भारतीय समाज का गुड गर्ल सिंड्रोम
शिवम तोमर
21 जनवरी 2025

भारतीय समाज में लड़कियों की परवरिश एक जटिल प्रक्रिया है—संरक्षण और स्वतंत्रता के बीच का एक सूक्ष्म संतुलन। वे शिक्षा और करियर के लिए प्रेरित की जाती हैं, लेकिन उनकी उड़ान पर अदृश्य धागों से खिंचाव डाला जाता है। शुचि तलाटी (लेखन-निर्देशन) की ‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’, जिसने 2024 में सनडांस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दो पुरस्कार जीते, इसी जटिल यथार्थ को एक बोर्डिंग स्कूल की पृष्ठभूमि में रखकर देखती है। यह पहली बार नहीं है कि इस विषय पर कोई फ़िल्म बनी हो, लेकिन इसे जिस कोमलता और संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया गया है, वही इसे अलग बनाता है।
फ़िल्म के केंद्र में मीरा है, जिसे उसकी सहेलियाँ ‘मीराबाई’ कहकर चिढ़ाती हैं—उसके नियमों के प्रति कट्टर समर्पण के कारण। स्कूल का वातावरण उन अनगिनत भारतीय संस्थानों का प्रतीक है, जहाँ ‘अच्छी लड़की’ बनने की प्रक्रिया एक सख्त ढाँचे में ढाली जाती है। यहाँ ‘अच्छी लड़की’ का प्रतिमान एक ऐसा पिंजरा है, जिसमें समाज अपनी बेटियों को सजाता है, सँवारता है, और फिर उड़ान भरने से रोकता है। अनुशासन यहाँ एक निगरानी तंत्र में तब्दील हो चुका है—कपड़ों से लेकर बातचीत तक पर नियंत्रण। जब लड़के सीढ़ियों पर चढ़ती लड़कियों के पैरों की तस्वीरें उतारते हैं, तो दोष लड़कियों का ठहराया जाता है कि वे क्यों इतनी ऊँची स्कर्ट पहनती हैं। वहीं पितृसत्ता के नाले में बजबजाती पुरानी मानसिकता जिसमें लड़कियों के ख़ुद के शरीर को उन्हें शर्मिंदा करने का ज़रिया बनाया जाता है।
मीरा की माँ—अनिला, एक जटिल स्त्री हैं; एक सतर्क, कंट्रोलिंग माँ, जो भीतर से अकेली है। अनिला का चरित्र एक ऐसी नदी की तरह है, जो अपने ही तट में क़ैद है। उनका हरिद्वार से हर परीक्षा के समय मीरा का ख़याल रखने के लिए आना, मात्र एक मातृ-कर्तव्य नहीं, बल्कि अपनी खोई हुई युवावस्था की यादों में लौटने का एक छिपा हुआ प्रयास है। उनके भीतर का खोया हुआ समय उनके पहनावे में तब झलकता है—जब श्रीनिवास (मीरा का क्लासमेट/प्रेमी) से पहली बार मिलने के लिए वह एक गुलाबी रंग के ओवरसाइज़्ड एवं चमकीले टॉप का चुनाव करती हैं। वह संभवतः उनकी युवा अवस्था की कोई धुंधली याद है, एक ऐसी आकांक्षा जो कभी पूरी नहीं हुई।
श्रीनिवास मीरा के साथ पढ़ाई के लिए अक्सर घर आने लगता है। और इसी क्रम में जब वह अनिला को उनके नाम से पुकारने लगता है, तो माँ-बेटी के बीच एक सूक्ष्म, मगर तीखा द्वंद्व जन्म लेता है। एक दृश्य में, जब अनिला—श्रीनिवास के हॉस्टल में फोन करती हैं और मीरा उनके पास खड़ी होती है, तो अनिला रिसीवर को रसोई के तौलिये से ढक लेती हैं, ताकि उनकी आवाज़ थोड़ी बदलकर सामने वाले तक पहुँचे। फ़िल्म में तमाम ऐसे और मोमेंट्स हैं जिनकी परतें फ़िल्म के चलते-चलते खुलती रहती हैं। इनमें अनिला के बीते जीवन के दृश्य और दमित आकांक्षाएँ लगातार झिलमिलाती हैं।
फ़िल्म में मीरा का श्रीनिवास के प्रति आकर्षण एक साधारण प्रेम कहानी नहीं है। यह उसकी आत्म-खोज की यात्रा है। किशोरावस्था की दो विपरीत दृष्टियों को सूची तलाटी ने दो दृश्यों में बेहद ख़ूबसूरती से दर्शाया है—एक में मीरा माइक्रोस्कोप से ख़ून की एक बूंद को देखती है, दूसरे में टेलीस्कोप से विशाल अंतरिक्ष को। ये दोनों दृश्य किशोरावस्था की दृष्टि के प्रतीक हैं—कभी संकुचित, कभी व्यापक। आत्म-खोज की यात्रा में जब एक लड़की अपनी दृष्टि से दुनिया को देखने-समझने लगती है तो स्कूल इसे अनुशासनहीनता कहता है, माँ ‘बिगड़ना’। मगर यह विरोध अस्ल में एक डर है—डर कि लड़की अपने निर्णय स्वयं लेना शुरू कर देगी।
फ़िल्म दिखाती है कि कैसे एक पीढ़ी की अधूरी इच्छाएँ अगली पीढ़ी के लिए बंधन बन जाती हैं। अनिला की पीढ़ी ने जो कुछ खोया, वह उसे अपनी बेटी में भी नहीं देख पाती। लेकिन मीरा जैसी लड़कियाँ समझने लगती हैं कि उनका शरीर, उनकी इच्छाएँ, उनके निर्णय उनके अपने हैं। यही समझ उन्हें विद्रोही बनाती है, और यही विद्रोह अनिवार्य है।
फ़िल्म की एक प्रमुख विशेषता इसका उत्कृष्ट अभिनय है। मीरा के किरदार में प्रीती पणिग्रही ने किशोरावस्था की जटिलताओं को बख़ूबी समझा और उतारा है। उनका अभिनय सूक्ष्म है, पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। अनिला के रूप में कनी कुश्रुति, जिन्होंने ‘ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट’ में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था—ने एक जटिल किरदार को बेहद विश्वसनीय बना दिया है। वह अनिला की आंतरिक उथल-पुथल को बिना किसी अतिरंजना के, बेहद सहजता से प्रस्तुत करती हैं।
‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’ एक ऐसी फ़िल्म है जो याद दिलाती है कि भारत में लड़कियों की आज़ादी की लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई—यह हर पीढ़ी के साथ नए रूप लेती है, नई चुनौतियाँ लाती है। और इस संघर्ष में हर किसी की भूमिका है—माँ की भी, बेटी की भी, और पूरे समाज की भी।
भारतीय दर्शकों के लिए यह फ़िल्म अमेज़ॉन प्राइम पर उपलब्ध है।
संबंधित विषय
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
07 अगस्त 2025
अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ
श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत
10 अगस्त 2025
क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़
Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi
08 अगस्त 2025
धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’
यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा
17 अगस्त 2025
बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है
• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है
22 अगस्त 2025
वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं