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यह ‘टेम्बा’ का साल है, यह उम्मीद का साल है

साल 1999, एकदिवसीय (वनडे) क्रिकेट वर्ल्ड कप का सेमीफ़ाइनल मैच। फ़ॉर्म में चल रहे ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ का कैच दक्षिण अफ़्रीका के हर्शेल गिब्स के हाथों से छिटक जाता है। स्टीव वॉ, हर्शेल गिब्स के पास आकर उनके कानों में कहते हैं—“तुमने अभी-अभी यह वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी गिरा दी” (You just dropped the World Cup trophy).

आवेश में कही गई स्टीव वॉ की यह बात दक्षिण अफ़्रीका के लिए पत्थर की लकीर साबित हुई। ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ़्रीका का वह मैच टाई—क्रिकेट में दो टीमें जब बराबर रनों पर पारी ख़त्म करती है—हो गया और बेहतर रन रेट के आधार पर विश्व कप के फ़ाइनल में पहुँचकर ऑस्ट्रेलिया ने ट्रॉफ़ी अपने नाम कर ली। उस दिन के बाद से दक्षिण अफ़्रीका को क्रिकेट के किसी भी प्रारूप के फ़ाइनल में दुबारा पहुँचने के लिए छब्बीस साल का समय लग गया और अपनी पहली आईसीसी ट्रॉफ़ी जीतने के लिए पूरे सत्ताईस साल। इन तीन दशकों में दक्षिण अफ़्रीका ने न जाने कितनी ही बाई-लेटरल सीरीज़ में बेहतरीन प्रदर्शन किया, मगर विश्व कप में आकर हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उनकी टीम विश्व कप और आईसीसी इवेंट्स के ज़रूरी मैचों में हर बार ‘चोक’ करते रही और इस तरह हर बड़े टूर्नामेंट के हर कसे-मुश्किल मैच से पहले उनकी टीम के लिए ‘चोकर्स’ शब्द को प्रयोग किया जाने लगा।

अब यह साल 2025 है—चोकर्स के भाग्योदय का साल। इस साल कितने ही स्पोर्ट्स क्लब और टीमें अपने माथे पर लगे ऐसे दाग़ धोने में सफल हुई है। यह सिलसिला अब भी जारी है। 3 जून, 2025 को आईपीएल की सबसे लोकप्रिय टीम आरसीबी—जिससे हाल ही में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने वाले भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली भी जुड़े रहे हैं—ने अठारह सालों के बाद अपनी पहली ट्रॉफ़ी जीती और ‘ई साला कप नमदे’ को ‘ई साला कप नमदू’ में तब्दील किया। दूसरी तरफ़ 14 जून, 2025 को क्रिकेट जगत में ‘चोकर्स’ के नाम से विख्यात दक्षिण अफ़्रीका ने ऑस्ट्रेलिया को पटककर आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप जीतकर सत्ताईस सालों का सूखा ख़त्म किया।

इन्हीं छह महीनों में, न्यूकासल यूनाइटेड ने लिवरपूल को 2-1 से हराकर सत्तर साल बाद ईएफ़एल (EFL) कप जीतकर इतिहास रचा, तो क्रिस्टल पैलेस ने एक सौ उन्नीस साल के इंतज़ार के बाद एफ़ए (FA) कप जीतकर पहली बार किसी बड़ी ट्रॉफ़ी को अपने नाम किया। बोलोग्ना एफसी ने 1974 के बाद पहली बार कोप्पा इटालिया का ख़िताब जीता, पूरे इक्यावन साल बाद। वहीं, टॉटनहैम हॉटस्पर ने सत्रह सालों के इंतज़ार को ख़त्म कर मैनचेस्टर यूनाइटेड को हराकर यूएफ़ा (UEFA) यूरोपा लीग का ख़िताब अपने नाम किया। खेल-जगत की ये सारी ऐतिहासिक घटनाएँ 2025 के शुभ क़दमों की चंद मिसाल भर हैं, जिसे कहने वाले ‘इत्तिफ़ाक़’ भी कह सकते हैं। मगर क्या यह एक इत्तिफ़ाक़ भर है! कम-से-कम आँकड़े तो ऐसा नहीं कहते। इन सबके अलावा, ऑल्डरशॉट टाउन ने एफ़ए (FA) ट्रॉफ़ी, पेरिस सेंट-जर्मेन (PSG) ने यूएफ़ा (UEFA) चैंपियंस लीग और होबार्ट हरीकेंस ने बिग बैश लीग (BBL) का ख़िताब पहली बार जीता। वहीं एबर्डीन एफ़सी ने 1989-90 के बाद पहली बार स्कॉटिश कप जीता, जिनकी पिछली बड़ी जीत 2013-14 में आई थी।

फिर भी इन सब बोरिंग आँकड़ों और तथाकथित रैंडम घटनाओं का यहाँ ज़िक्र करने का क्या मतलब है? भारत की लगभग पचहत्तर प्रतिशत आबादी क्रिकेट छोड़कर कोई दूसरा खेल नहीं देखती और संसार का हर एक व्यक्ति भी कोई-न-कोई खेल देखता ही है, इसका भी कोई पक्का सबूत नहीं है। फिर इन बातों का यहाँ क्या मतलब है? जिन्होंने जीत हासिल की, उन्हें प्रसिद्धि मिली, बड़े-बड़े ईनाम मिले। आप-हम तो रोज़ मेहनत करके नमक-तेल जोड़ने वाले आम आदमी हैं, हमें क्या मिला? यहीं सोच रहे हैं आप? मैं भी आप की तरह एक साधारण आदमी हूँ और इस वक़्त मैं भी यही सोच रहा हूँ—होता है किसी का भाग्योदय तो होता रहे, मुझे इससे क्या? मेरे घर के ख़र्चे और ईएमआई का इंतज़ाम ये लोग तो नहीं करने वाले, यक़ीनन नहीं; मगर जो काम ये घटनाएँ कर सकती हैं—क्या हम उन्हें देख पा रहे हैं?

आए दिन हम किसी करोड़पति बिजनेसमैन या वेल-सेटल्ड सीए या सॉफ़्टवेयर इंजीनियर की ख़ुदकुशी की ख़बर पढ़ते हैं और चौंक कर सोचते हैं कि आख़िर ऐसी क्या मजबूरी रही होगी कि यह शख़्स इतनी आसानी से हालात के सामने ‘चोक’ कर गया। हक़ीक़त में हम सबके ऊपर ज़िम्मेदारियों और हालात के दबाव का एक बोझ है, जिसे ना चाहते हुए भी हमें उठाना ही पड़ता है। रात-रात भर सड़कों पर आवारागर्दी करने वाले लड़कों की पीठ से बाप बनते ही यह दवाब का बोझ एक बैकपैक की तरह नहीं, कूबड़ की तरह चिपक जाता है। माता-पिता की दवाइयों और ईएमआई का जुगाड़ करते-करते, कब वह लड़का अपने सब बाग़ी तेवरों को भूल समाज के अघोषित अँधे-बहरे नियमों का शिद्दत से पालन करने लगता है, मालूम नहीं चलता। माँ-बाप को मुखाग्नि देते-देते, वह परिवार के बाक़ी लोगों के सपनों को पूरा करने वाले यज्ञ की समिधा बनकर रह जाता है।

कौन जानता था कि दक्षिण अफ़्रीकी शब्द ‘टेम्बा’ का अर्थ क्या होता है, और इससे क्या फ़र्क़ पड़ता था किसी को? मगर जब से टेम्बा बवूमा ने दक्षिण अफ़्रीका को ट्रॉफी दिलाई है, क्रिकेट खेलने-देखने-सुनने वाला बच्चा-बच्चा जानता है कि ‘टेम्बा’ का मतलब—‘आशा’ है, ‘उम्मीद’ है और समुंदर का वज़्न अपनी पीठ पर ढोकर भी हार न मानना है।

आपको भी यही करना है। रोज़ सुबह उठकर अपने सीने पे हाथ रखकर ख़ुद से कहना है—यह साल आशा का साल है, यह साल उम्मीद का साल है, यह साल ‘टेम्बा’ का साल है।

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