
गीता, गंगा, गायत्री और गोविंद—इन गकार-युक्त चार नामों को हृदय में धारण कर लेने पर मनुष्य का फिर इस संसार में जन्म नहीं होता।

अन्य बहुत से शास्त्रों का संग्रह करने की क्या आवश्यकता है? गीता का ही अच्छी तरह से गान करना चाहिए, क्योंकि वह स्वयं पद्मनाभ भगवान् के मुख कमल से निकली हुई है।

गीता ने उपदेश तो फलासक्ति के त्याग का दिया था; किन्तु साधकों ने कर्मन्यास का अर्थ फलासक्ति का त्याग नहीं, कर्म मात्र का त्याग लगा लिया।

गीता जिस कर्म का प्रतिपादन करती है, वह मानव-कर्म नहीं अपितु दिव्य कर्म है।

गीता विश्व का शास्त्र है, उसका प्रभाव मानवजाति के मस्तिष्क पर हमेशा तक रहेगा।

ज्ञान-भक्ति-युक्त कर्मयोग ही गीता का सार है।

सब उपनिषद् यदि गौएँ हैं, तो गीता उनका दूध है।

कृष्ण के उच्च स्वरूप की पराकाष्ठा हमारे लिए गीता में हैं।