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संसार पर बेला

‘संसरति इति संसारः’—अर्थात

जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

08 सितम्बर 2024

युद्ध और प्रतिशोध का 'अंधा युग'

युद्ध और प्रतिशोध का 'अंधा युग'

नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित कर रहा है। यह समारोह एनएसडी रंगमंडल की स्थापना के साठ वर्ष पूरे होन

09 अगस्त 2024

प्रेम और विवाह में प्रेम नहीं है!

प्रेम और विवाह में प्रेम नहीं है!

कैसी विडंबना है कि हर समाज में प्रेम-विवाह और तलाक़ दोनों का प्रचलन एक साथ और एक-सी तेज़ी से बढ़ता रहा है। रूमानी साहित्य और सिनेमा में यह आभास दिया जाता रहा कि प्रेमी-प्रेमिका विवाह-सूत्र में बँधकर

08 जुलाई 2024

न सुधा जैसी कोई नायिका हुई, न चंदर जैसा कोई नायक

न सुधा जैसी कोई नायिका हुई, न चंदर जैसा कोई नायक

तीसरी कड़ी से आगे... क्लबहाउस की दुनिया अब प्रौढ़ हो चुकी थी। अपने शुरुआती दिनों की तमाम स्थापनाओं के बाद यहाँ की सभ्यता, नियम-क़ायदों और ज़रूरी रीति-रिवाज़ से अब यहाँ बसने वाले बख़ूबी परिचित हो चुके थे

07 जुलाई 2024

हुस्न को समझने को क्लबहाउस जाइए जानाँ

हुस्न को समझने को क्लबहाउस जाइए जानाँ

दूसरी कड़ी से आगे... समय और क्लबहाउस मैं समय हूँ!—यहाँ यह कहने वाला कोई नहीं, लेकिन फ़ेसबुक के अल्गोरिदम की तरह क्लबहाउस का भी अपना तिया-पाँचा था, जिसे स्पीकर्स जितना जानते थे—सुनने वाले भी उतना

06 जुलाई 2024

इस चर्चा में सब कुछ पुराना होकर भी नया था

इस चर्चा में सब कुछ पुराना होकर भी नया था

पहली कड़ी से आगे... क्लबहाउस की दुनिया को बनाने वालों लोग ग़म-ए-रोज़गार से ऊबे हुए लोग थे—वे अजीब लोग थे! वे इतने अजीब थे कि अब उन्हें एक नॉस्टेल्जिया की तरह याद किया जा सकता है। जो अभिव्यक्ति के नाम

05 जुलाई 2024

आवाज़ की दुनिया के दोस्तो!

आवाज़ की दुनिया के दोस्तो!

कोविड की हाहाकारी लहर के बीच जनजीवन का ख़तरा इतना अबूझ था कि लोग उसे हर संभव जानने-समझने की कोशिश में लगे थे। वे हर किसी की बात सुन रहे थे, गुन रहे थे, धुन रहे थे। उनके लिए आख़िरी और प्रामाणिक सत्य कुछ

30 जून 2024

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

...काम आज़ादी का मज़ाक़ उड़ाता है। समझाया तो यह जाता है कि हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमें सारे अधिकार प्राप्त हैं। दूसरे; जो दुर्भाग्यशाली हैं, वे हमारी तरह स्वतंत्र नहीं हैं और उन्हें पुलिसिया राज

29 जून 2024

दुनिया के मजदूरो! आराम करो।

दुनिया के मजदूरो! आराम करो।

किसी को कभी भी कोई भी काम नहीं करना चाहिए। काम दुनिया के सारे दुखों की जड़ है। बुराई चाहे कोई हो, सारी की सारी या तो काम से पैदा होती हैं, या फिर काम की दुनिया में रहने से। दुखों से मुक्ति का मतलब

03 जून 2024

जीवन के गरिष्ठ सुक्खल गल्प में बेहयाई की रसीली बहक

जीवन के गरिष्ठ सुक्खल गल्प में बेहयाई की रसीली बहक

एक दिन मेरी एक लगभग-मित्र ने कहा कि उसने ‘बेहयाई के बहत्तर दिन’ पहली सिटिंग में पचास पेज पढ़ ली। मैं लज्जा से अपना मुँह चोरवाने लगा कि दो महीने बाद भी किताब पूरी नहीं पढ़ पाया हूँ, जबकि झोले में किताब-

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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