Font by Mehr Nastaliq Web

बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

23 अप्रैल 2025

‘किताब एक स्त्री की आत्मा का घर है’

‘किताब एक स्त्री की आत्मा का घर है’

चमत्कार घटित होते हैं। एक दिन अप्रत्याशित ढंग से उसके काँधे पर एक कोमल और प्रेमिल स्पर्श इस क़दर हल्का आकर उतरता है कि उसके काँधे हमेशा के लिए उचक जाते हैं। वह स्पर्श ताउम्र उसके जीवन में एक फूल बन

22 अप्रैल 2025

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो-2

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो-2

पहली कड़ी से आगे... इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था। दोपहर हो गई थी। बिस्तर मेरे भार से दबा हुआ था। मुझे उसे दबाएँ रखने क

19 अप्रैल 2025

दो दीमकें लो, एक पंख दो

दो दीमकें लो, एक पंख दो

मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर प

18 अप्रैल 2025

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

एक मैं उन दुखों की तरफ़ लौटती रही हूँ, जिनके पीछे-पीछे सुख के लौट आने की उम्मीद बँधी होती है। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे

17 अप्रैल 2025

दिन के सारे काम रात में गठरी की तरह दिखते हैं

दिन के सारे काम रात में गठरी की तरह दिखते हैं

रात की बारिश रात के चौथे पहर से बारिश का आख़िरी टुकड़ा लटक रहा है लैम्पपोस्ट पर क़ायम हुई थकन पत्तियों पर चमकती गीली

17 अप्रैल 2025

दास्तान-ए-गुरुज्जीस-3

दास्तान-ए-गुरुज्जीस-3

दूसरी कड़ी से आगे... उन दिनों अमूमन सर्दी-गर्मी की छुट्टियाँ ननिहाल में बीतती थी। नाना को साहित्य, संगीत, गीत से प्रे

16 अप्रैल 2025

कहानी : चोट

कहानी : चोट

बुधवार की बात है, अनिरुद्ध जाँच समिति के समक्ष उपस्थित होने का इंतज़ार कर रहा था। चौथी मंजिल पर जहाँ वह बैठा था, उसके ठी

14 अप्रैल 2025

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो!

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो!

“आप प्रयागराज में रहते हैं?” “नहीं, इलाहाबाद में।” प्रयागराज कहते ही मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है, अगर मैं बोलने की

12 अप्रैल 2025

भारतीय विज्ञान संस्थान : एक यात्रा, एक दृष्टि

भारतीय विज्ञान संस्थान : एक यात्रा, एक दृष्टि

दिल्ली की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी के बीच देश-काल परिवर्तन की तीव्र इच्छा मुझे बेंगलुरु की ओर खींच लाई। राजधानी की ठंडी सुबह

10 अप्रैल 2025

दास्तान-ए-गुरुज्जीस-2

दास्तान-ए-गुरुज्जीस-2

पहली कड़ी से आगे... हमने जैसे-तैसे पाँचवीं कक्षा पास कर ली, या ऐसे कहें कि मास्टर की पोती होने के एवज में हमें पाँचवा