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वासुदेवशरण अग्रवाल

1904 - 1966 | ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश

भारत के इतिहास, संस्कृति, कला एवं साहित्य के अधिकारी विद्वान। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत।

भारत के इतिहास, संस्कृति, कला एवं साहित्य के अधिकारी विद्वान। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत।

वासुदेवशरण अग्रवाल के उद्धरण

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कला मानवीय जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।

पाणिनि के सामने संस्कृत वाङ्मय और लोक-जीवन का बृहत् भंडार फैला हुआ था। वह नित्य प्रति प्रयोग में आनेवाले शब्दों से भरा हुआ था। इस भंडार में जो शब्द कुछ भी निजी विशेषता लिए हुए था, उसी का उल्लेख सूत्रों में या गणपाठ में गया है।

जीवन से विरहित होकर भूतकाल की उपासना करना केवल बुद्धि का कुतूहल है।

संसार के उत्कृष्ट मस्तिष्क वाले संकल्पवान् प्राणी में और एक साधारण मनुष्य में भी जो भेद है, वह मन की शक्तियों के भेद के कारण है।

मूलतत्त्व की बहुविध कल्पना, मीमांसा और दर्शन—भारतीय संस्कृति और साहित्य का व्यापक सत्य है।

कृष्ण भारतवर्ष के लिए अमूल्य निधि है।

टीकाकारों ने कवि का अर्थ मेधावी और प्रतिभाशाली किया है।

  • संबंधित विषय : कवि

मानवीय शरीर की भाँति संस्कृति का शरीर भी जड़ और चेतन के संयोग से निर्मित होता है।

पाणिनि ने जब व्याकरणशास्त्र की रचना करने की बात सोची, तो उन्होंने घूम-घूमकर शब्द-सामग्री का संकलन किया, और जो देश की भिन्न-भिन्न राजधानियाँ या प्रसिद्ध स्थान थे, उनमें जाकर उन्होंने उच्चारण, अर्थों, शब्दों, मुहावरों और धातुओं के विषय में अपनी सामग्री का संकलन किया।

हमारे भीतर जो प्राण-शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। बच्चे के भीतर यह प्राण शक्ति या जीवन की धारा इतनी बलवती होती है कि उसके मनःक्षेत्र में मृत्यु का भाव कभी आता ही नहीं। यह असंभव है कि बच्चे को हम मृत्यु का ज्ञान करा सकें।

सुंदर और उपयोगी वस्त्रों का निर्माण भारतवर्ष की राष्ट्रीय कला है।

महाभारत के अंत में अपनी भुजा उठाकर व्यास ने यही सारांश बताया कि धर्म ही अर्थ और काम की जड़ है, धर्म ही नित्य है, उसी का आश्रय लेना चाहिए।

मनु का नाम आते ही हमें अपनी सभ्यता के उस धुँधले प्रभात का स्मरण हो जाता है; जिसमें सूर्य की उषाकालीन किरणों के प्रकाश में मानव और देव, दोनों साथ-साथ विचरते हुए दिखाई देते हैं।

कला और काव्य दोनों ही का उपजीव्य भावलोक है। भाव-सृष्टि से ही आरंभ में गुण सृष्टि का जन्म होता है और फिर भाव और गुण दोनों की समुदित समृद्धि भूतसृष्टि में अवतीर्ण होती है। भाव-सृष्टि का संबंध मन से, गुण-सृष्टि का प्राण से और भूत-सृष्टि का स्थूल भौतिक रूप से है। इन तीनों की एकसूत्रता से ही लौकिक सृष्टि संभव होती है। इन तीनों के ही नामांतर ज्ञान, क्रिया और अर्थ है।

असंख्य मनुष्यों का जीवन आज कृष्ण के आदर्श से प्रभावित होता है।

जहाँ तक गंगा है वहीं तक उत्तर में भारतवर्ष है।

श्युआन च्वाङ नामक चीनी यात्री सम्राट; हर्ष के समय सातवीं शताब्दी में भारत में आया था। वह चीन से मध्य-एशिया और गंधार देश के रास्ते से यहाँ आया। सिंधु नदी के समीप शलातुर गाँव में जाकर उसने जो कुछ वहाँ सुना और देखा, उसका वर्णन अपने यात्रा-ग्रंथ में लिखा है—यह स्थान ऋषि पाणिनि का जन्मस्थान है। जहाँ वे उत्पन्न हुए थे, वहाँ उनकी मूर्ति बनी है। यहाँ के लोग पाणिनि के शास्त्र का अब भी अध्ययन करते हैं। इसी कारण यहाँ के मनुष्य अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक प्रतिभाशाली और विद्वान् है।

विचार और कर्म के क्षेत्रों में राष्ट्र का जो सृजन है वही उसकी संस्कृति है।

जीवन का जो रचनात्मक पक्ष है, वह सदा नए-नए रूप में सामने आता रहेगा।

भारतीय कला की शब्दावली और रूपों का संग्रह लोक-संस्कृति के उद्धार का आवश्यक अंग है।

पूर्व और नूतन का जहाँ मेल होता है, वहीं उच्च संस्कृति की उपजाऊ भूमि है।

भारतीय शब्दावली में धर्म एक ऐसा शब्द है, जिससे हमको पग-पग पर काम पड़ता है। ऋग्वेद से लेकर आज तक इस शब्द की चार हज़ार वर्ष लंबी आयु है।

धर्म और सत्यरूपी महावृक्षों के जो अमर बीज वाल्मीकि ने बोए हैं, वे आज भी फल-फूल रहे हैं।

भारत की राष्ट्रीय दार्शनिक आँख वेदांत दर्शन है और उस आँख का सारा तेज़ इसी बात पर अवलंबित है कि आत्मा चैतन्यमय है, वह अन्नमय शरीर से पृथक् सब प्राणियों में एक है, वहीं अंतिम मूल्यवान् तत्त्व है।

सत्य की जिज्ञासा ऋषित्व का प्रथम और अंतिम लक्षण है। सत्य का साक्षात् दर्शन जिसे हो, वह ऋषि है।

अपने ही जीवन की उन्नति, विकास और आनंद के लिए हमें अपनी संस्कृति की सुध लेनी चाहिए।

भारतवर्ष के जिन महापुरुषों का मानव जाति के विचारों पर स्थायी प्रभाव पड़ा है, उनमें श्रीकृष्ण का स्थान प्रमुख है।

तप का तात्पर्य है तत्व के साक्षात् दर्शन करने का सच्चा प्रयत्न।

जिस प्रकार भारतवर्ष की प्राकृतिक संपदा का अपरिमित विस्तार है, उसी प्रकार कालक्रम से वेद व्यास की साहित्यिक सृष्टि भी लोक के देशव्यापी जीवन में अनंत बनकर समा गई है।

जब कर्म की सिद्धि पर मनुष्य का ध्यान जाता है, तब वह अनेक दोषों से बच जाता है।

गीता विश्व का शास्त्र है, उसका प्रभाव मानवजाति के मस्तिष्क पर हमेशा तक रहेगा।

संस्कृति मनुष्य के भूत, वर्तमान और भावी जीवन का सर्वांगीण प्रकार है।

अन्य दर्शनों की पद्धति मनुष्य के चैतन्य के एक अंश का स्पर्श करती है, वैदिक दर्शन उसके समग्र रूप के साथ तन्मय होने का निमंत्रण देता है।

कवि और उसका काव्य—दोनों एक-दूसरे से पृथक् नहीं किए जा सकते, इसीलिए वाल्मीकि और उनके आदर्श राम, एक-दूसरे से अभिन्न हैं।

स्वराज्य-प्राप्ति के लिए अस्पृश्यता को हटाने की बात गांधीजी की मौलिक देन थी।

मनुष्य का मन अभिलाषाओं की उर्वरा भूमि है।

संस्कृति मानवीय जीवन की प्रेरक शक्ति है।

धर्म का ऊपर कहा हुआ आदर्श जीवन के भीतर से पनपता है।

भारतीय साहित्य वेरूल के उस विशाल कैलाश-मंदिर के समान है, जिसे अदम्य शिल्पियों ने पर्वत में से गढ़कर तैयार किया गया।

भविष्य निश्चय रूप से वैदिक दर्शन के हाथ है, क्योंकि उसका संदेश कविता के द्वारा कहा गया है।

हेमचंद्र मध्यकालीन साहित्यिक संस्कृति के चमकते हुए हीरे हैं। विक्रम की बारहवीं शताब्दी में जैसी तेज़ आँख उनको प्राप्त हुई, वैसी अन्य किसी की नहीं। वस्तुतः वे हिंदी-युग के आदि आचार्य हैं।

जीवन के बहुविध सत्य को एक शब्द द्वारा पकड़ने और कहने का जो प्रयत्न इस देश में किया गया—उसी मंथन का फल ‘धर्म’ शब्द की उत्पत्ति है।

निरपेक्ष सत्यों का सापेक्ष परिधान पहनाने का पुनित कर्त्तव्य, काव्य और कला के लिए ही सुरक्षित है।

मनुष्य का मन उसकी सर्वश्रेष्ठ निधि है, मननात्मक अं‌‌श ही मनुष्य में दैवी अंश है।

महाभारत का युद्ध भारतीय इतिहास की एक अति दारुण घटना है।

हम अपने विवेक से ज्योति को तम से अलग पहचान लेते हैं, यही ज्योति या देवों की विजय है।

कविता और कला के निर्माताओं का भी कर्त्तव्य है कि वे आधुनिक देश-काल के समीकरण द्वारा व्युत्पादित सृष्टि, स्थिति और प्रलय-संबंधी सिद्धांतों का उपयोग अपनी अमर कृतियों में कौशल के साथ करें।

मनुष्य में दृढ़ संकल्प-शक्ति ही दिव्य कौस्तुभ-मणि है, जो हृदय का अलंकार है।

आधुनिक विज्ञान ने सभ्यता के देश-काल-विषयक भावों को बहुत परिमार्जित और उपबृंहित किया है।

मनु ने राष्ट्र के मस्तक को गर्व से उँचा रखने के लिए लिखा है कि इस देश में जन्म लेनेवाले अग्रणी पुरुषों का चरित्र पृथ्वी के दूसरे देशों के लिए शिक्षा की वस्तु है।

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