03 अगस्त 2025
बिंदुघाटी : अब घंटे चतुर्दिक बज रहे हैं
• नशे की वजह से कभी-कभार थोड़ा बहुत ग़ुस्सा बन जाता है और आपसी चिल्प-पों के बाद ऊपर आसमान में गुम हो जाता है। इस नशे की स्थिति में ऐसा भी लगता है कि हम सजग हो गए हैं। साहित्य के सन्वीक्षा-संसार में
13 जुलाई 2025
बिंदुघाटी : वाचालता एक भयानक बीमारी बन चुकी है
• संभवतः संसार की सारी परंपराओं के रूपक-संसार में नाविक और चरवाहे की व्याप्ति बहुत अधिक है। गीति-काव्यों, नाटकों और दार्शनिक चर्चाओं में इन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आधुनिक समाज-विज्ञान
29 जून 2025
‘बिंदुघाटी’ पढ़ते तो पूछते न फिरते : कौन, क्यों, कहाँ?
• उस लड़की की छवि हमेशा के लिए स्टीफ़न की आत्मा में बस गई, और फिर उस आनंद में डूबा हुआ पवित्र मौन किसी भी शब्द से नहीं टूटा... आप सोच रहे होंगे कि यहाँ किसी आशिक़ की किसी माशूक़ के लिए मक़बूलियत की बा
15 जून 2025
बिंदुघाटी : करिए-करिए, अपने प्लॉट में कुछ नया करिए!
• अवसर कोई भी हो सबसे केंद्रीय महत्व केक का होता है। वह बिल्कुल बीचोबीच होता हुआ, फूला हुआ, चमकता हुआ, अकड़ा हुआ, आकर्षित करता हुआ रखा होता है। वह एक विचारहीन प्रविष्टि के रूप में हर जगह आवश्यक बन
बिंदुघाटी : ‘ठीक-ठीक लगा लो’ कहना मना है
• मैं भ्रम की चपेट में था कि फ़ेसबुक और वहाँ के विमर्शों की दुनिया ही अब एकमात्र रह गई है। इसमें जो कुछ छूट गया है—वह भी धीरे-धीरे इसका ही हिस्सा हो जाएगा। जब गत चार साल से मेरे फ़ेसबुकिया संक्रमण में
बिंदुघाटी : क्या किसी का काम बंद है!
• जाते-जाते चैत सारी ओस पी गया। फिर सुबह की धरणी में मद महे महुए मिलने लगे। फिर जाते वैशाख वे भी विदा हुए। पाकड़ हों या पीपर, उनके तले गूदों से पटे पड़े हैं। चिड़ियों को चहचहाने के लिए और क्या चाहिए! भर
बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं
यहाँ प्रस्तुत इन बिंदुओं को किसी गणना में न देखा जाए। न ही ये किसी उपदेश या वैशिष्ट्य-विधान के लिए प्रस्तुत हैं। ऐसे असंख्य बिंदु संसार में हर क्षण पैदा हो रहे हैं। उनमें से कम ही अवलोकन के वृत्त में