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माँ पर बेला

किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द

को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।

23 अगस्त 2025

एक स्त्री : माँ भी, पिता भी

एक स्त्री : माँ भी, पिता भी

पिता की अनुपस्थिति में पिता बनती एक स्त्री आज मैं अपने पिता के बारे में नहीं, अपने बच्चे के पिता के बारे में बात करना चाहती हूँ। घर में हम तीन बहनें थीं। सबसे बड़ी बहन को माँ बनने में बहुत कठिनाई

07 जुलाई 2025

हथेलियों में बारिश भरती माँ

हथेलियों में बारिश भरती माँ

इलाहाबाद उस दिन मेघों से आच्छादित रहा। कुछ देर तक मूसलाधार फिर रुक-रुक कर बारिश होती रही। मैं अपने कमरे में बैठा अमरूद के पेड़ पर गिर रही बूँदों को देख रहा था। देखते हुए स्मृतियों की बूँदें मेरे मन प

16 मई 2024

एलिस मुनरो की कहानी से

एलिस मुनरो की कहानी से

मेरी माँ मेरे लिए एक पोशाक बना रही थी। पूरे नवंबर के महीने में जब मैं स्‍कूल से आती तो माँ को रसोईघर में ही पाती। वह कटे हुए लाल मख़मली कपड़ों और टिश्‍यू पेपर डिज़ाइन की कतरनों के बीच घिरी हुई नज़र आत

26 अप्रैल 2024

पिता के बारे में

पिता के बारे में

पिता का जाना पिता के जाने जैसा ही होता है, जबकि यह पता होता है कि सभी को एक दिन जाना ही होता है फिर भी ख़ाली जगह भरने हम सब दौड़ते हैं—अपनी-अपनी जगहों को ख़ाली कर एक दूसरी ख़ाली जगह को देखने। वह जगह