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छायावाद पर उद्धरण

छायावाद एक प्रकार से अज्ञातकुलशील बालक रहा, जिसे सामाजिकता का अधिकार ही नहीं मिल सका, फलतः उसने आकाश, तारे, फूल, निर्झर आदि से आत्मीयता का संबंध जोड़ा और उसी संबंध को अपना परिचय बनाकर मनुष्य के हृदय तक पहुँचने का प्रयत्न किया।

महादेवी वर्मा

छाया भारतीय दृष्टि से अनुकृति और अभिव्यक्ति की भंगिमा पर अधिक निर्भर करती है। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौंदर्यमय प्रतीक-विधान और उपचारवक्रता के साथ स्वानुभूति की विवृति छायावाद की विशेषताएँ हैं। अपने भीतर से मोती के पानी की तरह आंतर स्पर्श करके भाव-समर्पण करने वाली अभिव्यक्ति छाया कांतिमयी होती है।

जयशंकर प्रसाद

छायावादी काव्य, दिशा से अधिक, काल को वाणी देता रहा है।

सुमित्रानंदन पंत

छायावाद की शाखा के भीतर धीरे-धीरे काव्य-शैली का बहुत अच्छा विकास हुआ, इसमें संदेह नहीं। उसमें भावावेश की आकुल व्यंजना, लाक्षणिक वैचित्र्य, मूर्त्त प्रत्यक्षीकरण, भाषा की वक्रता; विरोध-चमत्कार, कोमल पद-विन्यास इत्यादि काव्य का स्वरूप संघटित करने वाली प्रचुर सामग्री दिखाई पड़ी।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल