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गाँव पर कविताएँ

महात्मा गांधी ने कहा

था कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। आधुनिक जीवन की आपाधापी में कविता के लिए गाँव एक नॉस्टेल्जिया की तरह उभरता है जिसने अब भी हमारे सुकून की उन चीज़ों को सहेज रखा है जिन्हें हम खोते जा रहे हैं।

मैं गाँव गया था

शरद बिलाैरे

बसंती हवा

केदारनाथ अग्रवाल

हमारे गाँव में

मलखान सिंह

आदमी का गाँव

आदर्श भूषण

ऊँट

कृष्ण कल्पित

चमारों की गली

अदम गोंडवी

मेघदूत विषाद

सुधांशु फ़िरदौस

2020 में गाँव की ओर

विष्णु नागर

संध्या के बाद

सुमित्रानंदन पंत

गाँव में सड़क

महेश चंद्र पुनेठा

पटवारी

अमर दलपुरा

छठ का पूआ

रामाज्ञा शशिधर

लोक गायक

प्रभात

एक

अदीबा ख़ानम

ग्रामीण प्रणय गीत

एमिलियो वास्केज़

हिसाब

जावेद आलम ख़ान

गोरू-चरवाह

रमाशंकर सिंह

छूटना

आलोक कुमार मिश्रा

अकाल

केशव तिवारी

साँझ में

रमेश क्षितिज

कस परजवटि बिसारी

भारतेंदु मिश्र

जैज़ कॉर्नर

सादी यूसुफ़

चंदा के हलवाहे

रादोवान पी. स्वेत्कोव्स्की

निर्जन में

थाओ छ्येन

ग्राम श्री

सुमित्रानंदन पंत

शहर में लौटकर

शैलेंद्र साहू

रूसी गाँव

अंद्रेइ विएली

कोठारी घर

विनय सौरभ

स्मृति पर पुल

विनय सौरभ

सावन सुआ उपास

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

गड़रिए

प्रभात

फाटक

सितांशु यशश्चंद्र

एक गाँव

सनख्या इबोतोम्बी

दृश्य यह है गाँव का!

गोर्धन महबूबाणी ‘भारती’

परिधि

अमित तिवारी

विलाप नहीं

कुमार वीरेंद्र