निश्छल नारी की नोटबुक
जयप्रकाश मानस
11 जून 2025

ऊषा शर्मा की डायरी ‘रोज़नामचा एक कवि पत्नी का’ (संपादक : उद्भ्रांत, प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, संस्करण : 2024) एक ऐसी कृति है, जो एक गृहिणी की अनगढ़, निश्छल अभिव्यक्ति के माध्यम से कवि-पति उद्भ्रांत के साथ साझा किए गए जीवन की त्रिस्तरीय संघर्ष-कथा को उकेरती है। यह डायरी न केवल एक व्यक्तिगत दस्तावेज़ है, बल्कि स्त्री-अस्मिता, पारिवारिक जीवन की जटिलताओं और एक कवि के जीवन-साथी होने की अनकही पीड़ा और प्रेम का साहित्यिक चित्रण भी है।
भाषा : सादगी में गहराई
ऊषा शर्मा की डायरी की भाषा सहज और बोलचाल की है, जो रोज़मर्रा के जीवन की सच्चाई को अनायास उजागर करती है। उनकी लेखनी में साहित्यिक आडंबर नहीं है; यह एक ऐसी औरत की आवाज़ है, जो गृहस्थी की भाग-दौड़, बच्चों की परवरिश और पति के स्वभाव की उलझनों के बीच अपनी भावनाओं को काग़ज़ पर उतारती है। जब वह लिखती हैं, “मैं थोड़ी देर रोती रही, फिर काम में लग गई”—यह वाक्य विनोद कुमार शुक्ल की कविता ‘सबसे ग़रीब आदमी’ की तरह साधारण शब्दों में गहन भावनात्मक तनाव को व्यक्त करता है। उनकी भाषा में वह ठहराव है, जो प्रकृति और मानव जीवन के बीच संवाद की तरह प्रकट होता है। यह ठहराव डायरी को केवल व्यक्तिगत कथन से ऊपर उठाकर एक सार्वभौमिक संवेदना का दस्तावेज़ बनाता है।
संवेदना : प्रेम और पीड़ा का द्वंद्व
ऊषा शर्मा की डायरी में प्रेम, प्रकृति और सामाजिक हाशिए के प्रति गहरी संवेदना एक कवि-पत्नी के रूप में उनके जीवन के द्वंद्व में झलकती है। वह एक ओर उद्भ्रांत के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण दिखाती हैं, जैसा कि उनके शब्दों में, “आप हमारी वजह से भूखे चले गए” और दूसरी ओर एक तुनक-मिज़ाज, अव्यावहारिक पति के साथ जीवन की कठिनाइयों को सहन करती हैं। यह प्रेम और पीड़ा का द्वंद्व, स्वाभाविकता और कृत्रिमता के बीच तनाव दिखता है। ऊषा की संवेदना में एक भारतीय नारी की वह सहनशीलता है, जो सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत आकांक्षाओं के बीच संतुलन बनाती है। उनकी डायरी में बच्चों की चिंता, सामाजिक धमकियों और आत्म-साक्षात्कार की चाह एक ऐसी संवेदना रचती है, जो पाठक के हृदय को गहरे तक छूती है।
बिंब : रोज़मर्रा में काव्यात्मकता
अक्सर हिंदी में पत्थर, घास, चंद्रमा—काव्यात्मक बिंब बनकर जीवन के दर्शन को उजागर करती हैं। ऊषा की डायरी में भी रोज़मर्रा की घटनाएँ और वस्तुएँ बिंबों के रूप में उभरती हैं। उदाहरण के लिए, ‘कपड़ों की आलमारी’ में मिले कटे-फटे काग़ज़ों का बंडल ऊषा के जीवन की टूटी-फूटी, फिर भी अनमोल स्मृतियों का प्रतीक है। उनकी कविता ‘तुम’ में फूल, ख़ुशबू और गुलाब की पंखुड़ियाँ प्रेम और मौन की काव्यात्मक अभिव्यक्ति बनती हैं। ये बिंब साधारण जीवन की गहराइयों को काव्य की ऊँचाइयों तक ले जाते हैं। डायरी का प्रत्येक अंश, जैसे “थोड़ी देर रोती रही, फिर काम में लग गई” एक बिंब है, जो स्त्री के संघर्ष और लचीलेपन को चित्रित करता है।
दर्शन : सत्य और स्व की खोज
भारतीय दर्शन प्रकृति, सत्य और मानव जीवन की स्वाभाविकता पर केंद्रित है। वह विकास की अवधारणा को चुनौती देते हुए प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य की बात करता है। ऊषा की डायरी में भी यह दर्शन उनकी आत्म-खोज और सत्य की तलाश में दिखता है। वह लिखती हैं, “मैं भी कुछ साहित्य समझने लगूँ तो अच्छा रहे” जो उनकी बौद्धिक और आत्मिक विकास की चाह को दर्शाता है।
ऊषा शर्मा का जीवन—जो परिवार, बच्चों और पति के प्रति समर्पण में डूबा है, फिर भी अपनी पहचान की तलाश में है, एक दार्शनिक गहराई लिए हुए है। उनकी डायरी एक कवि-पत्नी की आत्मकथा होने के साथ-साथ स्त्री अस्मिता की खोज की कहानी भी है।
विचार : सामाजिक और व्यक्तिगत का संनाद
यह डायरी की वैचारिकता उनके सामाजिक परिवेश और व्यक्तिगत अनुभवों के बीच संनाद के रूप में दिखती है। वह हरीकांत जैसे पात्रों की धमकियों और सामाजिक दबावों का ज़िक्र करती हैं, जो उस समय की पितृसत्तात्मक व्यवस्था को उजागर करता है। उनकी यह टिप्पणी, “ये गाली मुझे नहीं लगी, बल्कि आपकी लड़की और आप पर ही लगी” एक साहसी वैचारिक प्रतिरोध को दर्शाती है। जो सामाजिक अन्याय के ख़िलाफ़ शांत, लेकिन दृढ़ आवाज़ ही है। ऊषा का लेखन, भले ही अनगढ़ हो, एक ऐसी औरत की वैचारिक उड़ान है, जो अपने समय की सीमाओं को चुनौती देती है।
‘रोज़नामचा एक कवि-पत्नी का’ एक ऐसी कृति है, जो सादगी, संवेदना और सत्य की खोज को समेटे हुए है। ऊषा शर्मा की डायरी केवल एक व्यक्तिगत दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक कवि-पत्नी, एक माँ और एक स्त्री की आत्मकथा है, जो सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन की जटिलताओं को काव्यात्मक और दार्शनिक गहराई के साथ प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक हिंदी साहित्य में अनूठी भी, जो पाठकों को न केवल उद्भ्रांत के जीवन का सच दिखाती है, बल्कि स्त्री अस्मिता और प्रेम की अनकही कहानियों को भी सामने लाती है। ऊषा शर्मा की यह डायरी, जैसा कि उद्भ्रांत कहते हैं—उनके प्रति एक ट्रिब्यूट है, जो हिंदी साहित्य के पाठकों के लिए एक अमूल्य उपहार है।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
07 अगस्त 2025
अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ
श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत
10 अगस्त 2025
क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़
Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi
08 अगस्त 2025
धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’
यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा
17 अगस्त 2025
बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है
• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है
22 अगस्त 2025
वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं