प्रतिरोध पर बेला
आधुनिक कविता ने प्रतिरोध
को बुनियादी कर्तव्य की तरह बरता है। यह प्रतिरोध उस प्रत्येक प्रवृत्ति और स्थिति के विरुद्ध मुखर रहा है, जो मानव-जीवन और गरिमा की आदर्श स्थितियों और मूल्यों पर आघात करती हो। यहाँ प्रस्तुत है—प्रतिरोध विषयक कविताओं का एक व्यापक और विशिष्ट चयन।
यह ‘जल तू जलाल तू’ फ़िल्म की समीक्षा नहीं है
‘‘एक ज़माने पहले की बात है’’, लेकिन वो कौन-सी बात है जिसके बदलने से ज़माना बदल जाता है? ज़माना, जब कॉटन के साथ पॉलिस्टर म
दो दीमकें लो, एक पंख दो
मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर प
जावेद आलम ख़ान की ‘स्याह वक़्त की इबारतें’ और अन्य कविताएँ पढ़ते हुए…
कविता की एक किताब में—एक ज़ख़्मी देश, एक आहत मन! एक कवि—जिसका नाम विमर्श में खो गया, जिसके चेहरे की ओर भी सबने नहीं देखा
राजनीतिक संगठनकर्ताओं के बीच मुक्तिबोध
भारतीय आर्थिक ढाँचा एक बहुत बड़ी आबादी को ख़ाली समय की सुविधा ही नहीं देता कि वह साहित्य जैसे विषय को अपने जीवन से जोड़
जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं
कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडी
'मैं एक सतत अलक्षित अवाँगार्द हूँ'
सुख्यात कवि-कथाकार देवी प्रसाद मिश्र की किताब मनुष्य होने के संस्मरण हाल के दिनों में चर्चा में रही है। इस पुस्तक की अन्
‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’
जैसलमेर 10 मई 2023 आज जैसलमेर आया हूँ। अपनी भुआ के यहाँ। बचपन में यहाँ कुछ अधिक आना होता था। अब उतना नहीं रहा। दुपह