प्रत्येक घर में एक चरखा और थोड़ी आबादी वाले हर एक गाँव में एक करघा—यह आने वाले युग के विधान का मंत्र है।
खादी मज़दूरों की सेवा करती है, मिल का कपड़ा उनका शोषण करता है।
चरखे में नीतिशास्त्र भरा है, अर्थशास्त्र भरा है और अहिंसा भरी है।
चरखे ने कितने ही लोगों के जीवन और हृदय को बदल दिया है।
खादी द्वारा कला की—जीवित कला की—उपासना होती है।
चरखा करोड़ों का गृह उद्योग और जीवन का आधार है।
चरखा कुल मिलाकर देश के धन की अवश्य वृद्धि करता है, और पूरी मज़दूरी दी जाए तो चलाने वाले का गुजर करा सकता है।
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खादी की जड़ सत्य और अहिंसा में है।
अकाल मे संकट निवारण के कामों मे चरखा सफल साबित हुआ है।
खादी और मिल में प्रतिद्वंद्विता नहीं समझनी चाहिए, और ठीक हिसाब लगाया जाए तो है भी नहीं।
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खादी मानवीय मूल्यों की प्रतीक है, जबकि मिल का कपड़ा केवल भौतिक मूल्य प्रकट करता है।
सहायक धंधे के रूप में चरखे में जो गुण है, वे दूसरे किसी उद्योग में नही है।
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