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रीतिकाल

काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।

1681 -1741 दिल्ली

रीतिकालीन नखशिख परंपरा के कवि।

1713

राधाकृष्ण भक्त। विष्णु स्वामी संप्रदाय से संबंध। वंशीअली के शिष्य। युगल भक्ति के कोमल पदों के लिए स्मरणीय।

1583 -1603

रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रेमोन्मत्त कवि। कविता में हृदय पक्ष की प्रधानता। परिमार्जित भाषा और अनूठी उत्प्रेक्षाओं के लिए विख्यात।

रीतिकाल के नीतिकवि।

रीतिकालीन आचार्य कवि। अलंकार ग्रंथ 'अलंकारमणि मंजरी' के रचनाकार। सुबोध और सरल विषय प्रतिपादन के लिए प्रसिद्ध।

रीतिकाल के नीतिकवि। हिंदी के पहले संबोधन काव्य के रचयिता। 'राजिया' को संबोधित सोरठों के लिए समादृत।

1746

रीतिकालीन आचार्य कवि। काव्यांग विवेचन और नायिकाभेद के लिए स्मरणीय।

रीतिकालीन कवि। साहित्य शास्त्र के प्रौढ़ निरूपण के लिए विख्यात।

डिंगल भाषा के श्रेष्ठ कवि। वीर रस से ओत-प्रोत काव्य के लिए उल्लेखनीय।

1680

ब्रजभाषा के सरस कवि। 'रस चंद्रोदय' नामक ग्रंथ के लिए ख्यात।

रीतिकालीन कवि। वीरकाव्य के रचयिता।

भक्तिकाल के अलक्षित कवि।

रीतिकाल। नायिकाभेद और नख-शिख वर्णन में सिद्धहस्त और सहृदय कवि।

रीतिकालीन नीति कवि। अलक्षित, लेकिन कविता सरस और सुंदर लिखी है।

पूरा नाम जुगलकिशोर। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के आश्रित कवि। लालित्यपूर्ण कविता और अनूठे शब्द-चयन के लिए ख्यात।

रीतिकाल की कवयित्री। पहेलियों के लिए स्मरणीय।

चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज विक्रमसाहि के दरबारी कवि। ब्रजभाषा में रचित वीरकाव्य 'लक्ष्मणशतक' के लिए स्मरणीय।

रीतिकाल और आधुनिककाल के संधि कवि। कृष्ण-भक्ति के पद पुरानी परिपाटी में लिखे। पदों में रूपक और उपमाओं की सुंदर प्रयोग।

रीतिकालीन कवि और अनुवादक। कलाकुशल और साहित्यमर्मज्ञ। चमत्कारिता के लिए प्रसिद्ध।

1666 -1708 पटना

सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु। 'खालसा पंथ' के संस्थापक। 'चंडी-चरित्र' के रचनाकार।

रीतिकालीन कवि। ऋतु वर्णन के लिए ख्यात।

रीतिकाल के टीकाकार और अल्पज्ञात कवि।

1830 -1901 अलवर

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

1802 -1867 मथुरा

रीतिबद्ध कवि। सोलह भाषाओं के ज्ञाता। देशाटन से अर्जित ज्ञान और अनुभव इनकी कविता में स्पष्ट देखा जा सकता है। विदग्ध और फक्कड़ कवि।

1713

जीवन के व्यावहारिक पक्ष के आलोक में नीति, वैराग्य और अध्यात्म के प्रस्तुतकर्ता। नीतिपरक कुंडलियों के लिए प्रसिद्ध।

1833 -1860 बनारस

वास्तविक नाम गोपालचंद्र। आधुनिक साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता।

रीतिग्रंथ रचना और प्रबंध रचना, दोनों में समान रूप से कुशल कवि और अनुवादक। प्रांजल और सुव्यवस्थित भाषा के लिए स्मरणीय।

ओरछा नरेश पृथ्वीसिंह के आश्रित कवि। आचार्यत्व सामान्य, भाषा सरल और उदाहरण सहज हैं।

रीतिकाल के अलक्षित कवि। 'कवित्त-हज़ारा' के रचनाकार।

1673 -1760 दिल्ली

रीतिकालीन काव्य-धारा के महत्त्वपूर्ण कवि। रीतिमुक्त कवियों में से एक। आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा ‘साक्षात् रसमूर्ति’ की उपमा से विभूषित।

रीतिग्रंथकार। अलक्षित कवि। फ़ारसी के ज्ञाता।

माधुर्य गुणयुक्त कविता में सलज्ज शृंगार की विवेचना करने वाली भारतेंदु युगीन अल्पज्ञात कवयित्री।

रीतिकालीन कवि। शृंगार और वीर रस की कविताओं में निष्णात। 'हम्मीर हठ' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

1706 -1785 अलवर

'चरणदासी संप्रदाय' के प्रवर्तक। योगसाधक संत। जीवन-लक्ष्य साधने हेतु कृष्ण-भक्ति के साथ अष्टांग योग पर बल देने के लिए स्मरणीय।

1708 -1793 अजमेर

'राधावल्लभ संप्रदाय' से संबंधित। भाव-वैचित्र्य और काव्य-प्रौढ़ता के लिए विख्यात।

1609

रीतिकाव्य की अखंड परंपरा के आरंभिक कवि। ललित-सानुप्रास भाषा और मनोहर वर्णन प्रणाली का निर्वहन करने वाले कवि के रूप में ख्यात।

अल्पज्ञात कवि। महाभारत कथा पर आधारित प्रबंधकाव्य 'विजय मुक्तावली' के लिए स्मरणीय।

बुंदेलखंड के प्रतापी नरेश। प्रसिद्ध कवि भूषण के संरक्षक।

रीतिकालीन अल्पज्ञज्ञात कवि।

रीतिकाल के अंतिम वर्षों में सक्रिय कवयित्री। भक्ति, नीति और शृंगार कविता के वर्ण्य-विषय।

बुंदेली फाग कवियों में से एक।

1545 -1605

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। शब्द-क्रीड़ा में निपुण। भावों में मार्मिक व्यंजना और सहृदयता। दृष्टकूट दोहों के लिए स्मरणीय।

रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि।

1629 -1678 जोधपुर

मारवाड़ के राजा और रीतिकालीन कवि आचार्य। अलंकार निरूपण ग्रंथ 'भाषा भूषण' से हिंदी-संसार में प्रतिष्ठित।

सूफ़ी संत, नीतिकार और रासो-काव्य के रचयिता। ब्रजभाषा पर अधिकार। वस्तु-वर्णन के लिए दोहा और सोरठा छंद का चुनाव।

रासो काव्य परंपरा के अंतिम कवियों में से एक। प्रबंध काव्य 'हम्मीर रासो' से प्रसिद्ध।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

असनी वाले ठाकुर नाम से चर्चित। रीतिबद्ध कवि। कविता में भाव और दृश्य-निर्वाह के लिए स्मरणीय।

रीतिमुक्त काव्यधारा के महत्त्वपूर्ण कवि। लोकोक्तियों के मधुर प्रयोग के लिए विख्यात।

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