विश्वास पर दोहे

विश्वास या भरोसे में

आश्वस्ति, आसरे और आशा का भाव निहित होता है। ये मानवीय-जीवन के संघर्षों से संबद्ध मूल भाव है और इसलिए सब कुछ की पूँजी भी है। इस चयन में इसी भरोसे के बचने-टूटने के वितान रचती कविताओं का संकलन किया गया है।

जब आँखों से देख ली

गंगा तिरती लाश।

भीतर भीतर डिग गया

जन जन का विश्वास॥

जीवन सिंह

'जीवन' जोड़े खड़ा था

जब ग़रीब निज हाथ।

पीते देखा था तुम्हें

ताक़तवर के साथ॥

जीवन सिंह

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