सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भ
भोजपुरी मेरी मातृभाषा
मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। मेरी पैदाइश, परवरिश और तरबियत सब भोजपुरी के भूगोल में हुई है। मैं सोचता भोजपुरी में हूँ; मुझे
विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना
दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी
'सारा दिन सड़कों पे ख़ाली रिक्शे-सा पीछे-पीछे चलता है'
हमारी नई-नई शादी हुई थी और मैंने शिवानी से कहा, “अच्छा तुम्हें एक बात बताता हूँ।” उसने सिर हिलाया। मैंने कहा, “त
वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में
सब जानते हैं, इल्म से है ज़िंदगी की रूह… पर AI से?
तीसरी कड़ी से आगे... भाषा और विचार भाषा और विचार के संबंध में फिलॉसफी में एक पुराना और गहरा सवाल है। क्या हम भाषा
AI हमें पता है, तुम हमसे खेल रहे हो!
दूसरी कड़ी से आगे... नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) को आप एक मशीन के लिए भाषा में महा
AI अगले वीक ऑफ़ के लिए क्या ‘सोच’ रहे हो!
पहली कड़ी से आगे... गणना बनाम अंतर्ज्ञान साल 1997 में शतरंज की दुनिया ने एक ऐतिहासिक पल देखा, जब IBM के सुपरकंप्यू
AI तुम वस्ल और हिज्र के लुत्फ़-ओ-ग़म को कैसे महसूस करोगे!
दुनियाभर के टीनएजर रूबिक्स क्यूब नाम की एक नई रंगीन पहेली में उलझे थे। डार्थ वेडर (स्टार वार्स फ़्रैंचाइज़ी में एक काल्प
विनोद कुमार शुक्ल का आश्चर्यलोक
बहुत पहले जब विनोद कुमार शुक्ल (विकुशु) नाम के एक कवि-लेखक का नाम सुना, और पहले-पहल उनकी ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ हाथ लगी, तो
इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं
एक मैं उन दुखों की तरफ़ लौटती रही हूँ, जिनके पीछे-पीछे सुख के लौट आने की उम्मीद बँधी होती है। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे
कहानी : स्मृतियों की गर्म भाप में सीझता मन
मुझे ऐसे गले लगाओ जैसे मैं कल मरने वाला हूँ, और कल मुझे ऐसे गले लगाओ जैसे मैं मृतकों में से वापस आया हूँ! —निज़ार क़ब
जावेद आलम ख़ान की ‘स्याह वक़्त की इबारतें’ और अन्य कविताएँ पढ़ते हुए…
कविता की एक किताब में—एक ज़ख़्मी देश, एक आहत मन! एक कवि—जिसका नाम विमर्श में खो गया, जिसके चेहरे की ओर भी सबने नहीं देखा
सीधे कहानी में ले जाने वाली कहानियाँ
दामोदर मावज़ो ज्ञानपीठ और साहित्य अकादेमी—भारतीय साहित्य के दोनों बड़े सम्मानों से सम्मानित कथाकार हैं। देश में गिनती के ल
आज़ादी मिथ है... हम किसके ग़ुलाम हैं !
तुम्हारी अधेड़ नादानियों को कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है? इस नुक़्ते पर सोचते हुए घृणा या नफ़रत नहीं होती। अगर मैं कह
काश! बचपन में हम बड़े होने का सपना न देखते
पूर्व बाल्यावस्था में मिट्टी जीवन का सबसे अनमोल रत्न था। हम पूरे दिन मिट्टी में सने रहते थे। पैदा हुए तो मिट्टी से पेट भ
निर्वाण से नरक तक : जेंडर पुनर्मूल्यांकन सर्जरी के लिए जूझता भारतीय ट्रांसजेंडर
ट्रांस महिला रीता फ़ौजदार को जेंडर पुनर्मूल्यांकन सर्जरी के लिए पैसे जुटाने के दौरान यह नहीं पता था कि उसे ऑपरेशन के बाद
नल-दमयंती कथा : परिचय, प्रेम और पहचान
“...और दमयंती ने राजा नल को परछाईं से पहचान लिया!” स्वयंवर से पूर्व दमयंती ने नल को देखा नहीं था, और स्वयंवर में भी ज
रूमानियत पर एक रूमानी बातचीत
एक रोज़ जब लगभग सन्नाटा पसरने को था, मैंने अपने साथ खड़े लेखक से पूछा, “आप इतनी रूमानियत अपनी रचनाओं में क्यों भरते हैं?
बोरसी भर आँच : चीकू की चीख़ों में मनुष्य का चेहरा
“माँ कभी न थकने वाली चींटियों की तरह अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाती रहती।” चीकू की चमकीली पर पनीली आँखें दुनिया भर के दर्
‘शीशै’ को ‘शुक्रिया’ में बदलते हुए
साल 2015 में जब मैं ताइवान पहुँचा था तो बहुत रोया था। मेरा मन इस क़दर भटकता था कि मैं वहाँ पहुँचने के चार दिन बाद ही यह
अजंता देव की ताँत के धागों से खींची कविताएँ
अगर कोई कहे कि अपने लिए बस एक ही फ़ेब्रिक चुनो तो मैं चुनूँगी सूती। सूती में भी किसी एक जगह की बुनाई को ही लेने को मजबूर
24 अक्तूबर 2024
एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में...
हान कांग (जन्म : 1970) दक्षिण कोरियाई लेखिका हैं। वर्ष 2024 में, वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली
जापान में आख़िरी दस दिन
तीसरी कड़ी से आगे... 13 अगस्त, 2020 भारत लौटने की 23 अगस्त की फ़्लाइट का कंफ़र्मेशन आ गया है एंबेसी से। अंतत: सीट
वेयर इज़ द फ़्रेंड्स हाउस? : जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ सबसे सरल क्षणों में छिपी होती हैं
ईरानी सिनेमा के महान् शिल्पी अब्बास कियारोस्तमी एक ऐसे सिनेकार (जो चित्रकार बनना चाहते थे) थे, जिन्होंने फ़िल्म के कैनवा
उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की
मैं तब भी कुछ नहीं था, और आज भी नहीं, लेकिन कुछ तो तुमने मुझमें देखा होगा कि तुम मेरी तरफ़ उस नेमत को लेकर बढ़ीं, जिसकी दु
दिल्ली नायकों की आस में जीती है और उन्हीं की सताई हुई है
जिस तरह निर्मल वर्मा की सभी कृतियाँ बार-बार ‘वे दिन’ हो जाती हैं, कुछ उसी तरह मुझे भी इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं।
20 जुलाई 2024
‘द सेंस ऑफ़ एन एंडिंग’ : आशिक़ बना देने वाला नॉवेल
इंसान शायद इसीलिए सबसे अकेला जानवर भी है, क्योंकि उसने अपने लिए जीवन के उसूल बनाए हैं। जूलियन बार्न्स के नॉवेल ‘द स