माँ पर बेला
किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द
को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।
सदी की आख़िरी माँएँ
मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—ज
कहानी : सुरमेदानी
“माँ मरी नहीं थी। वो मेरी उन तमाम प्रेमिकाओं में ज़िंदा हुई, जिनसे मैंने प्रेम किया।” जानते हो बीकानेर में उस रात की
एक स्त्री : माँ भी, पिता भी
पिता की अनुपस्थिति में पिता बनती एक स्त्री आज मैं अपने पिता के बारे में नहीं, अपने बच्चे के पिता के बारे में बात करना
हथेलियों में बारिश भरती माँ
इलाहाबाद उस दिन मेघों से आच्छादित रहा। कुछ देर तक मूसलाधार फिर रुक-रुक कर बारिश होती रही। मैं अपने कमरे में बैठा अमरूद क
एलिस मुनरो की कहानी से
मेरी माँ मेरे लिए एक पोशाक बना रही थी। पूरे नवंबर के महीने में जब मैं स्कूल से आती तो माँ को रसोईघर में ही पाती। वह कटे
पिता के बारे में
पिता का जाना पिता के जाने जैसा ही होता है, जबकि यह पता होता है कि सभी को एक दिन जाना ही होता है फिर भी ख़ाली जगह भरने हम