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विशाखदत्त

विशाखदत्त की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 4

जिस प्रकार सागर रत्नों की ख़ान है, उसी प्रकार जो शास्त्रों की ख़ान है, उसके गुणों से भी हम संतुष्ट नहीं होते जब हम उससे ईर्ष्या करते हैं।

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पराधीन मनुष्य सुख के आनंद को किस प्रकार जान सकता है।

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मूर्ख किसान का भी अच्छे खेत में पड़ा बीज वृद्धि को प्राप्त हो जाता है।।

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भाग्य के मारे हुए व्यक्ति की संपूर्ण बुद्धि विपरीत हो जाती है।

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