भास के उद्धरण

अंधकार मानो अंगों पर लेप कर रहा है। आकाश मानो अंजन बरसा रहा है। इस समय दृष्टि ऐसी निष्फल हो रही है जैसे दुष्ट पुरुषों की सेवा।
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मेरी बुद्धि धर्म और स्नेह के बीच में पड़कर झूल रही है।
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संबंधित विषय : द्वंद्व
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लड़की के विवाह के समय माताओं को बड़ा दुःख होता है।

अकेला दूसरे के घर में प्रवेश करे, द्वितीय आदमी से मंत्रणा करे, बहुत आदमी लेकर युद्ध करे, यही शास्त्र का निर्णय है।


न देने पर (कन्यादान न करने से) तो लज्जा आती है और विवाह कर देने पर मन दुखी होता है। इस प्रकार धर्म और स्नेह के बीच में पड़कर माताओं को बड़ा कष्ट होता है।


समय बीतने पर उपार्जित विद्या नष्ट हो जाती है, मज़बूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर पड़ते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। किंतु हुत (हवनादि किया हुआ पदार्थ) या सत्पात्त को दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है।

न रूप, गौरव का कारण होता है और न कुल। नीच हो या महान उसका कर्म ही उसकी शोभा बढ़ाता है।

मार्गरूपी नदियों में अंधकार बह रहा है। गृह-माला तटों के समान प्रतीत हो रही है। दसों दिशाएँ अंधकार में डूबी हुई हैं। अंधकार को मानो नौका से पार करना होगा।
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प्रियजनों में दृढ़ हुए प्रेम को छोड़ना कठिन है। बार-बार उसका स्मरण करने से दुःख नया-सा हो जाता है। इस दशा में आँसू बहाना ही एकमात्र उपाय है। इससे प्रिय जन के प्रेम से उऋण होकर मन प्रसन्न होता है।

गुणशीलता, तात्कालिक परिस्थिति तथा भविष्य का विचार करके शीघ्रता तथा दीर्घसूत्रता दोनों को छोड़कर, देश-काल के अनुकूल अपना कार्य करना चाहिए।
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दोषों को भूलकर भाइयों पर केवल स्नेह करना चाहिए, बंधुओं से प्रेम स्थापित करना, लोक-परलोक दोनों के लिए लाभदायक होता है।
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यह निद्रा नेत्रों पर टिकी हुई, ललाट प्रदेश से उतरकर उसी प्रकार मुझे सता रही है, जैसे अदृश्य और चंचल वृद्धावस्था मनुष्य की शक्ति को पराजित करके बढ़ती जाती है।
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जो अधीर और असमर्थ होते हैं, उनमें उत्साह उत्पन्न नहीं होता। प्रायः उत्साही पुरुष ही राजसंपत्ति का उपभोग करते हैं।
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सुख की अवस्था से जो दरिद्रता की दशा को प्राप्त होता है, वह तो शरीर से जीवित रहते हुए भी मृतक के समान ही जीता रहता है।


कार्य की सिद्धि होने पर लोग राजा के बल की प्रशंसा करते हैं और असिद्धि होने पर लोग मंत्री की बुद्धि को दोष देते हैं।
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मृत्यु का समय आ जाने पर कौन किसको बचा सकता है? रस्सी के टूट जाने पर घड़े को गिरने से कौन रोक सकता है? इसी तरह मनुष्य भी वृक्षों के समान (जैसे वृक्ष समय-समय पर काटे जाते हैं और उत्पन्न हो जाते हैं) समय-समय पर मरते और उत्पन्न होते हैं।
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समय की गति के अनुसार बदलने वाली जगत् की भाग्यदशा पहिए के अरों की भाँति (ऊपर-नीचे) होती रहती है।
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अर्थ, प्राण, तपस्या का फल और सब कुछ देना सरल है किंतु धरोहर की रक्षा करना कठिन है।
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सभी राजा राजकुमारी को उसी प्रकार चाहते हैं, जिस प्रकार मल्ल लोग विजय-पताका को चाहा करते हैं।
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सर्वत्र सम्पत्तियाँ हों। सदा विपत्तियों का नाश हो। पृथ्वी पर राजा के गुणों से युक्त एक योग्य राजा हम पर शासन करे, यही कामना है।
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संबंधित विषय : पृथ्वी
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कुलगत विरोध होने पर भी बालकों का अपराध नहीं माना जाता है।
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