Font by Mehr Nastaliq Web

बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

05 मई 2025

‘स्पर्श : दुपहर में घर लौटने जितना सुख’

‘स्पर्श : दुपहर में घर लौटने जितना सुख’

सोमवार से बहाल हुई दिनचर्या शुक्रवार शाम की राह तकती है—दरमियान का सारा वक़्त अनजाने निगलते हुए। एक जानिब को कभी लगा ही नहीं कि सुख शनिवार का नहीं, उसके पास जाने की हल्की तलब का होता है। कितना मुश्किल

04 मई 2025

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

यहाँ प्रस्तुत इन बिंदुओं को किसी गणना में न देखा जाए। न ही ये किसी उपदेश या वैशिष्ट्य-विधान के लिए प्रस्तुत हैं। ऐसे असंख्य बिंदु संसार में हर क्षण पैदा हो रहे हैं। उनमें से कम ही अवलोकन के वृत्त में

03 मई 2025

चिट्ठीरसा : कुछ परंपराओं का होना, जीवन का होना होता है

चिट्ठीरसा : कुछ परंपराओं का होना, जीवन का होना होता है

डाकिया आया है। चिट्ठी लाया है। ये शब्द अम्मा को चुभते थे। कहतीं चिट्ठीरसा आए हैं, बड़ी फुर्ती से उस दिन ओसारे से दुआर तक पहुँचतीं, जैसे कोई किसी अपने का इंतिज़ार करते माला जप रहा हो, और ईश्वर ने उसकी

02 मई 2025

उर्दू में हिंदू-धर्म का प्रचार-प्रसार : कुछ उदाहरण

उर्दू में हिंदू-धर्म का प्रचार-प्रसार : कुछ उदाहरण

ये लेख मूलतः एक किताब पर आधारित है। उस किताब में दी गई जानकारियों को यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसा दो-तीन कारणों से किया जा रहा है। एक तो ये कि वो किताब उर्दू में है, इसलिए हिंदी-पाठक

01 मई 2025

यह ‘जल तू जलाल तू’ फ़िल्म की समीक्षा नहीं है

यह ‘जल तू जलाल तू’ फ़िल्म की समीक्षा नहीं है

‘‘एक ज़माने पहले की बात है’’, लेकिन वो कौन-सी बात है जिसके बदलने से ज़माना बदल जाता है? ज़माना, जब कॉटन के साथ पॉलिस्टर मिलाया जाना बहुत प्रचलित बात नहीं थी, जब ‘टाटा-बिरला’ शब्द-युग्म लोकप्रिय मुहावर

30 अप्रैल 2025

इमली, इलाहाबाद, इश्क़

इमली, इलाहाबाद, इश्क़

बचपन का इलाहाबाद बहुत खुला-खुला था। उसकी सड़कें खुली और ख़ाली थीं। सड़कों के अगल-बग़ल बाग़, जंगल और पेड़ बहुत थे। एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले तक की दूरी तब बहुत लंबी और वीरान हुआ करती थी। हमारी तरफ़ से आ

27 अप्रैल 2025

रविवासरीय : 3.0 : इन पंक्तियों के लेखक का ‘मैं’

रविवासरीय : 3.0 : इन पंक्तियों के लेखक का ‘मैं’

• विषयक—‘‘इसमें बहुत कुछ समा सकता है।’’ इस सिलसिले की शुरुआत इस पतित-विपथित वाक्य से हुई। इसके बाद सब कुछ वाहवाही और तबाही की तरफ़ ले जाने वाला था। • एक बिंदु भर समझे गए विवेक को और बिंदु दिए गए

23 अप्रैल 2025

किताब एक स्त्री की आत्मा का घर है

किताब एक स्त्री की आत्मा का घर है

चमत्कार घटित होते हैं। एक दिन अप्रत्याशित ढंग से उसके काँधे पर एक कोमल और प्रेमिल स्पर्श इस क़दर हल्का आकर उतरता है कि उसके काँधे हमेशा के लिए उचक जाते हैं। वह स्पर्श ताउम्र उसके जीवन में एक फूल ब

22 अप्रैल 2025

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो-2

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो-2

पहली कड़ी से आगे... इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था। दोपहर हो गई थी। बिस्तर मेरे भार से दबा हुआ था। मुझे उसे दबाएँ रखने की आज की मियाद पूरी हो गई थी। वह‌ बिस्तर ओवरटाइम काम कर रहा था। जब उसे लगा कि मै

21 अप्रैल 2025

‘अजब तोरी दुनिया हो मोरे रामा...’

‘अजब तोरी दुनिया हो मोरे रामा...’

बरस 1947 है,  तारीख़ 14 अगस्त,  दिन गुरुवार,  रात का समय। जब जवाहरलाल नेहरू अपना चुस्त पजामा और शेरवानी पहन रहे थे, संसद में देने वाले थे अपना ऐतिहासिक वक्तव्य। उसी वक़्त मेरे परदादा खेत के मुँडेर