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पुनर्जन्म पर उद्धरण

भारतीय धार्मिक-सांस्कृतिक

अवधारणा में पुनर्जन्म मृत्यु के बाद पुनः नए शरीर को धारण करते हुए जन्म लेना है। यह अवधारणा अनिवार्य रूप से भारतीय काव्य-रूपों में अभिव्यक्ति पाती रही है। प्रस्तुत चयन उन कविताओं का संकलन करता है, जिनमें इस अवधारणा को आधार लेकर विविध प्रसंगों की अभिव्यक्ति हुई है।

धर्म कुछ संकुचित संप्रदाय नहीं है, केवल बाह्याचार नहीं है। विशाल, व्यापक धर्म है ईश्वरत्व के विषय में हमारी अचल श्रद्धा, पुनर्जन्म में अविरल श्रद्धा, सत्य और अहिंसा में हमारी संपूर्ण श्रद्धा।

महात्मा गांधी

मेरा मानना है कि कुछ ऐसे लोग हैं जिनमें चीज़ों को आपस में मिलाकर उन्हें पुनर्जीवित करने की ताक़त होती है।

एलेन सिक्सू

क्या तबाही के बाद ही हमारा पुनर्जन्म संभव है?

चक पैलनिक

मैं नर्क की तुलना में पुनर्जन्म में विश्वास करती हूँ। अगर लौटने का विकल्प हो, तब पुनर्जन्म का विचार और भी अधिक सहनीय हो जाता है।

डेबोरा फ़ेल्डमैन

हिंसा मनुष्य द्वारा स्वयं का पुनर्निर्माण है।

फ्रांत्ज़ फ़ैनन

भूलना पुनर्जन्म की तरह है।

हुआन रामोन हिमेनेज़

हे जगत्पति! मुझे धन की कामना है, जन की,न सुंदरी की और कविता की। हे प्रभु! मेरी कामना तो यह है कि जन्म-जन्म में आपकी अहैतुकी भक्ति करता रहूँ।

चैतन्य महाप्रभु

भय का हेतु क्या है? पूर्व जन्मों में किए हुए शुभाशुभ कर्म। परम आश्रय कौन है? भगवान् श्री हरि का भक्त। माँगने योग्य वस्तु क्या है? श्री हरि की भक्ति। सुख क्या है? उन्हीं श्री हरि की भक्ति का परम प्रेम।

जीव गोस्वामी

धर्म आध्यात्मिक परिवर्तन है, एक अंतर्मुखी रूपांतरण है। यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाना है, आत्मोद्धारहीनता से आत्मोद्धार की स्थिति में पहुँचना है। यह एक जागरण है. एक प्रकार की पुनर्जन्मता है।

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

मेरी दृष्टि से पुनर्जन्म शास्त्रीय प्रयोगों और अनुभव से सिद्ध वस्तु है।

महात्मा गांधी