
स्वच्छ क्रांति तो प्रेम व न्याय के सिद्धांत से ही हो सकती है।

मनुष्य को चाहिए कि वह ईर्ष्यारहित, स्त्रियों का रक्षक, संपत्ति का न्यायपूर्वक विभाग करने वाला, प्रियवादी, स्वच्छ तथा स्त्रियों के निकट मीठे वचन बोलने वाला हो, परंतु उनके वश में कभी न हो।

हमारा काम तभी अंतरात्मा से प्रेरित हो सकता है जब अपने-आप में वह स्वच्छ हो, उसका हेतु स्वच्छ हो और उसका परिणाम भी स्वच्छ हो।

ग़लती स्वीकार करना झाड़ू के समान है, जो गंदगी को हटाकर सतह को साफ़ कर देती है।

यह कितनी ग़लत बात है कि हम मैले रहें और दूसरों को साफ़ रहने की सलाह दें।

असली भंगी को भीतर की भी सफ़ाई करनी होती है, जो मैं कर रहा हूँ।

जो आदमी अपने हाथ साफ़ नहीं रखता, वह साफ़ चीज़ क्या देखेगा और उसकी कहाँ तक क़दर करेगा।

ईंट-चूने की चुनाई पहले हृदय-मंदिर की चुनाई बहुत ज़रूरी है अगर यह हो जाए तो और सब तो हुआ ही है।

जब चीज़ें साफ़ होती हैं, काफ़ी देर हो चुकती है।

आज की भारतवर्ष की स्थिति में कताई तथा मलमूत्र साफ़ करके इसकी उचित व्यवस्था करना, आश्रम में यज्ञ-कर्म माना गया है।

मल, कूड़ा-करकट आदि अनर्थकारी पदार्थों के संबंध की व्यवस्था के लिए किया हुआ परिश्रम भी, यज्ञ का एक प्रकार ही कहा जाता है। ऐसा परिश्रम हरेक को अवश्य करना चाहिए।