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प्रतिरोध पर बेला

आधुनिक कविता ने प्रतिरोध

को बुनियादी कर्तव्य की तरह बरता है। यह प्रतिरोध उस प्रत्येक प्रवृत्ति और स्थिति के विरुद्ध मुखर रहा है, जो मानव-जीवन और गरिमा की आदर्श स्थितियों और मूल्यों पर आघात करती हो। यहाँ प्रस्तुत है—प्रतिरोध विषयक कविताओं का एक व्यापक और विशिष्ट चयन।

19 अक्तूबर 2025

शरणार्थी शिविरों में समाए तिब्बती जीवन का दुख

शरणार्थी शिविरों में समाए तिब्बती जीवन का दुख

सेयरिंग यांगजोम लामा तिब्बती लेखक हैं। ‘वी मैज़र द अर्थ विथ ऑर बॉडिज़’ उनका पहला उपन्यास है। उनका जन्म और पालन-पोषण नेपाल के एक तिब्बती शरणार्थी समुदाय में हुआ। आपको कैसा महसूस होगा अगर आपको आपके

11 सितम्बर 2025

‘मुक्तिबोध’ की परम अभिव्यक्ति ‘विद्रोही’

‘मुक्तिबोध’ की परम अभिव्यक्ति ‘विद्रोही’

मुक्तिबोध का रहस्यमय व्यक्ति जो उनके परिपूर्ण का आविर्भाव है, वह रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ है। मुक्तिबोध के काव्य में बड़ी समस्या है—सेंसर की। वहाँ रचना-प्रक्रिया के तीसरे क्षण में ‘जड़ीभूत सौंदर्याभिरु

21 अगस्त 2025

काग़ज़ी है पैरहन : इस्मत चुग़ताई के बनने की दास्तान

काग़ज़ी है पैरहन : इस्मत चुग़ताई के बनने की दास्तान

उर्दू गद्य साहित्य की बेहतरीन और बहुचर्चित हस्ताक्षर इस्मत चुग़ताई की आत्मकथा है—‘काग़ज़ी है पैरहन’। यह किताब इस्मत चुग़ताई की शुरूआती ज़िंदगी और उनकी निर्मिति की कहानी को बहुत रोचक अंदाज़ में बयाँ करती है

08 जुलाई 2025

काँदनागीत : आँसुओं का गीत

काँदनागीत : आँसुओं का गीत

“स्त्रियों की बात सुनने का समय किसके पास है? स्त्रियाँ भी स्त्रियों की बात नहीं सुनना चाहतीं—ख़ासकर तब, जब वह उनके दुख-दर्द का बयान हो!” मैंने उनकी आँखों की ओर देखा। उनमें गहरा, काला अँधेरा जमा था,

01 मई 2025

यह ‘जल तू जलाल तू’ फ़िल्म की समीक्षा नहीं है

यह ‘जल तू जलाल तू’ फ़िल्म की समीक्षा नहीं है

‘‘एक ज़माने पहले की बात है’’, लेकिन वो कौन-सी बात है जिसके बदलने से ज़माना बदल जाता है? ज़माना, जब कॉटन के साथ पॉलिस्टर मिलाया जाना बहुत प्रचलित बात नहीं थी, जब ‘टाटा-बिरला’ शब्द-युग्म लोकप्रिय मुहावर

19 अप्रैल 2025

दो दीमकें लो, एक पंख दो

दो दीमकें लो, एक पंख दो

मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर पाने का मौक़ा दिया। मेरे लिए यह मौक़ा असाधारण तो नहीं, लेकिन कुछ दुर्लभ ज़रूर है। ल

24 जनवरी 2025

जावेद आलम ख़ान की ‘स्याह वक़्त की इबारतें’ और अन्य कविताएँ पढ़ते हुए…

जावेद आलम ख़ान की ‘स्याह वक़्त की इबारतें’ और अन्य कविताएँ पढ़ते हुए…

कविता की एक किताब में—एक ज़ख़्मी देश, एक आहत मन! एक कवि—जिसका नाम विमर्श में खो गया, जिसके चेहरे की ओर भी सबने नहीं देखा, लेकिन उसकी आवाज़ कुछ दिलों में, कुछ कविता की बातों के रास्ते पर, साहित्य के क

11 सितम्बर 2024

राजनीतिक संगठनकर्ताओं के बीच मुक्तिबोध

राजनीतिक संगठनकर्ताओं के बीच मुक्तिबोध

भारतीय आर्थिक ढाँचा एक बहुत बड़ी आबादी को ख़ाली समय की सुविधा ही नहीं देता कि वह साहित्य जैसे विषय को अपने जीवन से जोड़ सके।  चिंता : हिंदी के लेखक कई बार सामूहिक तौर पर तो कई बार व्यक्तिगत सीम

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य

06 जुलाई 2024

'मैं एक सतत अलक्षित अवाँगार्द हूँ'

'मैं एक सतत अलक्षित अवाँगार्द हूँ'

सुख्यात कवि-कथाकार देवी प्रसाद मिश्र की किताब मनुष्य होने के संस्मरण हाल के दिनों में चर्चा में रही है। इस पुस्तक की अन्य कथाओं पर यहाँ उनसे एक बातचीत की है—सरबजीत गरचा ने जो अँग्रेज़ी भाषा के जाने-म

10 अप्रैल 2024

‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’

‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’

जैसलमेर 10 मई 2023  आज जैसलमेर आया हूँ। अपनी भुआ के यहाँ। बचपन में यहाँ कुछ अधिक आना होता था। अब उतना नहीं रहा। दुपहर में साथी के साथ हमीरा जाना हुआ। दिवंगत साकर ख़ान के घर। जीवन में लय का बहुत मह