साहित्य और संस्कृति की घड़ी
दाह! ये सभी चित्र सफ़ेद रंग के एक छोटे-से लिफ़ाफ़े में रखे हुए थे, जिस पर काली सियाही से लिखा हुआ था—दाह। पिछले 83 सालों से इन चित्रों को जाने-अनजाने बिला वजह गोपनीय बनाकर रखा गया और धीरे-धीरे
जिससे उम्मीदें-ज़ीस्त थी बाँधी ले उड़ी उसको मौत की आँधी गालियाँ खाके गोलियाँ खाके मर गए उफ़्फ़! महात्मा गांधी! — रईस अमरोहवी एक दिल्ली में वह मावठ का दिन था। 30 जनवरी 1948 को दुपहर तीन बज
घड़ी तो सब ही पहनते हैं। कई सौ सालों पहले जब पीटर हेनलेन ने पहली घड़ी ईजाद की होगी, तो उसके बाप ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये इतनी ज़रूरी चीज़ साबित होगी कि दुनिया हिल जाएगी। दानिशमंद लोग कहते
हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें? यह प्रश्न कोई भी कर सकता है, बशर्ते वह हिंदी भाषा और उसके साहित्य में दिलचस्पी रखता हो; लेकिन प्राय: यह प्रश्न किशोरों और नवयुवकों की तरफ़ से ही आता है। यहाँ इस प्रश्न
भूली चूकी करज्यो म्हाने माफ़ म्हारा मनड़ा मेळू रे राजस्थान के मांगणियार समाज का एक स्वर खो गया। मांगे ख़ान दिल्ली के एक सुविख्यात बैंड ‘बाड़मेर बॉयज’ का प्रतिनिधि गायक था। बहुत सुरीला गायक। उसका जन्म
ख़ाली वक़्त में फ़ंतासियाँ रचना या दूसरे ढंग से कहें तो फ़ंतासियों के बारे में सोचने के लिए ख़ाली वक़्त निकालना मेरे पसंदीदा कामों में से एक है। मेरी सबसे प्रिय फ़ंतासी यह है—जिसे सोचने में एलियन या
भारतीय जन-मानस में एक कॉमन सेंस घर कर गया है—सिखाने वाला बड़ा होता है, सीखने वाला छोटा; इसलिए छोटे का सीखने के लिए बड़े के सामने समर्पण करना ज़रूरी है। यह समर्पण इंसान को ‘विनम्र’ बनाता है, इसी समर्प
(नोट : इस रेखाचित्र में एक शिक्षक ने अपनी निराशा को क़ैद किया है। यदि आपका हृदय फूलों की तरह कोमल है, तो यह रेखाचित्र सावधान होकर पढ़ें। उसमें दाग़ लग सकते हैं।) यहाँ से न जाने कितनी ट्रेनें-बसें च
क्या क्रूर सत्ता, उग्र राष्ट्रवाद और बाज़ार प्रेरित तार्किकता से ग्रस्त समाज के लिए शिक्षण के पेशे में निहित गहरी दृष्टि और रचनात्मकता की सराहना और उसका परिपोषण करना संभव है? क्या वह समाज, जो अपनी शि
धर्मवीर भारती रचित ‘कनुप्रिया’ नई कविता की विशिष्ट रचना है। इस रचना में ‘राधा’ की वेदना को नए रूप में प्रस्तुत किया गया है। ‘कनुप्रिया’ दो शब्दों—‘कनु’ और ‘प्रिया’ से मिलकर बना है। धर्मवीर भारती ने इ
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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