सीता पर उद्धरण
सीता राम-कथा की नायिका
और अराध्य देवी के रूप में भारतीय संस्कृति से अभिन्न रही हैं। भारतीय स्त्री-विमर्श में उनका प्रादुर्भाव एक उदाहरण के रूप में हुआ है, जहाँ समाज की पितृसत्तात्मकता को प्रश्नगत किया गया है। प्रस्तुत चयन में सीता और सीता के बहाने संवाद करती कविताओं को शामिल किया गया है।
प्रेम की चरम परिणति दांपत्य में, स्त्री-पुरुष के प्रेम में प्रस्फुटित होती है। स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के सहभाव से परिपूर्ण बनते हैं, यही बात सीता और राम के प्रसंग में वाल्मीकि ने कई बार कही है।
रामायण में सीता राम के लिए पाथेय और प्राप्तव्य ही नहीं, वह उसके जीवन की संपूर्ण नियति को निर्धारित करने वाली सजीव शक्ति है।
सीता, तारा और मंदोदरी, पुरुषों के वर्चस्ववाले समाज में अपने वाणी की ऊर्जा से अपने लिए स्थान बनाती हैं।
मनुष्यता के मूल्यों का सर्वोच्च परिपाक, सीता के चरित्र में हुआ है। सीता समग्र मनुष्यता की प्रतीक है।
राम और सीता के जीवन की करुणा में समस्त ब्रह्माण्ड समाया-सा लगता है।
राम का निर्वासन वस्तुतः सीता का दुहरा निर्वासन है।
सीता नारी है इसलिए वह चीज़ों की परख तथा निर्णय; तर्क और ऊहापोह द्वारा नहीं, अनुभूति और संवेदना से करती है।
राम तो लौटकर राजा होते हैं, पर रानी होते ही सीता राजा रामद्वारा वन में निर्वासित कर दी जाती हैं।
सीता पतिपरायणा और उदात्त चेतना से संवलित नारी हैं।