
शादियों का सीज़न आते ही रेशमा तैयारी करना शुरू कर देती। मेकअप से थोड़ा घबराती थी, लेकिन उम्र छुपाने की जद्दोजहद रहती थी हम
स्त्रियों के संसार में ही घिरती है रात
ये उसकी सुबह थी पीठ पर धक्का मारते पुलकित के नन्हें पैर सुबह की अलसाई नींद के गवाह थे। इससे पहले वह इस आनंद में डूबती
'बहुत भेदक, कुशाग्र और कल्पनाशील पुस्तकें ही बचेंगी'
नई दिल्ली में जन्मीं साहित्यिक पत्रकारिता से लंबे समय तक संबद्ध रहने वालीं गगन गिल नब्बे के दशक में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’
'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक'
सुरेन्द्र वर्मा का जन्म सन् 1941 को झाँसी में हुआ, वह हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। उनका नाटक ‘सूर्य की अंतिम किरण
ज़िंदगी के रंगों को धुँधला करता ख़ालीपन
ज़िंदगी—ख़ालीपन को भरने का दूसरा नाम भी है। हर व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी में पूरा सम्मान और प्रेम पाने की आकांक्षा होती है
भारंगम में खेला गया भिखारी ठाकुर का ‘बिदेसिया’
‘बिदेसिया’ (नाटक) भिखारी ठाकुर की अमर कृति है, जिसे संजय उपाध्याय ने एक नया आयाम दिया है। भिखारी ठाकुर भोजपुरी भाषा के क
पेड़ों पर चढ़ने वाली स्त्रियों का संसार
विशाल हिमालय की गोद में बसे दो देश—भारत और नेपाल एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और दोनों साथ में 1850 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्री
इहबास में सोलह दिन
मेरे चार दशक के अनुभव ने जीवन में चार चाँद लगा दिए हैं। कुछ दशक तो मेरे लिए एक सदी लिए हुए आए थे, सूरज सरीखे चमकीले, दमक
उम्मीद का चक्र जब पूरा होता है, तब ज़िंदगी कहाँ होती है!
सुंदरता की अपने तहें होती हैं। बहुत मुलायम और क्रूर भी। मन हमेशा इतना ही अनजान रहता है कि वह परतों के इस जमावड़े को भूल
21 जनवरी 2025
भारतीय समाज का गुड गर्ल सिंड्रोम
भारतीय समाज में लड़कियों की परवरिश एक जटिल प्रक्रिया है—संरक्षण और स्वतंत्रता के बीच का एक सूक्ष्म संतुलन। वे शिक्षा और
द वेजिटेरियन : हिंसा और अन्याय से मुक्ति का स्वप्न
“मुझे एक स्वप्न आया था” कोरियाई लेखिका हान कांग के उपन्यास ‘द वेजिटेरियन’ के मूल में यही वाक्य है, जो उपन्यास की पात्
‘द लंचबॉक्स’ : अनिश्चित काल के लिए स्थगित इच्छाओं से भरा जीवन
जीवन देर से शुरू होता है—शायद समय लगाकर उपजे शोक के गहरे कहीं बहुत नीचे धँसने के बाद। जब सुख सरसराहट के साथ गुज़र जाए तो
व्यक्ति से प्रकाश-स्तंभ बनने की यात्रा
विचारहीनता ने आज जिस प्रकार तमाम राजनीतिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक परिदृश्य को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है, और भावनाओं के उकस
रूढ़ियों में झुलसती मजबूर स्त्रियाँ
पश्चिमी राजस्थान का नाम सुनते ही लोगों के ज़ेहन में बग़ैर पानी रहने वाले लोगों के जीवन का बिंब बनता होगा, लेकिन पानी केव
08 दिसम्बर 2024
हान कांग के उपन्यासों में अवसाद
Is it true that human beings are fundamentally cruel? Is the experience of cruelty the only thing we share as a species?
क्यों हताश कर रही हैं स्त्री आलोचक?
लेख से पूर्व रोहिणी अग्रवाल की आलोचना की मैं क़ायल हूँ। उनके लिए बहुत सम्मान है, हालाँकि उनसे कई वैचारिक मतभेद हैं। ‘
उर्फ़ी जावेद के सामने हमारी हैसियत
हिंदी-साहित्य-संसार में गोष्ठी-संगोष्ठी-समारोह-कार्यक्रम-आयोजन-उत्सव-मूर्खताएँ बग़ैर कोई अंतराल लिए संभव होने को बाध्य है
छठ, शारदा सिन्हा और ये वैधव्य के नहीं विरह के दिन थे...
मुझे ख़ूब याद है जब मेरी दादी गुज़र गई थीं! वह सुहागिन गुज़री थीं। उनकी मृत्यु के समय खींची गईं तस्वीरों में एक तस्वीर ऐ
गिफ़्टेड : एक जीनियस बच्ची के बचपन को बचाने की कहानी
अपनी माँ की भाषा में कहूँ तो गिफ़्टेड एक मामा और भांजी के एक आत्मीय रिश्ते पर आधारित एक फ़िल्म है। मामा यानी माँ का भाई,
धरती पर हज़ार चीज़ें थीं काली और ख़ूबसूरत
इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता की नई पीढ़ी का स्वर बहुआयामी और बहुकेंद्रीय सामाजिक सरोकारों से संबद्ध है। नई पीढ़ी के कविय
अजंता देव की ताँत के धागों से खींची कविताएँ
अगर कोई कहे कि अपने लिए बस एक ही फ़ेब्रिक चुनो तो मैं चुनूँगी सूती। सूती में भी किसी एक जगह की बुनाई को ही लेने को मजबूर
24 अक्तूबर 2024
एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में...
हान कांग (जन्म : 1970) दक्षिण कोरियाई लेखिका हैं। वर्ष 2024 में, वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली
देवदासी प्रथा : धर्म का नशा और दासी स्त्रियों का जीवन
यह सुदूर दक्षिण का उत्तरी इलाक़ा है। प्रकृति इतनी मेहरबान कि आँखों के आगे से पल भर के लिए भी हरियाली नहीं हटती। मुझे देश
रसोई के ज़रिए संघर्ष, मुक्ति और प्रेम का वितान रचता उपन्यास
किताबें पढ़ने की यात्रा, मुझे उन्हें लिखने से कम रोमांचक नहीं लगती। ख़ासकर किताब अगर ऐसी हो कि तीन बजे देर रात भी—जब तक क
जापान में आख़िरी दस दिन
तीसरी कड़ी से आगे... 13 अगस्त, 2020 भारत लौटने की 23 अगस्त की फ़्लाइट का कंफ़र्मेशन आ गया है एंबेसी से। अंतत: सीट
एकतरफ़ा प्यार को लेकर क्या कह गए हैं ग़ालिब
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और दुनिया में कई ‘सुख़न-वर’ हुए ह
नया साल और कोरोना का वो उदास मौसम...
दूसरी कड़ी से आगे... 30 दिसंबर, नोज़ोमु के घर नोज़ोमु का मैसेज आया है, हमें 1 बजे स्टेशन के लिए निकलना है। मैं अपने
जापान डायरी : एक शहर अपने आर्किटेक्चर से नहीं लोगों से बनता है
पहली कड़ी से आगे... जनवरी 2020 यह मेरी सर्दी की छुट्टियों की पहली किश्त है। आशा है दूसरी किश्त को लिखने में इतना स
पुरुषों ने स्त्री-मन से कहीं अधिक स्त्री-तन का अध्ययन किया
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य सम
'माई री मैं का से कहूँ' : स्त्रियों के अंतर्मन की पुकार
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य सम
स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?
रात का एक अलग सौंदर्य होता है! एक अलग पहचान! रात में कविता बरसती है। रात की सुंदरता को जिसने कभी उपलब्ध नहीं किया, वह कभ
मैं जब चाहे बाल नहीं धो सकती
“आज बाल नहीं धोने हैं।” “क्यों?” “आज एकादशी है।” “पर बाबा तो अभी-अभी शैंपू करके निकले हैं।” “तुमसे तो बात ही
वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है
‘वासना’ इच्छाओं का संतुलित नाम अर्थों के कई संदर्भों में समाहित है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं की संगीन गुफ़्तगू अपने
डिप्रेशन : नींद क्यूँ रात भर नहीं आती!
मैंने अवसाद पर कई कविताएँ लिखी हैं, लेकिन वे सारी बीते दिनों में किसी को देख-समझकर लिखी गई थीं। इन दिनों दिमाग़ की दवा खा
‘मसरूफ़ औरत’ के बारे में
कला-साहित्य से जुड़ी दुनिया की बात करें तो हर युग में व्यक्तिगत स्तर पर सृजन करने वालों की तुलना में युग-निर्माताओं की त
एलिस मुनरो की कहानी से
मेरी माँ मेरे लिए एक पोशाक बना रही थी। पूरे नवंबर के महीने में जब मैं स्कूल से आती तो माँ को रसोईघर में ही पाती। वह कटे
'उम्र हाथों से रेत की तरह फिसलती रहती है और अतीत का मोह है कि छूटता ही नहीं'
हिंदी की समादृत साहित्यकार मालती जोशी का बुधवार, 15 मई को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वर्ष 2018 में साहित्य और शिक्ष
‘लापता लेडीज़’ देखते हुए
‘लापता लेडीज़’ देखते हुए मेरे अंदर संकेतों और प्रतीकों की पहचान करने वाली शख़्सियत को कुछ वैसा ही महसूस हुआ जो कोड्स की स
नाऊन चाची जो ग़ायब हो गईं
वह सावन की कोई दुपहरी थी। मैं अपने पैतृक आवास की छत पर चाय का प्याला थामे सड़क पर आते-जाते लोगों और गाड़ियों के कोलाहल को
स्त्री सेक्सुअलिटी के पहलू
यदि कोई स्त्री कहे कि उसे सेक्स की चाह है, उसकी कामभावनाएँ असंतुष्ट हैं तो इसे क्या कहा जाएगा? हमारे समाज में समस्या यह