साहित्य और संस्कृति की घड़ी
शहर हम में उतने ही होते हैं, जितने हम शहर में होते हैं। ऋषिकेश मेरे लिए वक़्त का एक हिस्सा है। इसकी सड़कों, गलियों, घाटों और मंदिरों को थोड़ा जिया है। जीते हुए जो महसूस होता है, वही तो जीवन का अनुभव ह
07 सितम्बर 2025
• किंवदंतियों, जनश्रुतियों और विद्वानों के विवरणों में विशद उपस्थिति रखने वाले भर्तृहरि राजा थे या ऋषि! कवि थे या वैयाकरण! योगी थे या भोगजीवी सांसारिक... या फिर इन सबको समाहित किए पूरी भारतीय मनीषा म
06 सितम्बर 2025
आरुष मिश्र, सरदार पटेल विद्यालय, नई दिल्ली में कक्षा दसवीं में पढ़ने वाले किशोर हैं। पिछले वर्ष जब वह कक्षा नवीं में थे तो गर्मी की छुट्टियों में उनकी कक्षा को हिंदी विषय में एक कार्य मिला था। उसमें
05 सितम्बर 2025
इस महादेश में हर दिन एक दिवस आता रहता है। मेरी मातृभाषा में ‘दिन’ का अर्थ ख़र्च से भी लिया जाता रहा है। मसलन आज फ़लाँ का दिन है। मतलब उसका बारहवाँ। एक दफ़े हमारे एक साथी ने प्रभात-वेला में पिता को जाकर
मैं बस में बैठा देख रहा था कि सारे लोग धीरे-धीरे जाग रहे थे। बड़ी अदालत ने राजधानी की सड़कों पर से आवारा कुत्तों को शहर से हटाने का फ़रमान जारी किया था। कितनी अजीब बात थी, कई महीनों से पुलिस इसी शहर
बाज़ार में आजकल हिंदुस्तानी-अँग्रेज़ी में लिखी हुई बहुत-सी किताबें आ गई हैं जो कुत्तों के—असली कुत्तों के—बारे में हैं। ‘डॉग केयर बाई ए डाग-लवर’, ‘शेफ़र्ड डाग्स ऑफ़ जर्मनी, बाई ए डॉग-लवर’, ‘ऑफ़ डाग्स
मृत्यु ऐसी स्थिति है, जिसका प्रामाणिक अनुभव कभी कोई लिख ही नहीं सकता; लेकिन इस कष्टदायी अमूर्तता के स्वरूप, दृश्य और प्रभाव को वरिष्ठ कवि अरुण देव ने पूरी सफलता के साथ काव्य शैली में ढाल दिया है। ‘मृ
पिछले हफ़्ते विभाजन पर आधारित एक नाटक देखने गया था। नाटक दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सरकारी संस्थान में था। विभाजन भारतीय उपमहाद्वीप और उसके लोगों पर घटी एक त्रासदी है—उसे याद किया जा सकता है, उससे सीखा
हिंदी साहित्य में जिसे साठोत्तरी रचना पीढ़ी के नाम से जाना जाता है, सूर्यबाला उसकी एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनकी साहित्यिक पहचान की नींव उनके पहले ही उपन्यास ‘मेरे संधि-पत्र’ से जुड़ी है। मैं इस किता
अचानक ही तुम्हें अपनी भटक का उद्गम मिल गया है। वह इतना अस्ल है कि तुम उससे घबरा गए हो। तुम चाहते हो, तुम जितनी जल्दी हो सके—उसे भाषा में उतार दो। भले ही वह अधूरा ही उतरे, लेकिन क़ुबूल हो जाए। भले उसक