चिट्ठीरसा : कुछ परंपराओं का होना, जीवन का होना होता है
अर्चना लार्क
03 मई 2025
डाकिया आया है। चिट्ठी लाया है। ये शब्द अम्मा को चुभते थे। कहतीं चिट्ठीरसा आए हैं, बड़ी फुर्ती से उस दिन ओसारे से दुआर तक पहुँचतीं, जैसे कोई किसी अपने का इंतिज़ार करते माला जप रहा हो, और ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो।
अम्मा आश्वस्ति भरी साँस लेकर कहतीं, ‘‘देखा आज केकर सनेसा...’’
एक तेज़ आवाज़ आती, ‘‘कोनो सुनत अहे चाय पानी अबही तक नाही आई!’’
‘चिट्ठीरसा’ की ऐसी आवभगत करतीं अम्मा, जैसे वह उनका रिश्तेदार हो।
‘‘बेटवा भेनुसार से उठत होबा, केतना थक जात होबा। येहर से आवत घर भुला जिन करा, बिना चिठ्ठी के आइ जावा करा।’’ फिर बेना डुलाने लगतीं, ‘‘ई बिजिली नाम के अहे, बेना न होई तो गर्मी में जिऊ न बचई मनई के।’’ चिट्ठीरसा का पूरे घर-परिवार हाल चाल लेने के बाद, अम्मा पूछतीं, ‘‘अमेरिका से चिट्ठी आई होई...’’ फिर ऐसे ख़ुश होतीं, जैसे परदेस से कोई घर आ गया हो। वह ख़ुश होकर बतातीं, ‘‘एक हमर भइया (पापा) और एक ये दुइनो भइया (बड़े मामा, मँझले मामा) रिश्ता निभावई जानत हैं। बहिन राखी भेजेस, भईया तुरंत जवाब देहेस इहई तो असिल रिश्ता होई।’’
एक बार मेरी कोई चिट्ठी आई। उस रोज़ तो अम्मा ख़ुशी के मारे हँस-हँस के दुहरी हो गईं! वह जब ख़ूब हँसतीं, तो कोयल की के-के बचती... हम शैतान उन्हें चिढ़ाते तो ख़ूब गुस्सा होती थीं। वह बड़े ही गर्व से सबको कहतीं, ‘‘अर्चनवा के पढ़ई-लिखई के धवन ब, पढ़े ई।’’
अम्मा हर रिश्ते में जान डाल देतीं। वह हर रोज़ चिट्ठीरसा को ढूँढ़ती थीं। वह उसे साइकिल की घंटी से पहचानने लगी थीं, ‘‘पानी वानी धई दे, चिट्ठीरसा आवत अहें...’’
दूर से संदेश का आना—अम्मा के लिए व्यक्ति का आना हो जाता था।
वे जो मृत थे हमारे रिश्ते में, अम्मा के रहते वे कभी मृत नहीं हुए। वह रोज़ उनको याद करतीं और उनके गुण गिनवातीं...
संदेश मिलते ही दिन भर अम्मा के चेहरे पर आनंद छाया रहता। वह भावुक होकर गातीं, ‘‘मैं न लड़ी हो मोरा राम निकरी गए...’’
डाकिया शब्द की जगह, चिट्ठीरसा मैंने भी अपना लिया।
अम्मा उस रोज़ रस से ही तो सराबोर होती थीं, जिस रोज़ उनका ‘सनेस’ कोसों मील से उन तक पहुँचता था। चिट्ठी में उनका नाम आते ही ख़ूब देर तक आशीष देतीं, ‘‘भइया बना रहा, जिया निके रहा...’’
अम्मा हाथ जोड़े रखतीं—हरेक की सलामती की दुआ में।
अब अम्मा नहीं हैं...
चिट्ठीरसा बदल गए हैं; पर बिना चिट्ठी के भी चिट्ठीरसा आते हैं, अम्मा को याद करते हैं। अब भी वही आवभगत होती है उनकी, अब अम्मा की जगह माँ हैं। यह परंपरा चल रही है मेरे घर में, कुछ परंपराओं का होना—जीवन का होना होता है।
चिट्ठी में बसी हमारी परम सुंदरी अम्मा (दादी) अब भी चहकती हैं, ‘‘चिट्ठीरसा आए हैं, बहुत दूर से आए हैं। पानी लाओ, बिठाओ, पिलाओ, खिलाओ...’’
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
28 नवम्बर 2025
पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’
ग़ौर कीजिए, जिन चेहरों पर अब तक चमकदार क्रीम का वादा था, वहीं अब ब्लैक सीरम की विज्ञापन-मुस्कान है। कभी शेविंग-किट का ‘ज़िलेट-मैन’ था, अब है ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’। यह बदलाव सिर्फ़ फ़ैशन नहीं, फ़ेस की फि
18 नवम्बर 2025
मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं
Men are afraid that women will laugh at them. Women are afraid that men will kill them. मार्गरेट एटवुड का मशहूर जुमला—मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं; औरतें डरती हैं कि मर्द उन्हें क़त्ल
30 नवम्बर 2025
गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!
मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक
23 नवम्बर 2025
सदी की आख़िरी माँएँ
मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—जिन्होंने पैसेंजर ट्रेन में सफ़र किया है, छत के ऐंटीने से फ़्रीक्वेंसी मिलाई है,
04 नवम्बर 2025
जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक
—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें