साहित्य और संस्कृति की घड़ी
तुम्हारे जाने के सोलह दिन बाद... डियर जिता, हम कुछ भी हो सकते थे। हम स्कूल से साथ निकलकर अपने-अपने घर जाते हुए थोड़ा-सा बचे रह सकते थे—एक दूसरे के पास! हम उस पहले झगड़े के शब्द बन सकते थे जो हमारे
07 जून 2025
लड़कियों को अक्सर उनका आधा सच ही पता होता है। उम्र जब चौदह की सीढ़ी पर चढ़ती है, तब वह ख़ुद से पूछती है—करियर चुने या प्र
यह संस्मरण भूमंडलीय पीढ़ी का देहाती क़िस्सा है। गाँव-देहात को इसलिए नहीं याद कर रहा हूँ कि मेरे पास कुछ कहने के लिए कुछ य
ट्रेन की खिड़कियों से आ रही चीनी मिल की बदबू हमें रोमांचित कर रही थी। आधुनिक दुनिया की आधुनिक वनस्पतियों की कृत्रिम सुगंध
30 मई 2025
जीवन मुश्किल चीज़ है—तिस पर हिंदी-लेखक की ज़िंदगी—जिसके माथे पर रचना की राह चलकर शहीद हुए पुरखे लेखक की चिता की राख लगी हु
एक कमरे का सपना देखते हुए हमें कितना कुछ छोड़ना पड़ता है! मेरी दादी अक्सर उदास मन से ये बातें कहा करती थीं। मैं तब छो
कई दिनों की लगातार बारिश के बाद मेरे घर के आँगन में यहाँ-वहाँ बारिश का साफ़ पानी तरह-तरह के आकारों में बैठ गया है। आँगन म
बहुत पहले जब विनोद कुमार शुक्ल (विकुशु) नाम के एक कवि-लेखक का नाम सुना, और पहले-पहल उनकी ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ हाथ लगी, तो
एक दिन दोपहर की चिलचिलाती धूप में, मैं बिल्कुल सामान्य तरीक़े से सड़क पार कर रही थी। तभी अचानक, एक बाइक वाले ने मुझे इतन
गाओची रोड से मेरा पहला परिचय तब हुआ था, जब मैं इस सड़क के किनारे वाली कॉलोनी में कमरे की तलाश में गया था। कमरा मुझे रसोई