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गणेश शंकर विद्यार्थी

1890 - 1931 | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबद्ध प्रखर पत्रकार, लेखक और सुधारवादी नेता। ‘प्रताप’ पत्रिका का संपादन।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबद्ध प्रखर पत्रकार, लेखक और सुधारवादी नेता। ‘प्रताप’ पत्रिका का संपादन।

गणेश शंकर विद्यार्थी के उद्धरण

मानव स्वत्व मिला नहीं करते। उन्हें लेना पड़ता है। बल चाहिए- बल।

कठिन समय, विपत्ति और घोर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छाँट हैं।

देश की सच्ची संपत्ति है उसके वे युवक और युवतियाँ जिनके शरीर की आभा में प्रकृति का सबसे अधिक स्पष्ट दर्शन होता है। और जिनके हृदय में उदारता और कर्मण्यता, सहिष्णुता और अदम्य साहस के स्रोत का प्रवाह पूरे ज़ोरों पर है।

मृत्यु के सान्निध्य में भेदभाव नहीं रहते। ऐसे समय तो गुण-स्मरण करना ही कर्त्तव्य है।

जब किसी के बारे में लिखो तो यह समझकर लिखो कि वह तुम्हारे सामने ही बैठा है और तुमसे जवाब तलब कर सकता है।

युवकत्व का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि वह भावनाओं का पुंज हो और अखिल उत्साह का स्रोत।

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