स्त्री पर बेला
स्त्री-विमर्श भारतीय
समाज और साहित्य में उभरे सबसे महत्त्वपूर्ण विमर्शों में से एक है। स्त्री-जीवन, स्त्री-मुक्ति, स्त्री-अधिकार और मर्दवाद और पितृसत्ता से स्त्री-संघर्ष को हिंदी कविता ने एक अरसे से अपना आधार बनाया हुआ है। प्रस्तुत चयन हिंदी कविता में इस स्त्री-स्वर को ही समर्पित है, पुरुष भी जिसमें अपना स्वर प्राय: मिलाते रहते हैं।
08 दिसम्बर 2024
हान कांग के उपन्यासों में अवसाद
Is it true that human beings are fundamentally cruel? Is the experience of cruelty the only thing we share as a species? (The Prisoner 1990, Human Acts) हान कांग के उपन्यासों को पढ़ने की होड़ और
क्यों हताश कर रही हैं स्त्री आलोचक?
लेख से पूर्व रोहिणी अग्रवाल की आलोचना की मैं क़ायल हूँ। उनके लिए बहुत सम्मान है, हालाँकि उनसे कई वैचारिक मतभेद हैं। ‘हिन्दवी’ के विशेष कार्यक्रम ‘संगत’ में अंजुम शर्मा को दिया गया उनका साक्षात्कार
उर्फ़ी जावेद के सामने हमारी हैसियत
हिंदी-साहित्य-संसार में गोष्ठी-संगोष्ठी-समारोह-कार्यक्रम-आयोजन-उत्सव-मूर्खताएँ बग़ैर कोई अंतराल लिए संभव होने को बाध्य हैं। मुझे याद पड़ता है कि एक प्रोफ़ेसर-सज्जन ने अपने जन्मदिन पर अपने शोधार्थी से
छठ, शारदा सिन्हा और ये वैधव्य के नहीं विरह के दिन थे...
मुझे ख़ूब याद है जब मेरी दादी गुज़र गई थीं! वह सुहागिन गुज़री थीं। उनकी मृत्यु के समय खींची गईं तस्वीरों में एक तस्वीर ऐसी है कि देखकर बरबस रोना आता है। पीयर (पीली) दगदग गोटेदार पुतली साड़ी में लिपटी
गिफ़्टेड : एक जीनियस बच्ची के बचपन को बचाने की कहानी
अपनी माँ की भाषा में कहूँ तो गिफ़्टेड एक मामा और भांजी के एक आत्मीय रिश्ते पर आधारित एक फ़िल्म है। मामा यानी माँ का भाई, गिफ़्टेड देखते हुए मुझे अपने मामा की याद बरबस ही आती रही कि कैसे उन्होंने हम भा
धरती पर हज़ार चीज़ें थीं काली और ख़ूबसूरत
इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता की नई पीढ़ी का स्वर बहुआयामी और बहुकेंद्रीय सामाजिक सरोकारों से संबद्ध है। नई पीढ़ी के कवियों ने अपने समय, समाज और राजनीति के क्लीशे को अलग भाष्य दिया है। अनुपम सिंह की क
अजंता देव की ताँत के धागों से खींची कविताएँ
अगर कोई कहे कि अपने लिए बस एक ही फ़ेब्रिक चुनो तो मैं चुनूँगी सूती। सूती में भी किसी एक जगह की बुनाई को ही लेने को मजबूर किया तो चुनूँगी—बंगाल; और बंगाल के दसियों क़िस्म की सूती साड़ियों में से भी कोई
24 अक्तूबर 2024
एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में...
हान कांग (जन्म : 1970) दक्षिण कोरियाई लेखिका हैं। वर्ष 2024 में, वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली दक्षिण कोरियाई लेखक और पहली एशियाई लेखिका बनीं। नोबेल से पूर्व उन्हें उनके उपन
देवदासी प्रथा : धर्म का नशा और दासी स्त्रियों का जीवन
यह सुदूर दक्षिण का उत्तरी इलाक़ा है। प्रकृति इतनी मेहरबान कि आँखों के आगे से पल भर के लिए भी हरियाली नहीं हटती। मुझे देश को समझने की तड़प और भटकन ने यहाँ लाकर पटका है। किताबों में जब पहली बार गाँव के
रसोई के ज़रिए संघर्ष, मुक्ति और प्रेम का वितान रचता उपन्यास
किताबें पढ़ने की यात्रा, मुझे उन्हें लिखने से कम रोमांचक नहीं लगती। ख़ासकर किताब अगर ऐसी हो कि तीन बजे देर रात भी—जब तक कि वह पूरी नहीं हो जाए—जगाए रखे, इस तरह की किताब से जुड़ी हर चीज़ स्मृति में अटक ज
जापान में आख़िरी दस दिन
तीसरी कड़ी से आगे... 13 अगस्त, 2020 भारत लौटने की 23 अगस्त की फ़्लाइट का कंफ़र्मेशन आ गया है एंबेसी से। अंतत: सीट पक्की हो गई। इतनी अनिश्चितता के बाद, कोई ख़बर आई है, लेकिन इस सूचना का क्या मतल
नया साल और कोरोना का वो उदास मौसम...
दूसरी कड़ी से आगे... 30 दिसंबर, नोज़ोमु के घर नोज़ोमु का मैसेज आया है, हमें 1 बजे स्टेशन के लिए निकलना है। मैं अपने छोटे से सूटकेस में सामान रख रही हूँ। हम ओइता और बेप्पू जा रहे हैं। ओइता में नोज़
एकतरफ़ा प्यार को लेकर क्या कह गए हैं ग़ालिब
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और दुनिया में कई ‘सुख़न-वर’ हुए हैं। अच्छे-से-अच्छे हुए हैं और आगे भी होंगे, पर ग़ालिब की इस बात को कोई नहीं नका
जापान डायरी : एक शहर अपने आर्किटेक्चर से नहीं लोगों से बनता है
पहली कड़ी से आगे... जनवरी 2020 यह मेरी सर्दी की छुट्टियों की पहली किश्त है। आशा है दूसरी किश्त को लिखने में इतना समय नहीं लूँगी। कल ओसाका की फ्लाइट है, हमें सुबह 8 बजे निकलना है। मैं खाने की
पुरुषों ने स्त्री-मन से कहीं अधिक स्त्री-तन का अध्ययन किया
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित कर रहा है। यह समारोह एनएसडी रंगमंडल की स्थापना के साठ वर्ष पूरे होन
'माई री मैं का से कहूँ' : स्त्रियों के अंतर्मन की पुकार
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित कर रहा है। यह समारोह एनएसडी रंगमंडल की स्थापना के साठ वर्ष पूरे होन
स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?
रात का एक अलग सौंदर्य होता है! एक अलग पहचान! रात में कविता बरसती है। रात की सुंदरता को जिसने कभी उपलब्ध नहीं किया, वह कभी कवि-कलाकार नहीं बन सकता—मेरे एक दोस्त ने मुझसे यह कहा था। उन्होंने मेरी तरफ़
मैं जब चाहे बाल नहीं धो सकती
“आज बाल नहीं धोने हैं।” “क्यों?” “आज एकादशी है।” “पर बाबा तो अभी-अभी शैंपू करके निकले हैं।” “तुमसे तो बात ही करना बेकार है। चार किताब पढ़ के आज के लैकन तेज हो जाई त ह थ...” औरतों का ब
वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है
‘वासना’ इच्छाओं का संतुलित नाम अर्थों के कई संदर्भों में समाहित है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं की संगीन गुफ़्तगू अपने विस्तारित क्षेत्र में जो कुछ कहती है, उसका सहजता से निर्मित एक वैचारिक आलोक जि
डिप्रेशन : नींद क्यूँ रात भर नहीं आती!
मैंने अवसाद पर कई कविताएँ लिखी हैं, लेकिन वे सारी बीते दिनों में किसी को देख-समझकर लिखी गई थीं। इन दिनों दिमाग़ की दवा खाने के बाद भी जिस तरह की नकारात्मकता अंदर और मेरे बाहर पर क़ाबिज़ हो गई है, वह दुः
‘मसरूफ़ औरत’ के बारे में
कला-साहित्य से जुड़ी दुनिया की बात करें तो हर युग में व्यक्तिगत स्तर पर सृजन करने वालों की तुलना में युग-निर्माताओं की तादाद हमेशा कम रही है। युग-निर्माताओं से मेरी मुराद ऐसे लोगों से है जिन्होंने के
'उम्र हाथों से रेत की तरह फिसलती रहती है और अतीत का मोह है कि छूटता ही नहीं'
हिंदी की समादृत साहित्यकार मालती जोशी का बुधवार, 15 मई को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वर्ष 2018 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वह लगभग 70
एलिस मुनरो की कहानी से
मेरी माँ मेरे लिए एक पोशाक बना रही थी। पूरे नवंबर के महीने में जब मैं स्कूल से आती तो माँ को रसोईघर में ही पाती। वह कटे हुए लाल मख़मली कपड़ों और टिश्यू पेपर डिज़ाइन की कतरनों के बीच घिरी हुई नज़र आत
‘लापता लेडीज़’ देखते हुए
‘लापता लेडीज़’ देखते हुए मेरे अंदर संकेतों और प्रतीकों की पहचान करने वाली शख़्सियत को कुछ वैसा ही महसूस हुआ जो कोड्स की सूँघकर पहचान कर देने वाले कुत्तों में होती है। मुझे लगा कि इस फ़िल्म के ज़ाहिर किए
नाऊन चाची जो ग़ायब हो गईं
वह सावन की कोई दुपहरी थी। मैं अपने पैतृक आवास की छत पर चाय का प्याला थामे सड़क पर आते-जाते लोगों और गाड़ियों के कोलाहल को देख रही थी। मैं सोच ही रही थी कि बहुत दिन हो गए, नाऊन चाची की कोई खोज-ख़बर नहीं
स्त्री सेक्सुअलिटी के पहलू
यदि कोई स्त्री कहे कि उसे सेक्स की चाह है, उसकी कामभावनाएँ असंतुष्ट हैं तो इसे क्या कहा जाएगा? हमारे समाज में समस्या यही है कि यह वाक्य सुनते ही सारा ध्यान इस वाक्य से हटकर इस वाक्य को कहने वाली पर