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उपवास पर उद्धरण

उपवास करने से चित्त अंतर्मुख होता है, दृष्टि निर्मल होती है और देह हलकी बनी रहती है।

काका कालेलकर

चारों तरफ़ उपवासों का शोर है, उपवास, उसके विरुद्ध उपवास, विरुद्ध उपवास के विरुद्ध उपवास और विरुद्ध के, विरुद्ध के विरुद्ध उपवास।

धर्मवीर भारती

उपवास की सच्ची उपयोगिता वहीं होती है, जहाँ मनुष्य का मन भी देह-दमन में साथ देता है।

महात्मा गांधी

शरीर के अधिक निर्मल होने से स्वाद बढ़ गया, भूख अधिक खुल गई और मैंने देखा कि उपवास आदि जिस हद तक संयम के साधन हैं—उस हद तक वे भोग के साधन भी बन सकते हैं।

महात्मा गांधी

उपवास करते हुए भी मनुष्य विषयासक्त रह सकता है, पर बिना उपवास के विषयासक्ति को जड़-मूल से मिटाना संभव नहीं है।

महात्मा गांधी

शरीर में से ख़र्च हो जाने वाले तत्त्वों को फिर पूरा करने और इस प्रकार शरीर को कार्यक्षम स्थिति में रखने के लिए आहार की ज़रूरत है। इसलिए यह दृष्टि रखकर ही जितने और जिस प्रकार के आहार की ज़रूरत हो वही खाना चाहिए। स्वाद के लिए—अर्थात् जीभ को रुचने की दृष्टिसे कुछ खाना या ख़ुराक में मिलाना, अथवा अधिक आहार करना अस्वाद-व्रत का भंग है।

महात्मा गांधी

एक भी इंद्रिय स्वच्छंदी बन जाने से दूसरी इंद्रियों पर प्राप्त नियंत्रण ढीला पड़ जाता है। उनमें भी, ब्रह्मचर्य की दृष्टि से जीतने में सबसे कठिन और महत्त्व की स्वादेंद्रिय है। इस पर स्पष्ट रूप से ध्यान रखने के ख़याल से स्वादजय को व्रतों में ख़ास स्थान दिया गया है।

महात्मा गांधी

बाह्य उपचारों में जिस तरह आहार के प्रकार और परिमाण की मर्यादा आवश्यक है, उसी तरह उपवास के बारे में भी समझना चाहिए।

महात्मा गांधी