बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

17 मई 2024

‘सोडा, बन-मस्का और वाल्टर बेन्यामिन’

‘सोडा, बन-मस्का और वाल्टर बेन्यामिन’

सोडा और बन-मस्का  पुणे के कैंप इलाक़े में साशापीर रोड पर एक कम प्रचलित शरबतवाला चौक है। शरबत अरबी शब्द है, शराब भी इसी से निकला है। शरबतवाला चौक पर 1884 में फ़्लेवर्ड सोडा कंपनी की शुरुआत हुई। पुणे क

16 मई 2024

एलिस मुनरो की कहानी से

एलिस मुनरो की कहानी से

मेरी माँ मेरे लिए एक पोशाक बना रही थी। पूरे नवंबर के महीने में जब मैं स्‍कूल से आती तो माँ को रसोईघर में ही पाती। वह कटे हुए लाल मख़मली कपड़ों और टिश्‍यू पेपर डिज़ाइन की कतरनों के बीच घिरी हुई नज़र आत

16 मई 2024

उम्र हाथों से रेत की तरह फिसलती रहती है और अतीत का मोह है कि छूटता ही नहीं

उम्र हाथों से रेत की तरह फिसलती रहती है और अतीत का मोह है कि छूटता ही नहीं

हिंदी की समादृत साहित्यकार मालती जोशी का बुधवार, 15 मई को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वर्ष 2018 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वह लगभग 70

15 मई 2024

जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-2

जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-2

जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह दूसरी कड़ी है। पहली कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर के नाम को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। इस कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले हुए हैं। मैं पु

14 मई 2024

‘लापता लेडीज़’ देखते हुए

‘लापता लेडीज़’ देखते हुए

‘लापता लेडीज़’ देखते हुए मेरे अंदर संकेतों और प्रतीकों की पहचान करने वाली शख़्सियत को कुछ वैसा ही महसूस हुआ जो कोड्स की सूँघकर पहचान कर देने वाले कुत्तों में होती है। मुझे लगा कि इस फ़िल्म के ज़ाहिर किए

10 मई 2024

वालिद के नाम एक ख़त

वालिद के नाम एक ख़त

प्यारे अब्बा! मैं जानता हूँ कि मैं इस तहरीर के पहले लफ़्ज़ को आपको पुकारने के लिए इस्तेमाल करने के लायक़ नहीं हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि मैंने होश सँभालने से लेकर अब तक आपको सिर्फ़ दुख पहुँचाया ह

09 मई 2024

शांतिनिकेतन में हुआ ‘कैंपस कविता’ का अनूठा आयोजन

शांतिनिकेतन में हुआ ‘कैंपस कविता’ का अनूठा आयोजन

विश्व-भारती, शांतिनिकेतन के हिंदी भवन में गई 6 मई को ‘कैंपस कविता’ का अप्रतिम आयोजन संपन्न हुआ। यह आयोजन हिंदी-विभाग और रेख़्ता समूह के उपक्रम ‘हिन्दवी’ के संयुक्त तत्त्वावधान में हुआ। कविता-विरोध

08 मई 2024

रवींद्रनाथ ने कहा है कि...

रवींद्रनाथ ने कहा है कि...

हमारे गाँव में और कुछ हो या न हो, कुछ मिले न मिले... पर रवींद्रनाथ थे। वह थे और वह पूरी तरह से घर के आदमी थे। घरवाले वही होते हैं जिन्हें देखकर भी हम अनदेखा करते हैं, जिन्हें सोचकर भी हम नहीं सोचते य

07 मई 2024

जब रवींद्रनाथ मिले...

जब रवींद्रनाथ मिले...

एक भारतीय मानुष को पहले-पहल रवींद्रनाथ ठाकुर कब मिलते हैं? इस सवाल पर सोचते हुए मुझे राष्ट्रगान ध्यान-याद आता है। अधिकांश भारतीय मनुष्यों का रवींद्रनाथ से प्रथम परिचय राष्ट्रगान के ज़रिए ही होता है, ह

06 मई 2024

एक रोज़ हम लौट आना चाहते हैं

एक रोज़ हम लौट आना चाहते हैं

मई 2024         तुमने कहा—जाती हूँ  और तुमने सोचा कवि केदार की तरह मैं कहूँगा—जाओ लेकिन मेरी लोकभाषा के पास अपने बिंब थे मेरी लोकभाषा में कोई कहीं जाता था ‘तो आता हूँ’ कहकर शेष बच जाता था

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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