

करुणा अपना बीज अपने आलंबन या पात्र में नहीं फेंकती है अर्थात् जिस पर करुणा की जाती है, वह बदले में करुणा करने वाले पर भी करुणा नहीं करता— जैसा कि क्रोध और प्रेम में होता है—बल्कि कृतज्ञ होता अथवा श्रद्धा या प्रीति करता है।

उपकारों को भूलना मनुष्य का स्वभाव है। अतः यदि हम दूसरों से कृतज्ञता की आशा करेंगे तो हमें व्यर्थ ही सर दर्द मोल लेना पड़ेगा।


कृतज्ञता शब्दों में आकर शिष्टता का रूप धारण कर लेती है। उसका मौलिक रूप वही है जो आँखों से बाहर निकलते हुए काँपता और लजाता है।

अहंता और ममता के नाश से सर्वथा अहम्-विहीन होने पर जब जीव स्वरूपस्थ हो जाता है तो उसे कृतार्थ कहा जाता है।

कृतज्ञता का बंधन अमोघ है।

जिन बातों के लिए आप कृतज्ञ हैं उन्हीं के विषय में सोचिए और उपलब्ध ऐश्वर्य तथा वैभव के लिए भगवान को धन्यवाद दीजिए।

धन्यता आँसुओं की पुत्री है और सत्य पीड़ा का पुत्र।

जेल जाना गौरव की बात है। कोई भी जेल जाकर हमपर एहसान नहीं करता वह स्वयं कृतार्थ होता है।

मेरे बारे में पूछताछ करने वाला संसार में एक प्रकार से कोई नहीं है। इसलिए अगर कोई मेरे बारे में भला-बुरा जानना चाहता है, तो सुनकर हृदय कृतज्ञता से भर जाता है, मेरे जैसे हतभाग्य संसार में बहुत ही कम है।
