साहित्य और संस्कृति की घड़ी
“आज बाल नहीं धोने हैं।” “क्यों?” “आज एकादशी है।” “पर बाबा तो अभी-अभी शैंपू करके निकले हैं।” “तुमसे तो बात ही करना बेकार है। चार किताब पढ़ के आज के लैकन तेज हो जाई त ह थ...” औरतों का बा
मेरे एक मित्र हैं सुखलाल जी। उनसे मेरी मित्रता के लगभग तीस साल होने को हैं। वैसे तो वह मेरे साथ दिल्ली महानगर में एक प्रकाशन में काम कर चुके हैं, लेकिन उनसे और नज़दीकियाँ इसलिए हैं कि वह मेरे गाँव क्
बुद्धिजीवियों ने अपना वाहन नहीं बदला। आज भी गधे उनके पसंदीदा वाहन हैं। ...एक गधे को दूसरे गधे से बहुत ईर्ष्या होती है। बुद्धिजीवी कभी घोड़े क
जिस तरह निर्मल वर्मा की सभी कृतियाँ बार-बार ‘वे दिन’ हो जाती हैं, कुछ उसी तरह मुझे भी इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं। — ज्ञानरंजन एक ...और मुझे दिल्ली के ‘वे दिन’ याद आते हैं, और बेतरतीब याद
गत 31 जुलाई 2024 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में महान् साहित्यकार प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में ‘प्रेमचंद का महत्त्व’ शीर्षक विचार-गोष्ठी का आयोजन विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विव
‘हिन्दवी’ ने बीते दिनों अपने चार वर्ष पूरे किए। अच्छे-बुरे से परे ‘हिन्दवी’ कभी चर्चा से बाहर नहीं रहा। ‘हिन्दवी’—‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ का ही उपक्रम है। ‘जश्न-ए-रेख़्ता’ में ख़ूब भीड़ होती है। सवाल यह
गत चार वर्षों से हो रहे ‘हिन्दवी उत्सव’ की शृंखला का यह तीसरा आयोजन था, जो डिजिटल नहीं बल्कि पाठकों के बीच (साथ) हुआ। ज़ाहिर है, इन वर्षों में ‘हिन्दवी’ ने जिस तरह का मुक़ाम हासिल कर लिया है, उससे इत
“आप आ रहे हैं, बड़ी ख़ुशी हुई। अवश्य आइए। आपसे न-जाने कितनी बातें करनी हैं। मेरे मकान का पता है— बेनिया-बाग़ में तालाब के किनारे लाल मकान। किसी इक्केवाले से कहिए, वह आपको बेनिया-पार्क पहुँचा देगा
हिंदी साहित्य को समर्पित रेख़्ता फ़ाउंडेशन के उपक्रम ‘हिन्दवी’ की चौथी वर्षगाँठ के मौक़े पर—28 जुलाई 2024 के रोज़, त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस, नई दिल्ली में ‘हिन्दवी उत्सव’ आयोजित हुआ। ‘हिन्दवी
‘हिन्दवी’ अब दूर है। उसके आयोजन भी। जब दिल्ली में था तो एक दफ़ा (लखनऊ में ‘हिन्दवी’ उत्सव के आयोजन पर) सोच रहा था कि लखनऊ में क्यों नहीं हूँ? अब लखनऊ में बैठा सोचता हूँ कि ‘हिन्दवी’ के इस आयोजन के समय
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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