जापान डायरी : एक शहर अपने आर्किटेक्चर से नहीं लोगों से बनता है
स्मिति
16 सितम्बर 2024

जनवरी 2020
यह मेरी सर्दी की छुट्टियों की पहली किश्त है। आशा है दूसरी किश्त को लिखने में इतना समय नहीं लूँगी।
कल ओसाका की फ्लाइट है, हमें सुबह 8 बजे निकलना है। मैं खाने की कुछ चीज़ें बनाकर टिफ़िन में पैक कर रही हूँ। टिफ़िन साथ रखना, हमेशा पैसे और नाहक़ की परेशानी बचाने के लिए अच्छा उपाय है।
होटल चेक-इन करने में वक़्त था तो हमने ओसाका पहुँचकर पहले घूम आने का सोचा। होटल से क़रीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक मशहूर बाज़ार है, हमने वहीं जाने का फैसला किया। रास्ते में थोड़ी बारिश शुरू हो गई। जापान में ऐसा अक्सर हो जाता है। यहाँ बाहर निकलते वक़्त मौसम का हाल जान लेना अच्छा रहता है। हम वहाँ पहुँचे तो नोज़ोमु और तामाकी ने खाने-पीने की चीज़ों का जायज़ा लिया, एक दो चीज़ें ट्राई करके हम होटल लौट आए।
हम लौटे, चेक-इन किया और क़रीब 4 बजे दुबारा हम ओसाका की अमेरिका स्ट्रीट नाम की जगह के लिए निकल गए। अमेरिका स्ट्रीट पर महँगे ब्रांड के इस्तेमाल किए हुए कपड़े मिलते हैं।
हमें अगले दिन क्योटो के लिए निकलना है। थोड़ा थके होने के कारण हम 11 बजे ओसाका से निकले। क्योटो के होटल पहुँचते-पहुँचते 2 बज गए। हमारे होटल के पास ही क्योटो की प्रसिद्ध गिओन स्ट्रीट है। यहाँ बहुत सारे पर्यटक हैं।
क्योटो मुझे अब तक देखे हुए जापानी शहरों से बहुत ही अलग और सुंदर लगा। इस शहर को देखकर ही पता लग जाता है कि इसके इतिहास की जड़ें कितनी गहरी हैं। घर-इमारतों की बनावट, सड़कों की बनावट सब कुछ अलग तरह से आपको आकर्षित करता है। यहीं हम किनकोकुजी मंदिर भी देखने आए, जिसमें असली सोने का इस्तेमाल हुआ है।
हमें यहाँ से अराशियामा जाना था, जहाँ बाँस के घने पेड़ों से घिरी हुई सुंदर सड़कें है। हम वहाँ गए भी लेकिन नए साल के पास का समय होने के कारण, हमने गियोन जल्दी लौटने का निर्णय लेना पड़ा।
गियोन में हमें एक भारतीय रेस्तरां दिखा, रात का खाना वहीं होगा। मुझे जापान में बाहर खाना हमेशा ही महँगा लगता है, फिर क्योटो फ़ुकुओका की अपेक्षा है भी थोड़ा महँगा। मुझे जापान के भारतीय खाने से यही शिकायत है कि वह ज़रा मीठा-सा लगता है। जापानी लोग ज़्यादा मिर्च-मसाला नहीं खाते हैं, इसलिए जापान के भारतीय रेस्तरां में भी उनके हिसाब से खाना बनाया जाता है।
हमें कल सुबह यहाँ से हिरोशिमा के लिए निकलना है। हमारी सुबह 07:30 बजे की ट्रेन है। यह 6 घंटे का सफ़र है। हम दुपहर 2 बजे हिरोशिमा पहुँच गए। बाहर हल्की बारिश हो रही है। हमने सीधे एटॉमिक बम संग्रहालय जाने का निर्णय किया। वहाँ से हॉस्टल भी नज़दीक ही है।
तमाकी हमें बताती है कि संग्रहालय का हाल ही में नवीनीकरण हुआ है। हिरोशिमा देखने में ही नागासाकी से बहुत अलग है। पूछने पर नोज़ोमु ने हमें बताया कि हिरोशिमा इस राज्य के प्रमुख शहरों में से एक है। लेकिन नागासाकी में कुछ है, जो उसकी ऐतिहासिकता को बहुत दृश्य बना देता है। हिरोशिमा अपनी संपूर्ण चमक में भी मुझे नागासाकी जितना प्रभावित नहीं कर पाया।
मुझे संग्रहालय में भी नागासाकी शहर की याद बनी रही। बाद में तमाकी ने बताया कि पुराना संग्रहालय थोड़ा अलग था। मैं जब से हिरोशिमा आई हूँ—हिबाकु जुमाकु (Hibakujumoku ऐसे पेड़ हैं जो परमाणु बमबारी से बच गए और अभी भी फल-फूल रहे हैं) का पेड़ ढूँढ़ना चाहती हूँ।
मैंने नागासाकी में भी इस पेड़ को ढूँढ़ने की नाकाम कोशिश की थी, लेकिन तब मेरी जापानी टूटी-फूटी से भी निम्न स्तर की थी। ख़ैर, मैं कैसे भी उस पेड़ को ढूँढ़ कर नील के लिए उसकी तस्वीर खींचना चाहती थी।
तमाकी एक पेड़ की ओर इशारा कर रही है। हम वहाँ जाते हैं तो यह जानकर मैं बेहद ख़ुश हो जाती हूँ कि वह वाक़ई में हिबाकु जुमाकु का पेड़ है। उसके आगे एक बॉक्स है, जिसमें जापानी गाना रिकॉर्ड है, जो बटन दबाने से बजता है। उसका अँग्रेज़ी अनुवाद भी वहीं लिखा है। हम वह बटन दबा देते हैं और मैं पेड़ की तस्वीरें खींच लेती हूँ।
फिर शांति पार्क और बच्चों का संग्रहालय देखते हुए हम हॉस्टल लौट गए। हॉस्टल में मुझे मेरी सहपाठी क्रिस्टा मिली। वह भी मेरे हॉस्टल के उसी कमरे में ठहरी थी जिसमें मैं ठहरी हुई थी। मुझे बिल्कुल नहीं मालूम था कि वह हिरोशिमा में है।
शाम को भूख लगने पर मैंने भारतीय रेस्तरां जाने का निर्णय लिया। वहाँ रेस्तरां के मालिक से बात करने पर मालूम हुआ कि वह दक्षिण भारतीय हैं और हिरोशिमा में पच्चीस साल से रह रहे हैं। वह पेशे से इंजीनियर हैं और हिरोशिमा विश्वविद्यालय में पढ़ा भी चुके हैं।
नोज़ोमु और तमाकी को यह सुनकर बहुत अचरज हुआ और उन्होंने उनसे पूछा कि जापान में रेस्तरां खोलने का निर्णय कैसे लिया?
उन्होंने जापानी में जवाब देते हुए कहा कि जापान में भारतीय भोजन को बनाने वाले ज़्यादातर रेस्तरां नेपाली मूल के लोगों के हैं। और वह वास्तविक भारतीय खाने का अनुभव लोगों तक पहुँचाना चाहते थे, इसलिए इस साल यह रेस्तरां खोलने का निर्णय लिया। मैंने उनसे खाना पैक करवा लिया। प्रोजेक्टर पर बाहुबली चल रही है, नोज़ोमु और तमाकी ध्यान से फ़िल्म देख रहे हैं और मैं उन्हें।
लौटकर हम हॉस्टल के कॉमन रूम की मेज़ पर बैठकर करीब 2 घंटे बातें करते रहे। घर के बारे में, जापान और भारत के बारे में, साड़ी और साड़ी में मेरी तस्वीर के बाद नोज़ोमु के पसंदीदा रंग के बारे में, हम क्या बनना चाहते हैं और क्यों। हमारे संघर्ष और हमारी माँओं के संघर्ष से कितने भिन्न हैं, इस सब पर चर्चा करने के बाद हम जापानी और अँग्रेज़ी भाषा की मुश्किलों पर भी बात करते रहे।
प्रोग्राम के लिए अप्लाई करते वक़्त मैंने लिखा था—
This program is about letting women like me have a realization that education can take us places we never knew we too belonged to. That we have a world to see, people to greet, songs to sing and stories to hear, most importantly to know we are more than what we thought we were.
मैं नोज़ोमु को सुनते हुए बहुत कुछ सोच रही हूँ। बाहर बारिश हो रही है, नोज़ोमु मुझसे कह रही है कि कल सुबह हम वापस फ़ुकुओका के लिए निकलेंगे और हमें अब सोना चाहिए…
~
4 फ़रवरी 2020
जापानी आधुनिक वास्तुकला की कक्षा के लिए हमें किसी जापानी बिल्डिंग के बारे में लिखना है। मैं दो दिन से सोच रही हूँ कि किस पर लिखूँ। जापानी संस्कृति की कक्षा में हमें जिन जगहों पर ले जाया गया है, वे अधिकतर मंदिर रहे हैं। जापानी मंदिर, भारतीय मंदिरों से अलग होते हुए भी मुझे बहुत आकर्षित नहीं करते हैं। साथ ही बिना समुचित जानकारी के बग़ैर उनके बारे में विस्तार से लिखना बहुत मुश्किल मालूम पड़ता है। सोचने में दो-तीन दिन गुज़र गए हैं। यह सेमेस्टर ख़त्म होने का समय होने के कारण व्यस्तता भी अधिक है।
कल प्रेजेंटेशन का दिन है। मैं अभी भी नहीं जानती कि कक्षा में क्या कहूँगी? यकायक मुझे ट्रेन स्टेशन के नीचे की छोटी दुकान याद आती है। मैंने गुज़रते हुए दो-तीन बार वहाँ का जायज़ा लिया है। वह दुकान ‘Farmer's Market’ है। जापान में ऐसी दुकानें हर जगह होती हैं, जहाँ किसान या उत्पादक सीधे दुकान में सामान दे जाते हैं। इस वजह से सामान सस्ते होते हैं और ताज़ा भी।
मैं उस दुकान के बारे में लिखना चाहती हूँ क्योंकि वह आम सुपरस्टोर के मुक़ाबले मुझे न सिर्फ़ आकर्षक लगती है बल्कि भारत की छोटी दुकानों की याद भी दिलाती है। हालाँकि मैं दुकान पर जाते हुए डर रही हूँ। मुझे अधिक जापानी नहीं आती और जितना मैं समझ पाई हूँ, जापानी संकोची होते हैं। मुझे डर है कि मैं वहाँ जाकर तस्वीर लेने के बारे में पूछूँगी तो वह मुझे मना कर देंगे और अगर डाँट दिया तो?
संपूर्ण एशिया में व्याप्त नस्लवाद (Racism) से जापान भी अछूता नहीं है, लेकिन मेरा ऐसा कोई व्यक्तिगत बुरा अनुभव नहीं है। फिर भी जब कभी मुझे अपरिचित जापानियों से बात करने की ज़रूरत हुई है, कोई-न-कोई जापानी भाषा का जानने वाला मेरे साथ रहा है। किसी भी तरह के भेदभाव का सामना मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं करना पड़ा है। लोग बहुधा भले ही मिले हैं।
ख़ैर, मैं दुकान पर पहुँच गई हूँ। सोचा एक तस्वीर ले लेनी चाहिए, जिससे दुकानदार मना भी कर दें, तब भी कोई नुक़सान न हो। मैं तस्वीर लेने ही वाली थी कि मेरी नज़र धनिया पर पड़ी। यहाँ का धनिया बड़े सुपरस्टोर मुक़ाबले बहुत सस्ता है। लगभग आधे दाम का। मैंने धनिया हाथ में लेकर दुकानदार से पूछा कि क्या मैं दुकान की कुछ तस्वीर ले लूँ? वह हँस कर कहते हैं—ज़रूर-ज़रूर।
उनकी हँसी ने मेरे डर को कम कर दिया है। मैंने उनसे काफ़ी सारी बातें की। वैसे आपको धनिया का भाव बताती हूँ। यहाँ धनिया सौ रूपए (क़रीब दो सौ ग्राम) की है, यही सुपरस्टोर में दो सौ रूपए से कम की नहीं होती और अगर भारत में इतना धनिया लेना होता तो दस रूपए में काम चल जाता।
मैंने उन्हें बताया कि मुझे तस्वीरें यूनिवर्सिटी के काम के लिए चाहिए। वह बहुत ख़ुश होकर कहते हैं कि मैं ढेर सारी तस्वीरें खींच सकती हूँ। मैंने उनसे बहुत विषयों को लेकर बातें कीं और सवाल पूछे। जैसे—अपने शाकाहारी होने के बारे में, दुकान यहाँ कब से है, भारत की सब्ज़ी मंडी कैसी होती है और बाक़ी छोटी परचून की दुकानें कैसी होती हैं; करी, फूल, लकड़ी को जापानी में क्या कहते हैं।
मेरे सवालों के जवाब वह बहुत से मुस्कुरा-मुस्कुरा कर दे रहे हैं।
मैंने उन्हें कहा—जापानी बहुत भले होते हैं। वह कहते हैं—उन्हें लगता है भारतीय लोग भी बहुत भले होते हैं। उस दुकान में कुल तीन लोग हैं। उन तीन में से एक महिला हैं। वह मुझे तोहफ़े के तौर पर, प्लम का एक पैकेट देना चाहती हैं, जो शराब में भिगोकर रखा जाता है। वह मुझसे पूछती हैं कि मुझे शराब से कोई दिक़्क़त तो नहीं? मैंने उन्हें यह बताते हुए कि मैं शराब नहीं पीती और सॉरी कह दिया।
दुकान में कुछ ख़रीदने आईं एक बुज़ुर्ग महिला मुझे पल्म का अँग्रेज़ी अनुवाद बता कर समझाने की कोशिश करती हैं। दुकानदार उन्हें मेरे बारे में बता रहे हैं, कि मैं अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी हूँ और विश्वविद्यालय पास ही होने से सब जानते हैं कि मैं किस जगह की बात कर रही हूँ। इतने में दुकान से एक महिला ने मुझे ब्लूबेरी जैम की एक शीशी देकर कहा कि यह मेरे लिए तोहफ़ा है। मैं बहुत अजीब-सी ख़ुशी महसूस करते हुए भी हिचक रही हूँ।
जैम महँगा है, क़रीब तीन सौ पचास रूपए का। किसी से ऐसे तोहफ़ा लेने में मुझे संकोच हो रहा है। वह कहती हैं—यह तकाशी सान (वह दुकानदार जिनसे मेरी बात हो रही थी) की ओर से तोहफ़ा है। वह दो शीशियाँ उठाकर मेरी ओर बढ़ाती हैं। मुझे नहीं समझ आ रहा कि मैं उन्हें मना कैसे करूँ!
मैंने उन्हें बहुत बार शुक्रिया कहते हुए कहा कि मैं दोनों शीशियाँ नहीं ले सकती। एक काफ़ी है। मैं फूलों का एक गुच्छा और धनिया ख़रीदने के लिए ले लेती हूँ। तकाशी सान से कुछ और बातें पूछती हूँ। वह सारे सवालों का धैर्य के साथ जवाब दे रहे हैं। वहाँ से लौटते हुए, मैंने इस लंबी बातचीत के दौरान टूटी-फूटी जापानी भाषा के लिए उनसे क्षमा माँगी। उन्होंने हौसला बढ़ाते हुए कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है, मेरी जापानी बुरी नहीं है।
मैंने तकाशी सान से कहा है कि मैं अगली बार जब भी धनिया लेने आऊँगी तो उनके लिए कोई भारतीय व्यंजन लाने की कोशिश करूँगी। उन्होंने झुककर मुझे धन्यवाद कहते हुए कहा कि उसकी ज़रूरत नहीं है। मैं तकलीफ़ न करूँ। मैंने भी झुककर उन्हें धन्यवाद कहा।
वहाँ से लौटते हुए, मैं लगभग उछल रही हूँ। ऐसा लगता है, मैं चार-पाँच साल की छोटी बच्ची हूँ। मुझे ऐसा पिछले महीने की पहली तारीख़ को लगा था। (क्यों? वह तो अगली बार बताऊँगी)
वहाँ से लौटकर मैं वास्तुकला की प्रजेंटेशन तैयार कर रही हूँ। हम कक्षा में किसी बिल्डिंग और उसकी बनावट के आधार पर उससे उत्पन्न होने वाले प्रभावों पर भी अक्सर चर्चा करते हैं। मैं उस दुकान और एक सुपरस्टोर में अंतर स्पष्ट देख सकती हूँ।
मुझे सुपरस्टोर जाते हुए चार-पाँच महीने हो गए हैं। मैंने वहाँ कभी किसी से पाँच मिनट भी बात नहीं की, किसी का नाम नहीं पूछ सकी, वहाँ कोई मुझसे नहीं कह सका है कि मेरा नाम यह है, मुझे यह कहकर बुलाइए, वहाँ कोई नहीं जानता है कि मैं कहाँ से हूँ और यह कि मुझे धनिया क्यों पसंद है। मैं कभी किसी भी सुपरस्टोर से उछलते हुए नहीं निकली हूँ।
मैं इलाहाबाद में अपने मौहल्ले की दुकानों, दुकानदारों, घरवालों से उनकी जान-पहचान और बहुत-सी चीज़ों के बारे में सोच रही हूँ। किसी जगह का आर्किटेक्चर सिर्फ़ उसका बाहरी हिस्सा नहीं होता, बल्कि वह उस जगह का एक अविभाज्य अंग होता है। इस बात को इससे बेहतर मैंने कभी नहीं समझा था।
दीवारों के उनकी नियत जगह पर होने के पीछे का विचार, दुकान जैसी जगह में संवाद की उपस्थिति या अनुपस्थिति में इन दीवारों का योगदान, अपनत्व, बातचीत की संभावना, आदान-प्रदान का अवसर, जापान मुझे यह सब समझने का मौक़ा अभूतपूर्व तरीक़े से दे रहा है।
मैं कमरे में पहुँचते ही जैम का डिब्बा खोलकर उसे चखती हूँ। जैम बहुत अच्छा है। उतना ही मीठा जितना होना चाहिए, थोड़ा खट्टा भी है।
जापान और मेरी जापानी जैसा!
~~~
अगली बेला में जारी...
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
07 अगस्त 2025
अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ
श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत
10 अगस्त 2025
क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़
Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi
08 अगस्त 2025
धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’
यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा
17 अगस्त 2025
बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है
• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है
22 अगस्त 2025
वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं