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प्रधानमंत्री पर उद्धरण

संसदीय प्रणाली में सरकार

के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री जनता की आशाओं-आकांक्षाओं का अवलंब होता है और उसकी इस अद्वितीय उपस्थिति में कविताएँ उससे संवाद की अपेक्षा करती रहती हैं। प्रस्तुत चयन ऐसी ही कविताओं से किया गया है।

अपने दल को बलवान बनाने के लिए प्रधानमंत्री पार्लियामेन्ट से कैसे-कैसे काम करवाता है—इसकी मिसालें जितनी चाहिए उतनी मिल सकती हैं। यह सब सोचने लायक है।

महात्मा गांधी

मुझे प्रधानमंत्रियों से द्वेष नहीं है, लेकिन तजुरबे से मैंने देखा है कि वे सच्चे देशाभिमानी नहीं कहे जा सकते। जिसे हम घूस कहते हैं, वह घूस वे खुल्लम-खुल्ला नहीं लेते-देते, इसलिए भले ही वे ईमानदार कहे जाएँ, लेकिन उनके पास वसीला काम कर सकता है। वे दूसरों से काम निकालने के लिए उपाधि वगैरा की घूस बहुत देते हैं।

महात्मा गांधी