जॉन बर्जर के उद्धरण
कोई इसी जीवन में अमरता को महसूस करने के सबसे क़रीब पहुँच सकता है तो शायद—काम्य होकर।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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संबंधित विषय : जीवन
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अनावृत होना यानी स्वयं का होना है, जबकि नग्नता दूसरों के द्वारा नग्न देखा जाना है—जिसकी तस्दीक़ स्वयं के लिए नहीं होती।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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विज्ञापनों द्वारा की गई दुनिया की व्याख्या और वास्तविक दुनिया में बहुत विरोध है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
कोई दो सपने एक से नहीं होते। कुछ क्षणिक होते हैं, कुछ दीर्घकालिक। देखने वाले के लिए सपने बहुत व्यक्तिगत होते हैं। विज्ञापन सपने नहीं गढ़ते; वह हममें से हर एक को जो कुछ बताते हैं, वह यह कि अभी हम ईर्ष्या के पात्र नहीं हैं, लेकिन हो सकते हैं।
अनुवाद : आशीष मिश्र
कैमरे ने क्षणिक प्रतीतियों को अलग-थलग कर दिया और इस तरह छवियों के समय-निरपेक्ष होने के विचार को ध्वस्त कर दिया।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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देखते हुए हम सिर्फ़ किसी एक चीज़ को नहीं देखते; बल्कि हम चीज़ों के पारस्परिक और उस संबंध को भी देखते हैं, जो उन चीज़ों का हमारे साथ है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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विज्ञापन के अनुसार सुसंस्कृत होने का मतलब है—किसी भी विवाद से दूर रहना।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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कोई कलाकृति जितनी ज़्यादा कल्पनाशील होती है, उतनी ही वह हमें कलाकार के दृश्य-जगत् के अनुभवों के बारे में बताती है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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हम चीज़ों को जिस तरह देखते हैं, वह हमारे ज्ञान और विश्वासों से प्रभावित होता है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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आधुनिक काल का ग़रीब, दया का पात्र नहीं समझा जाता; बल्कि उसे कचरे की तरह हटा दिया जाता है। बीसवीं सदी की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में पहली ऐसी संस्कृति की निर्मिति हुई, जिसके लिए भिखारी होना—कुछ नहीं होने का तक़ाज़ा है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
प्रेम की अवस्था में प्रियतम की दृष्टि में जो पूर्णता होती है, उसे किसी शब्द या आलिंगन से नहीं मापा जा सकता।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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विज्ञापन किसी सेवा या वस्तु को बेचने के लिए सेक्सुअलिटी का उग्र इस्तेमाल करते हैं। लेकिन यह सेक्सुअलिटी अपने आप में आज़ाद नहीं है, बल्कि यह अपने से बड़ी किसी चीज़ का प्रतीक है—वह जीवन जिसमें आप वह सब ख़रीद सकते हैं, जो आप चाहते हों।
अनुवाद : आशीष मिश्र
विज्ञापनों को ख़रीदारों की पारंपरिक शिक्षा का लाभ मिलता है। जो कुछ उन्होंने इतिहास, मिथकों और कविताओं में पढ़ा है, उसका उपयोग इस ग्लैमर को रचने में किया जाता है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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कैमरे के आविष्कार ने मनुष्य के देखने का तरीक़ा बदल दिया।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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संबंधित विषय : तकनीक
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बहुसंख्यक जनता स्वाभाविक तौर पर यही मानती है कि म्यूज़ियम बाक़ी जगहों से अलग कुछ पवित्र चीज़ों से भरा है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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ईर्ष्या का पात्र होना आश्वस्ति का अकेला रूप है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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संबंधित विषय : ईर्ष्या
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विज्ञापन की भाषा में जिनके पास ख़र्चने के लिए पैसा न हो, वो व्यक्तित्वहीन हैं और जिनके पास पैसा है, वो सबकी चाहतों का पात्र होते हैं।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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संबंधित विषय : इश्तहार
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सारी बातें जो घटित होती हैं; अगर उन्हें नाम दिया जा सके, तो कहानियों की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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कैमरे के आविष्कार से उन पेंटिंग्स को देखने का तरीक़ा भी बदला, जो कैमरे के आविष्कार से बहुत पहले बनाई गई थीं।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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हाल तक, एक हद तक आज भी क्लासिक चीज़ों के अध्ययन में कुछ नैतिक मूल्य काम करते हैं, क्योंकि क्लासिक चीज़ें; चाहे उनके आंतरिक मूल्य जो भी हों, अभिजन वर्ग के जीवन-मूल्यों को अभिव्यक्त ज़रूर करती हैं।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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संबंधित विषय : जीवन
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बिना यह बताए कि अच्छे और सामान्य चित्रों में क्या फ़र्क़ है, महान कलाकृतियाँ औसत चित्रों से घिरी हुईं अपना वैशिष्ट्य खो देती हैं।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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इतिहास हमेशा वर्तमान और उसके अतीत के बीच संबंध का निर्माण करता है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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मेरी प्रेयसी! तुम्हारे होंठ मधु के छत्ते की तरह हैं : मधु और दुग्ध तुम्हारी जिह्वा के तल में हैं और तुम्हारे वस्त्रों की गंध मेरे घर की गंध जैसी है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
हमारे देखने और जानने के बीच का रिश्ता हमेशा अनसुलझा ही रहा है। हर शाम हम सूरज को अस्त होते देखते हैं। हम जानते हैं कि धरती सूरज से दूर हट रही है, फिर भी इसके बारे में हमारी जानकारी और व्याख्या—कभी भी पूरी तरह दृश्य के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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तुमने एक नग्न औरत का चित्र बनाया, क्योंकि उसे देखने में तुम्हें मज़ा आता रहा, फिर उसके हाथ में एक दर्पण पकड़ा दिया और इसे नाम दिया—वैनिटी। इस तरह तुमने उस औरत की नैतिक निंदा की, जिसकी नग्नता को तुमने अपने मज़े के लिए चित्रित किया था।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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जब आप प्रेम में होते हैं तो प्रेयसी के दिख जाने में ही एक परिपूर्णता होती है, शब्दों और अपनत्व से जिसकी कोई तुलना नहीं है—एक ऐसी पूर्णता जिसकी क्षणिक समरूपता—संभोग क्रिया ही हो पाती है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
एक पुरुष की उपस्थिति कुछ ऐसे आशय रखती है कि वह तुम्हारे लिए या तुम्हारे समक्ष क्या करने में समर्थ है। जबकि इसके विपरीत, स्त्री की उपस्थिति निश्चित करती है कि उसके साथ क्या किया जा सकता है और क्या नहीं।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
विज्ञापन इस अर्थ में भी क्षणिक होता है कि वह हर क्षण बदलता रहता है, फिर भी वह हमारे वर्तमान की बात नहीं करता। वह प्रायः हमारे अतीत का संदर्भ देता है और हमेशा हमारे भविष्य के बारे में बात करता है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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विज्ञापन उस भविष्य में स्थिर होता है, जो लगातार बदलता है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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इतिहास हमेशा किसी वर्तमान और उसके अतीत के बीच एक रिश्ता क़ायम करता है। फलस्वरूप वर्तमान का भय अतीत को रहस्यमय बनाने की ओर ले जाता है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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जब हम दुःख से गुज़रते हैं तो हम अपने बिल्कुल शुरुआती बचपन में लौटते हैं, क्योंकि वही वह समय है जब हमने पहली बार ‘पूरी तरह खोने’ का अनुभव करना सीखा था, बल्कि यह समय उससे भी कहीं अधिक था। बचपन वह समय है, जब हम अपनी पूरे जीवन की तुलना में कहीं अधिक ‘पूरी तरह खो देने’ के अनुभवों से गुज़रते हैं।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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कहानी पढ़ते हुए हम उसी में बस जाते हैं। पुस्तक का आवरण, चार दीवारों और एक छत जैसा लगने लगता है। आगे जो कुछ होने वाला है; वह कहानी की चार दीवारों के भीतर ही होगा और यह इसलिए संभव है, क्योंकि कहानी का स्वर हरेक चीज़ पर नियंत्रण कर लेता है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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संबंधित विषय : पढ़ना
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बिना विज्ञापन के पूँजीवाद ज़िंदा नहीं रह सकता—साथ ही विज्ञापन इसका स्वप्न है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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अतीत की कलाकृतियों और आज के विज्ञापन में बहुत से संबंध-सूत्र हैं। कभी-कभी तो विज्ञापनों की पूरी की पूरी छवि ही किसी प्रसिद्ध चित्र की नक़ल होती है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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अतीत कोई ऐसी शय नहीं है, जिसके हम क़ैदी हों। हम अतीत के साथ एकदम अपनी इच्छा के अनुरूप कुछ कर सकते हैं। जो हम नहीं कर सकते, वह है अतीत के परिणामों को बदलना।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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आत्मकथा अकेलेपन के बोध से शुरू होती है—यह एक अनाथ विधा है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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व्यक्तिगत-सामाजिक ईर्ष्या के एक आमफ़हम मनोभाव हुए बिना, ग्लैमर का अस्तित्व नहीं हो सकता।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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विज्ञापन के लिए सारी वास्तविक घटनाएँ अपवाद हैं, जो न जाने किसके लिए मायने रखती हैं।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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पूँजीवादी संस्कृति में किसी और तरह की आशा या संतुष्टि या सुख सिर्फ़ ईर्ष्या करने के लिए है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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मासूम रह जाना, अनभिज्ञ रह जाना भी हो सकता है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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कला-इतिहास, श्रेष्ठ और औसत यूरोपीय चित्रों के बीच कोई फ़र्क़ कर पाने में असफल रहा है। प्रतिभा का तर्क अपने आप में पर्याप्त नहीं है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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पुरुष स्त्रियों को निहारते हैं, स्त्रियाँ अपने निहारे जाने को देखती हैं।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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आज विकसित देशों में क्या काम्य है और क्या काम्य नहीं है, इसके झूठे मानक थोपकर इसे हासिल किया जा रहा है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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विज्ञापन सामाजिक संबंधों के बारे में होते हैं, चीज़ों के बारे में नहीं। ये आनंद का वादा नहीं करते, ख़ुशी का करते हैं। ख़ुशी बाहर के लोगों द्वारा जज की जाती है। ख़ुद से ईर्ष्या किए जाने का सुख ही ग्लैमर है।
अनुवाद : आशीष मिश्र
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कोई भी सच्ची चित्रकारी किसी अनुपस्थिति का स्पर्श करती है—एक ऐसी अनुपस्थिति, जिसे उस चित्रकारी के अभाव में हम जान नहीं पाते।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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