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बिंदुघाटी पर बेला

29 जून 2025

‘बिंदुघाटी’ पढ़ते तो पूछते न फिरते : कौन, क्यों, कहाँ?

‘बिंदुघाटी’ पढ़ते तो पूछते न फिरते : कौन, क्यों, कहाँ?

• उस लड़की की छवि हमेशा के लिए स्टीफ़न की आत्मा में बस गई, और फिर उस आनंद में डूबा हुआ पवित्र मौन किसी भी शब्द से नहीं टूटा...  आप सोच रहे होंगे कि यहाँ किसी आशिक़ की किसी माशूक़ के लिए मक़बूलियत की बा

15 जून 2025

बिंदुघाटी : करिए-करिए, अपने प्लॉट में कुछ नया करिए!

बिंदुघाटी : करिए-करिए, अपने प्लॉट में कुछ नया करिए!

• अवसर कोई भी हो सबसे केंद्रीय महत्व केक का होता है। वह बिल्कुल बीचोबीच होता हुआ, फूला हुआ, चमकता हुआ, अकड़ा हुआ, आकर्षित करता हुआ रखा होता है।  वह एक विचारहीन प्रविष्टि के रूप में हर जगह आवश्यक बन

01 जून 2025

बिंदुघाटी : ‘ठीक-ठीक लगा लो’ कहना मना है

बिंदुघाटी : ‘ठीक-ठीक लगा लो’ कहना मना है

• मैं भ्रम की चपेट में था कि फ़ेसबुक और वहाँ के विमर्शों की दुनिया ही अब एकमात्र रह गई है। इसमें जो कुछ छूट गया है—वह भी धीरे-धीरे इसका ही हिस्सा हो जाएगा। जब गत चार साल से मेरे फ़ेसबुकिया संक्रमण में

18 मई 2025

बिंदुघाटी : क्या किसी का काम बंद है!

बिंदुघाटी : क्या किसी का काम बंद है!

• जाते-जाते चैत सारी ओस पी गया। फिर सुबह की धरणी में मद महे महुए मिलने लगे। फिर जाते वैशाख वे भी विदा हुए। पाकड़ हों या पीपर, उनके तले गूदों से पटे पड़े हैं। चिड़ियों को चहचहाने के लिए और क्या चाहिए! भर

04 मई 2025

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

यहाँ प्रस्तुत इन बिंदुओं को किसी गणना में न देखा जाए। न ही ये किसी उपदेश या वैशिष्ट्य-विधान के लिए प्रस्तुत हैं। ऐसे असंख्य बिंदु संसार में हर क्षण पैदा हो रहे हैं। उनमें से कम ही अवलोकन के वृत्त में

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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