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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

14 अक्तूबर 2025

‘पत्रकारिता के दुर्दिनों में, यह फ़िल्म देखी जानी चाहिए’

‘पत्रकारिता के दुर्दिनों में, यह फ़िल्म देखी जानी चाहिए’

हॉस्टल में शाम की चाय और रात के खाने के वक़्त पर यूट्यूब पर कुछ देखना भी दिनचर्या का लगभग अनिवार्य हिस्सा बन गया है। आज शाम को जब इस अनिवार्यता की पूर्ति के लिए यूट्यूब खोला तो सबसे ऊपरी पंक्ति में ही

27 सितम्बर 2025

तारकोवस्की का सिनेमा : एक कलाकार की हैसियत से

तारकोवस्की का सिनेमा : एक कलाकार की हैसियत से

बात 14 अगस्त 1986 की है। आन्द्रे तारकोवस्की पेरिस के किसी अस्पताल में मौत से लड़ रहे थे। इधर कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में उनकी उस फ़िल्म की स्क्रीनिंग हो रही थी, जिसे उन्होंने अपने बेटे की नज़्र किया था। यह

13 सितम्बर 2025

त्याग नहीं, प्रेम को स्पर्श चाहिए

त्याग नहीं, प्रेम को स्पर्श चाहिए

‘लगी तुमसे मन की लगन’— यह गीत 2003 में आई फ़िल्म ‘पाप’ से है। इस गीत के बोल, संगीत और गायन तो हृदयस्पर्शी है ही, इन सबसे अधिक प्रभावी है इसका फ़िल्मांकन—जो अपने आप में एक पूरी कहानी है। इस गीत का वीड

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा

02 अगस्त 2025

रजनीगंधा का साड़ी दर्शन

रजनीगंधा का साड़ी दर्शन

साड़ी का ज़िक्र होने पर दृश्य कौंधते हैं—किसी मंदिर में हवन में जाने से पहले खिड़की तीरे बाल बाँधती और माँग भरती माँ। महीनों बाद के मांगलिक कार्यक्रम के लिए हफ़्तों से तैयार हो रही माँ की स्पेशल साड़

31 जुलाई 2025

सैयारा : दुनिया को उनसे ख़तरा है जो रो नहीं सकते

सैयारा : दुनिया को उनसे ख़तरा है जो रो नहीं सकते

इन दिनों जीवन कुछ यूँ हो चला है कि दुनिया-जहान में क्या चल रहा है, इसकी सूचना सर्वप्रथम मुझे फ़ेसबुक देता है (और इसके लिए मैं मार्क ज़ुकरबर्ग या सिलिकॉन वैली में बैठे तमाम तकनीकी कीड़ों का क़तई कृतज्

30 जुलाई 2025

सैयारा : अच्छी कहानियाँ स्मृतियों की जिल्द हैं

सैयारा : अच्छी कहानियाँ स्मृतियों की जिल्द हैं

‘हम कोशिकाओं से नहीं, स्मृतियों से बने हैं।’ शिवेन्द्र का यह कथन, जो मैंने एक बार ‘सदानीरा’ पत्रिका में पढ़ा था, उस वक़्त केवल एक दिलचस्प विचार लगा था। मगर अब, इसका अर्थ मेरे लिए कहीं गहरा हो गया है।

10 जुलाई 2025

8 A.M. Metro : अर्थ भरी अदायगी

8 A.M. Metro : अर्थ भरी अदायगी

गुलशन देवैया और सैयामी खेर अभिनीत फ़िल्म ‘8 A.M. Metro’ हाल-फ़िलहाल की प्रचलित व्यावसायिक फ़िल्मों से अलग श्रेणी में आती है। अगर फ़िल्म की विषयवस्तु देखें तो आप इसे ‘लंच बॉक्स’ और ‘थ्री ऑफ़ अस’ की पर

04 जून 2025

'संतोष' और बॉलीवुड का दलित सिनेमा

'संतोष' और बॉलीवुड का दलित सिनेमा

सिनेमा एक दर्पण है, जिसके माध्यम से हम अक्सर ख़ुद को देखते हैं। — एलेजांद्रो गोंज़ालेज़ इनारितु  साहित्य समाज का दर्पण है—बचपन में इस विषय पर निबंध लिखते हुए पता नहीं था कि एक दिन सिनेमा भी समा

05 मई 2025

स्पर्श : दुपहर में घर लौटने जितना सुख

स्पर्श : दुपहर में घर लौटने जितना सुख

सोमवार से बहाल हुई दिनचर्या शुक्रवार शाम की राह तकती है—दरमियान का सारा वक़्त अनजाने निगलते हुए। एक जानिब को कभी लगा ही नहीं कि सुख शनिवार का नहीं, उसके पास जाने की हल्की तलब का होता है। कितना मुश्कि