श्रद्धांजलि : लोकगायक मांगे ख़ान मांगणियार
देवीलाल गोदारा
12 सितम्बर 2024
भूली चूकी करज्यो म्हाने माफ़ म्हारा मनड़ा मेळू रे
राजस्थान के मांगणियार समाज का एक स्वर खो गया। मांगे ख़ान दिल्ली के एक सुविख्यात बैंड ‘बाड़मेर बॉयज’ का प्रतिनिधि गायक था। बहुत सुरीला गायक। उसका जन्म मांगणियार परिवार में हुआ। कहावत है, जो बेसुरा हो, वह कैसा मांगणियार।
उसने सात साल की उम्र में हारमोनियम सीखा और बुज़ुर्गों की संगत और अभ्यास से अपने गले को इस लायक़ बनाया कि वह आसानी से सप्तक को छू ले। मांगे का गला रोज़ सप्तक को छूता था। सुर सिर्फ़ बंदिश, तान, पलटे और आलाप से ही नहीं सधता, एक साधक के लिए रियाज़ के साथ-साथ दिल में ग़रीबी और काया में करुणा भी चाहिए।
मांगे एक सच्चा स्वर-साधक था। उसकी तान रंजकता में जितनी संवेदनशील थी, ताल में उतनी ही पक्की थी। मैं उसे ऐसा ‘शापित गंधर्व’ कहता था, जो बुज़ुर्गों के सौंपे हुए सुरों की रास से हारमोनियम पर लय की सवारी करता था। किसी गुणीजन के शब्दों को थोड़ा पलटकर कहूँ तो कोयल थोड़ा और रियाज़ करती तो मांगे बन जाती।
अमररस (Amarras Records) नामक संस्थान के माध्यम से देश-विदेश में उसके कई शो हुए। शो की घोषणा होने के कुछ ही घंटों में सारी टिकटें सोल्ड आउट हो जाती थीं। मांगे को अक्षर ज्ञान भी नहीं था। इसलिए बुज़ुर्गों से जितने गाने सीखे, वही उसे याद थे, जिनकी संख्या बहुत कम थी। उसे मज़ाक़ में हम पाँच गानों का गायक कहते थे। कम गाने याद होना किसी भी लोकगायक के लिए अच्छा नहीं माना जाता; लेकिन मांगे को जो गाने याद थे या जिन्हें वह गाता था; वे शायद उसी के लिए रचे गए थे। ‘बोले तो मीठो लागे’, ‘रायचंद’, ‘राणाजी’, ‘अमराणे रो शहर’ जैसे गाने मांगे गाता था, ये गाने आज किसी भी औसत कलाकार के लिए ततैया का छत्ता है।
दुनियावी अर्थों में वह चालाक नहीं था, इसलिए बार-बार ठगा गया। उसे झूठ बोलना नहीं आता था, इसलिए छोटा-सा झूठ भी पकड़ में आ जाता था। लेकिन पहली बार ऐसा झूठ बोला कि मेरा भरोसा करने का मन हुआ। उसने झूठ बोला कि वह स्वस्थ है और जल्दी ही स्टेज पर वापस आएगा। मैंने भरोसा किया और उसके ठीक होने की दुआ की। उसे ऊपरवाले पर यक़ीन था, जीवन की कुछ और मोहलत पाने के लिए गंभीर बीमारी में भी किसी पीर की दरगाह में ज़ियारत करता रहा। सुरीला इंसान किसे प्यारा नहीं, दरगाह के पीर ने भी उसकी गुनगुनाहट सुनी ही होगी। अंततः बुला लिया अपने घर।
मंगा चला गया अनंत में। बरसों की मुलाक़ात का लिहाज़ किए बिना। उसके साथ ही चला गया लोक-गीतों की मिठास का एक हिस्सा। यूँ लगता है कि वीणा का एक तार टूट गया। मुझे उससे एक बार मिलना चाहिए था, नहीं मिल सका। अनेक योजनाएँ थीं हमारी, सब धरी रह गईं। यह अफ़सोस हमेशा रहेगा।
मांगे से मेरी पहली मुलाक़ात मुझे याद नहीं, लेकिन बाद की अनंत मुलाक़ातें मेरी स्मृति में हैं। उसने मुझे हारमोनियम सिखाने की असफल कोशिश की थी, इसलिए मैं कभी-कभी शिष्य-भाव में आकर उसके पैर छूता था।
‘अंजस महोत्सव’ में लोकसंगीत की प्रस्तुति के लिए राजस्थान के सुप्रसिद्ध गायक मुख्तियार अली, मांगी बाई, उस्ताद अनवर ख़ान आदि के साथ ही ‘बाड़मेर बॉयज’ को भी बुलाया गया था, जिसका मुख्य गायक मांगे था। मुख्तियार अली ने मांगे को देखकर हँसते हुए कहा था कि जिस बैंड में पचास साल का आदमी मुख्य गायक हो, उसे ‘बाड़मेर बॉयज’ क्यों कह रहे हो? बहरहाल, मंगे ने अपने कार्यक्रम में पारंपरिक लोकगीतों का ऐसा रंग जमाया कि बार-बार ‘वन टू थ्री फ़ोर’ की बीट देने वाले और ‘तालियों’ की डिमांड करने वाले तथाकथित स्टार की चमक को धुँधला कर दिया।
लोक गीतों के नाम पर फूहड़ और चालू गीतों से लोक-संगीत की ऐसी-तैसी करने वाली डीजे संस्कृति में निजता से अभिभूत करने वाली आवाज़ मांगे की ही हो सकती थी। कार्यक्रम के बाद मुख्तियार मीर का कहना कि मांगे पचास का नहीं, पंद्रह साल का ‘बॉय’ ही है; मुझे हमेशा याद रहेगा।
लोकगीतों का समुद्र लहराता रहेगा, वक़्त के साज पर राग-रागिनियाँ गाई जाती रहेंगी, दुनिया का चमन खिलता रहेगा, सिलसिलों का कोई अंत नहीं होता, फिर भी दुनियावी अर्थों में कोई तारा टूटता है तो लगता है, कहीं बड़े गहरे अर्थों में मांगे के साथ ही राजस्थानी लोक गायिकी का एक सुर विकल हो गया है। थार का एक सांगीतिक झरना सूख गया है। लोकगीतों की महान परंपरा से एक गीत कम हो गया है।
http://https://youtu.be/WHjINq6sohE?si=SfshknaHSuZuF0ve
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
25 अक्तूबर 2025
लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में
हमारे यहाँ अनेक लेखक हैं, जो अध्यापन करते हैं। अनेक ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने क्लास में बैठकर उनके लेक्चरों के नोट्स लिए होंगे। परीक्षोपयोगी महत्त्व तो उनका अवश्य होगा—किंतु वह तो उन शिक्षकों का भी
06 अक्तूबर 2025
अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव
एक पहलवान कुछ न समझते हुए भी पाँड़े बाबा का मुँह ताकने लगे तो उन्होंने समझाया : अपने धर्म की व्यवस्था के अनुसार मरने के तेरह दिन बाद तक, जब तक तेरही नहीं हो जाती, जीव मुक्त रहता है। फिर कहीं न
27 अक्तूबर 2025
विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना
दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी डालियों पर फुदक-फुदक कर उसने उड़ना सीखा था। विकुशु को अपने सामने देखना जादू है।
31 अक्तूबर 2025
सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भुला देती है। उसकी अंतर्वस्तु में आदमी को सुस्त और खिन्न करने तत्त्व हैं। उसके स
18 अक्तूबर 2025
झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना
मेरा जन्म झाँसी में हुआ। लोग जन्मभूमि को बहुत मानते हैं। संस्कृति हमें यही सिखाती है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है, इस बात को बचपन से ही रटाया जाता है। पर क्या जन्म होने मात्र से कोई शहर अपना ह