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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

22 दिसम्बर 2025

‘तारकोवस्की का सिनेमा : एक कलाकार की हैसियत से’

‘तारकोवस्की का सिनेमा : एक कलाकार की हैसियत से’

बात 14 अगस्त 1986 की है। आन्द्रे तारकोवस्की पेरिस के किसी अस्पताल में मौत से लड़ रहे थे। इधर कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में उनकी उस फ़िल्म की स्क्रीनिंग हो रही थी, जिसे उन्होंने अपने बेटे की नज़्र किया था। यह फ़

21 दिसम्बर 2025

कहानी : नदी का विद्रोह

कहानी : नदी का विद्रोह

चार पैंतालीस की पैसेंजर ट्रेन रवाना कर नदेरचाँद ने नए सहकारी को बुलाकर कहा—मैं चला जी!  नए सहकारी ने एक बार मेघ से ढँके आसमान की ओर देखा और बोला—हाँ-हाँ। नदेरचाँद बोले—अब और बारिश नहीं होगी, क्

20 दिसम्बर 2025

बालमुकुंद गुप्त के भूले-बिसरे साहित्यिक घराने की ओर

बालमुकुंद गुप्त के भूले-बिसरे साहित्यिक घराने की ओर

कल रात बारिश और आँधी आई थी तो मौसम ने भी प्रतिदिन की आदत को छोड़ते हुए हम पर रहम किया और सूर्य देवता काफ़ी देर तक ग़ायब ही रहे तथा बादलों ने ख़ुद को ढाल बनाकर हमें शीतलता प्रदान की। महेंद्रगढ़, ऐसी ज

19 दिसम्बर 2025

चार नाम, एक इंक़लाब

चार नाम, एक इंक़लाब

रेल की पटरियाँ दूर तक फैली थीं। प्लेटफ़ॉर्म की उखड़ी हुई खपरैल समय की मार झेलती हुई-सी लगती थीं। आज से ठीक सौ साल पहले लखनऊ के ऐसे ही स्टेशन पर आठ-डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन पर क्रांतिकारियों क

19 दिसम्बर 2025

बाग़ी मन की बातें : एक पुरुष की देह को लेकर

बाग़ी मन की बातें : एक पुरुष की देह को लेकर

बहुत याद करने पर भी और बहुत मूड़ मारने पर भी पिछले दिनों ठीक-ठीक यह याद नहीं आया कि उस दिन हमारे घर में कौन-सा आयोजन था। हाँ, यह ख़ूब याद है कि उसी बरस किसी महीने दादी मरी थीं; पर यह याद नहीं आता कि वह

18 दिसम्बर 2025

‘आधी पंक्ति’ में पूरा प्रेम

‘आधी पंक्ति’ में पूरा प्रेम

क्या प्रेम अपने चरम पर पहुँचकर स्वयं की विफलता में ही अपने शाश्वत अर्थ को उद्घाटित करता है? आस्था, प्राप्ति और पराजय के बीच बने चक्रव्यूह को लांघने में असफल आत्म ही उस पात्रता को प्राप्त करता है, जिस

18 दिसम्बर 2025

पटना पुस्तक मेला : भर्त्सना के शिल्प में

पटना पुस्तक मेला : भर्त्सना के शिल्प में

मूर्खताओं के उदाहरण से हमारी सदी पटी हुई है और अब मूर्खताएँ हिंसा में बदल गई हैं। यह कहते हुए कोई सुख नहीं होता और न ही कोई चुटकुला सूझता है। व्यंग्यों के आधिक्य के बीच कभी-कभी क्रूर अभिधात्मकता की ओ

17 दिसम्बर 2025

दृष्टि का निर्माण : लोक से हाइपर-रियलिटी तक

दृष्टि का निर्माण : लोक से हाइपर-रियलिटी तक

“हर शाम हम सूर्य को धीरे-धीरे क्षितिज के पीछे डूबते हुए देखते हैं। हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी सूर्य से दूर जा रही है। फिर भी हमारा यह ज्ञान और यह वैज्ञानिक व्याख्या, डूबते हुए सूरज को देखने के हमार

17 दिसम्बर 2025

भाभी कॉम्प्लेक्स और कार्ल मार्क्स

भाभी कॉम्प्लेक्स और कार्ल मार्क्स

हिंदी साहित्य में भाभी जिस रूप में उतरी है, उसमें सत्य से अधिक सुहावनापन है। आज भी पुरुष की बहुपत्नीक और स्त्री की बहुपति प्रवृत्तियाँ, जो तहज़ीब के नीचे से अब भी रिसती रहती हैं और साहित्यदानों में द

16 दिसम्बर 2025

लॉकडाउन डायरी : सत्ता मेरे मज़े लेती है और मैं अपने से कमज़ोर लोगों के मज़े लेता हूँ...

लॉकडाउन डायरी : सत्ता मेरे मज़े लेती है और मैं अपने से कमज़ोर लोगों के मज़े लेता हूँ...

रात्रि की भयावहता में ही रात्रि का सौंदर्य है 25 मार्च 2020 पूर्व दिशा की ओर से खेरों की झाड़ियों में से उठती निशाचर उल्लुओं की किलबिलाहट से नींद खुल गई। यूँ तंद्रा का टूटना अनायास ही अकुलाहट क