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पाठक पर उद्धरण

लेखक का कर्तव्य है पाठक को अपनी भाषिक संस्कृति से जोड़ना।

कुबेरनाथ राय

सच्चे कद का पुस्तक उधार लेने वाला; अभी जिसकी हमने कल्पना की, वह पुस्तकों का चिरकालीन संग्राहक सिद्ध होता है, उस तेवर के सबब नहीं जो वह अपने उधार खजाने की सुरक्षा के लिए करता है और इसलिए भी नहीं कि वह कानून की दैनंदिन दुनिया से आते हुए हर तकाजों की अनसुनी करता जाता है, बल्कि इसलिए क्योंकि वह उन पुस्तकों को पढ़ता ही नहीं।

वाल्टर बेंजामिन

बहुत कम बच्चे इतनी हिंदी सीख पाएँगे कि वे निराला को पढ़कर ‘जागो फिर एक बार’ को अर्थ दे सकें।

कृष्ण कुमार

आज हिन्दी में धड़ल्ले के साथ नए-नए बढ़िया प्रकाशन और नए-नए विषय अपना रूप-रंग लेकर हज़ारों की तादाद में दिखलाई पड़ते हैं—वह इसलिए नहीं कि प्रकाशक उदार हो गया है; या उसकी रुचि परिष्कृत हो गई है, यह सब केवल इसलिये कि साहित्य का बाजार इन सबकी माँग करता है।

विजयदान देथा

निबंधकार का एक मुख्य कर्तव्य होता है पाठक की मानसिक ऋद्धि और बौद्धिक क्षितिज का विस्तार करना।

कुबेरनाथ राय

अगर मेरा अनुभव कोई प्रमाण बन सके तो कह सकता हूँ कि कोई आदमी किसी उधार पुस्तक को किसी अवसर पर लौटा ही दे मगर पढ़े शायद ही।

वाल्टर बेंजामिन

इस देश की काव्य रसिक जनता यह नहीं चाहती कि जो काम प्रबन्ध-काव्य के रचयिता करते है, वह काम उपन्यास-लेखकों के हवाले किया जाए और कविगण केवल मुक्तक लिखा करें।

रामधारी सिंह दिनकर

एक उपन्यासकार की आदर्श पाठक की तलाश—वह चाहे राष्ट्रीय हो या अंतर्राष्ट्रीय—उपन्यासकार के अपने को उसके रूप में कल्पना करने और फिर उसे दिमाग़ में रखकर किताबें लिखने से शुरू होती है।

ओरहान पामुक