साहित्य और संस्कृति की घड़ी
23 अक्तूबर 2025
“जिन हाथों में फ़िल्म की क़िस्मत है, वे बदक़िस्मती से इसे इंडस्ट्री समझ बैठे हैं। इंडस्ट्री को ‘मज़ाक़’ और इसलाह से क्या निस्बत? वह तो एक्सप्लायट करना जानती है और यहाँ इंसान के मुक़द्दसतरीन (पवित्रतम)
यह घटना नवंबर के आस-पास की है, जब सेमेस्टर का ख़ौफ़ हर विद्यार्थी पर तारी होता है। इन दिनों में हर अच्छा और गदहा विद्यार्थी आपको रट्टा मारते मिलेगा और बात अगर हॉस्टल में रहने वाले लड़कों की हो तो कहन
नाटक शुरू होने के पहले की थर्ड बेल बजती है। नाट्यशाला का अँधेरा गाढ़ा होते-होते किसी प्रागैतिहासिक, चंद्रमा विहीन रात्रि के ठोस अँधेरे में बदल जाता है। और तब पृथ्वी के किसी सुदूर कोने से एक वृंदगान क
मेरा जन्म झाँसी में हुआ। लोग जन्मभूमि को बहुत मानते हैं। संस्कृति हमें यही सिखाती है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है, इस बात को बचपन से ही रटाया जाता है। पर क्या जन्म होने मात्र से कोई शहर अपना ह
एक बड़ी घटना जिस समय घट रही थी, उस समय मैं बरौनी ग्वालियर एक्सप्रेस में थर्ड एसी के कोच में सामान चढ़ाकर हाँफ रहा था। साँस फेफड़ों के उस कोने में आसानी से नहीं पहुँच पा रही, जहाँ से ख़ून अपने हिस्से का ऑ
15 अक्तूबर 2025
साहित्य के क्षेत्र में 2025 का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई को पिछले एक दशक में पढ़ते हुए बार-बार यह महसूस होता है कि मैं ऐसे लेखक की संगत में हूँ, जो अपनी भाषा की ज़मी
आँगन की वह जगह जहाँ छप्पर का पानी धरती पर ढरता है, उसे ‘ओरी’ कहते हैं। कवि मलिक मोहम्मद जायसी कहते हैं—‘बरिसै मघा झँकोरि झँकोरी। मोर दुइ नैन चुवहिं जसि ओरी॥’ ओरी का इससे सुंदर बिंब और क्या होगा। अनवर
चोर की माँ पटना में ग़रीबों के एक मसीहा चिकित्सक थे। उनके पास प्रदेश के सुदूर इलाक़े के बहुत सारे ग़रीब रोग-व्याधि, दुख-संताप लेकर आते थे। ग़रीबी को सबसे बड़ी बीमारी मानने वाले मसीहा डॉक्टर के पास
कभी-कभी कवि का प्रेम शब्दों में नहीं, बल्कि उन शब्दों के बीच की निस्तब्धता में छिपा होता है। वह प्रेम जो दिखता नहीं, पर हर पंक्ति में स्पंदित रहता है—मंद, गूढ़ और अनाम। कवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और क
11 अक्तूबर 2025
सखी दिल्ली, कैसी हो? मुझे पहचाना? मैं वही लड़की जो पहले रोज़गार के लिए तुमसे पहली बार मिली थी, उस मौसम में जिसके लिए तुम्हें सबसे ज़्यादा कोसा और प्यार किया जाता है। जिस मौसम तुम कोहरे में कुछ धुँ