विज्ञापनों द्वारा की गई दुनिया की व्याख्या और वास्तविक दुनिया में बहुत विरोध है।
कोई दो सपने एक से नहीं होते। कुछ क्षणिक होते हैं, कुछ दीर्घकालिक। देखने वाले के लिए सपने बहुत व्यक्तिगत होते हैं। विज्ञापन सपने नहीं गढ़ते; वह हममें से हर एक को जो कुछ बताते हैं, वह यह कि अभी हम ईर्ष्या के पात्र नहीं हैं, लेकिन हो सकते हैं।
विज्ञापन क्रांति तक का अनुवाद अपनी भाषा में कर देता है।
विज्ञापन के अनुसार सुसंस्कृत होने का मतलब है—किसी भी विवाद से दूर रहना।
विज्ञापनों को ख़रीदारों की पारंपरिक शिक्षा का लाभ मिलता है। जो कुछ उन्होंने इतिहास, मिथकों और कविताओं में पढ़ा है, उसका उपयोग इस ग्लैमर को रचने में किया जाता है।
विज्ञापन किसी सेवा या वस्तु को बेचने के लिए सेक्सुअलिटी का उग्र इस्तेमाल करते हैं। लेकिन यह सेक्सुअलिटी अपने आप में आज़ाद नहीं है, बल्कि यह अपने से बड़ी किसी चीज़ का प्रतीक है—वह जीवन जिसमें आप वह सब ख़रीद सकते हैं, जो आप चाहते हों।
विज्ञापन की भाषा में जिनके पास ख़र्चने के लिए पैसा न हो, वो व्यक्तित्वहीन हैं और जिनके पास पैसा है, वो सबकी चाहतों का पात्र होते हैं।
विज्ञापन उस भविष्य में स्थिर होता है, जो लगातार बदलता है।
बिना विज्ञापन के पूँजीवाद ज़िंदा नहीं रह सकता—साथ ही विज्ञापन इसका स्वप्न है।
विज्ञापन इस अर्थ में भी क्षणिक होता है कि वह हर क्षण बदलता रहता है, फिर भी वह हमारे वर्तमान की बात नहीं करता। वह प्रायः हमारे अतीत का संदर्भ देता है और हमेशा हमारे भविष्य के बारे में बात करता है।
अतीत की कलाकृतियों और आज के विज्ञापन में बहुत से संबंध-सूत्र हैं। कभी-कभी तो विज्ञापनों की पूरी की पूरी छवि ही किसी प्रसिद्ध चित्र की नक़ल होती है।